उज्जैन। संजा पर्व के दौरान त्रयोदशी से किला कोट बनाया जाता है। इस दिन संजा के माण्डने में चांद-सूरज सहित पूर्णिमा से लेकर अभी तक बनाए गए सभी माण्डनों का अंकन प्रांरभ होगा। साथ ही किला कोट में डोली, सिढ़ी, ढोली, स्वच्छक का माण्डना भी बनाया जाएगा। जहां किसी परिवार में विवाह समारोह अथवा मांगलिक उत्सव होता है, वहां सबसे पहले गणेशजी को पूजा जाता है। भगवान को आमंत्रित किया जाएगा कि वे मांगलिक कार्य में पधारे।
ऐसी मान्यता है कि संजा को ससुराल में विवाह सुख नहीं मिला। उस जमाने में विवाह बाद ससुराल में सुख मिल जाए अर्थात् ससुराल के सभी सदस्यों का बहू को स्नेह मिल जाए, तो उस लड़की को भाग्यवान माना जाता था। यही कारण रहता था कि विवाह पूर्व कन्याएं बहुत कठोर व्रत आदि करती थी, ताकि विवाह बाद ससुराल में कष्ट न भोगने पड़े। यह एक विचित्रता थी कि जो ननद अपने विवाह हेतु व्रत रखती, अच्छा वर के लिए प्रार्थना करती, वही अपने ही घर में अपनी भाभी के प्रति ननद के अधिकार जताना नहीं भूलती।
संजा अपने बीरा याने चांद, सूरज से बात करते हुए कहा करती थी कि उसे ससुराल में नींद भी पूरी नहीं लेने दी जाती है। अल सुबह सासु उठा देती है। सबसे पहले चक्की में गेहूं पीसना, उसके बाद पनघट पर जाकर पानी भरना, गौशाला में जाकर गोबर उठाना, दूध निकालना, चारा डालना ओर घर के अन्य काम करना। आराम लेने का समय नहीं मिलता था। यदि बैठे दिख जाए तो सासु के ताने सुनने पड़ते थे।