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ग्रीन हाउस गैसों की समस्या से निजात पाने चलेगी देश की पहली Hydrogen Fuel Train

नई दिल्ली। भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने पर्यावरण की रक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन हाउस गैसों की समस्या से निजात के लिए भविष्य में हाइड्रोजन फ्यूल (hydrogen fuel) से ट्रेनों के चलाने का ऐतिहासिक (historical) कदम उठाया है। भारतीय रेल ने स्वयं को हरित परिवहन प्रणाली के रूप में बदलने के क्रम में उत्तर रेलवे के 89 किलोमीटर लम्बे सोनीपत-जींद सेक्शन पर देश की पहली हाइड्रोजन फ्यूल ट्रेन चलाने का निर्णय लिया है।



रेल मंत्रालय ने बताया कि भारतीय रेल वैकल्पिक ईंधन संगठन (आईआरओएएफ), भारतीय रेल के हरित ईंधन प्रभाग ने उत्तर रेलवे के सोनीपत-जींद सेक्शन पर हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित ट्रेन चलाने के लिए निविदाएं आमंत्रित की हैं। इस प्रयोजन के लिए निविदा-पूर्व दो बैठकें क्रमशः 17 अगस्त और 9 सितम्बर को निर्धारित की गई हैं। प्रस्ताव देने की तिथि 21 सितम्बर तथा टेंडर खुलने की तिथि 5 अक्टूबर निर्धारित की गई है।

बता दें कि उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी” और “राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन” भारत सरकार के दो प्रमुख कार्यक्रम हैं। इसके तहत पेरिस जलवायु समझौते 2015 और 2030 तक “मिशन नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन रेलवे” के तहत ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा। इसके अनुसार, देश में हाइड्रोजन परिवहन की अवधारणा को शुरू करने के लिए हाल ही में बजटीय घोषणा की गई थी। इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए, भारतीय रेलवे वैकल्पिक ईंधन संगठन (आईआरओएएफ), भारतीय रेलवे के हरित ईंधन वर्टिकल ने रेलवे नेटवर्क पर हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित रेलगाड़ियों के लिए निविदाएं आमंत्रित की हैं। यह परियोजना उत्तर रेलवे के 89 किलोमीटर लम्बे सोनीपत-जींद खंड पर शुरू होगी।

बताया जा रहा है कि रेलवे ने सोनीपत-जींद सेक्शन पर शुरुआत में 2 डीजल इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट (डेमू) रैक को रेट्रोफिटिंग करके हाइड्रोजन फ्यूल आधारित तकनीक से ट्रेन चलाने का निश्चय किया है। जिसमें हाइड्रोजन फ्यूल आधारित ट्रेन का संचालन किया जाएगा तथा इसके लिए आवश्यक बजटीय सहायता उपलब्ध कराई गई है। बाद में, 2 हाइब्रिड इंजनों को हाइड्रोजन ईंधन सेल ऊर्जा परिवहन के आधार पर परिवर्तित किया जाएगा। ड्राइविंग कंसोल में कोई बदलाव नहीं होगा। इस परियोजना से न केवल प्रति वर्ष 2.3 करोड़ रुपये की बचत होगी बल्कि हर साल 11.12 किलो टन नाइट्रोजन डाई आक्साइड (NO2) और 0.72 किलो टन कार्बन कणों का उत्सर्जन कम होगा।

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