भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

कूनो में चीते आते ही गुजरात से शेर लाने की फाइल हो जाएगी बंद

  • मप्र ने 30 तक किया गिर के शेरों का इंतजार, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी गुजरात सरकार ने नहीं दिए

भोपाल। देश में इन दिनों आदिवासी बाहुल्य जिले श्योपुर स्थित कूना राष्ट्रीय उद्यान चर्चा में। दरअसल कूनो में 30 साल तक गुजरात के गिर के शेरों का इंतजार करने के बाद 17 सितंबर को अफ्रीका से चीते लाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीतों को पिंजरे से कूनो के जंगल में छोड़ेंगे। इसके साथ ही गिर के शेरों को कूनो में बसाने की फाइल हमेशा के लिए बंद हो जाएगी। कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को विशेष जनजाति सहरिया बहुल 29 गांवों से 1545 परिवारों का विस्थापन के बाद 35 साल में तैयार किया गया है। मप्र सरकार ने 30 साल तक गिर के शेरों का इंतजार किया। सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी मध्य प्रदेश को गुजरात से बब्बर शेर (एशियाटिक लायन) नहीं दिला सके। लिहाजा मध्य प्रदेश सरकार ने कूनो पालपुर नेशनल पार्क में अफ्रीकी चीते बसाने में ही भलाई समझी। नामीबिया से चार नर व चार मादा चीते 17 सितंबर को कूनो लाए जा रहे हैं। इसके साथ ही पार्क तो आबाद हो जाएगा, पर मध्य प्रदेश में बब्बर शेर को बसाने का सपना टूट जाएगा। भारत में बब्बर शेर सिर्फ गुजरात के गिर नेशनल पार्क में हैं। इस प्रजाति को महामारी से बचाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1992 में श्योपुर जिले के कूनो पालपुर में सिंह परियोजना मंजूर की। उस समय हुए अनुबंध के अनुसार पार्क में शेरों के लिए रहवास क्षेत्र विकसित होने के बाद गुजरात सरकार को शेर देने थे पर ऐसा नहीं हुआ।

20 साल पहले शेरों के लिए तैयार था कूना
मध्य प्रदेश सरकार ने करीब ढाई सौ करोड़ रुपये खर्च कर वर्ष 2003 में पार्क तैयार कर लिया। फिर गुजरात व भारत सरकार से शेर मांगे लेकिन नहीं मिले, तब सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। कोर्ट ने अप्रैल 2013 में भारत सरकार को छह माह में गिर से शेर कूनो भेजने के आदेश दिए। जब वर्ष 2014 में भी शेर नहीं पहुंचे तो अवमानना याचिका लगाई। आखिर मार्च 2018 में भारत सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि कूनो में जल्द शेर भेजे जा रहे हैं और अवमानना याचिका समाप्त हो गई।


एक्सपर्ट कमेटी की दूसरी बैठक नहीं हुई
कूनो में छह माह में शेरों को बसाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2016 में एक्सपर्ट कमेटी गठित की। कमेटी ने कूनो पालपुर पार्क का दौरा किया और बैठक भी की। आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे बताते हैं कि शेर आना तो दूर कमेटी की दूसरी बैठक तक नहीं हुई। वे कहते हैं कि मध्य प्रदेश सरकार ने 29 गांवों को शेरों के नाम पर खाली कराया था। इसलिए शेरों के लिए दूसरा पार्क तैयार करें और कोर्ट के आदेश का पालन करें।

गाइड लाइन को बना लिया ढाल
शेर देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती बढ़ी तो गुजरात सरकार ने अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) की गाइड लाइन को ढाल बना लिया। संघ के 35 मापदंड हैं। जिन्हें पूरा करने पर ही शेरों को दूसरे स्थान पर बसाया जा सकता है। उनमें से कम समय में पूरे होने वाले कार्यों को मध्य प्रदेश सरकार ने पूरा कर लिया, जबकि लंबे समय के कार्यों को लेकर कहा था कि यह शेर आने के बाद भी पूरे किए जा सकते हैं पर गुजरात सरकार मापदंड पूरे करने को लेकर अड़ गई।

प्रतिष्ठा के प्रतीक की लड़ाई
लड़ाई प्रतिष्ठा के प्रतीक (स्टेटस सिंबल) की है। बब्बर शेर अकेले गुजरात में हैं, इसलिए देशभर के पर्यटक गिर पार्क पहुंचते हैं। जिससे प्रदेश का पर्यटन उद्योग चलता है। यदि कूनो पालपुर में शेर आए, तो दिल्ली से आने वाले पर्यटक गुजरात की बजाय कूनो जाएंगे। जिसका असर पर्यटन पर पड़ेगा। केंद्र सरकार भी गुजरात से शेरों को मप्र भेजने के पक्ष में नहीं थी। इसके बाद मप्र सरकार ने गिर के शेर लाने की बजाए अफ्रीका से चीते लाने पर जोर दिया।

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