इंदौर न्यूज़ (Indore News) खरी-खरी

उनके प्राणों का प्रमाण है अग्निबाण…

41वां पुण्य स्मरण दिवस…

कहने को सालों बीत गए… लेकिन आपकी यादों को… आपके संघर्ष को, आपके समर्पण और त्याग को भूलने वाला एक लम्हा भी नहीं गुजर पाया… आप हमारे जीवन की शैली में शामिल हैं… आप हमारे जीवन की प्रेरणा का वो हर पल हैं जो हमारे उत्साह को कभी बोझिल नहीं होने देता… आप हमारे तपोवन की वो भूमि हैं जिसकी सोच में सत्यता, स्वभाव में निडरता और काम में कुशलता रही है… आप एकाग्रता हैं… आप तन्मयता हैं… आप विचारों की विशालता हैं… हम आपसे शुरु होते हैं और आप पर ठहर जाते हैं… आप से ही मंजिल पाते हैं…. आपसे ही नई राह चुनते हैं और आप ही के कारण सम्मान पाते हैं… आपने जितना सिखाया उससे ज्यादा आपको पढक़र, समझकर जीवन समझ में आया… हमने आपको अग्निबाण के हर शब्दों में पाया… अपनी कलम से संजोया… आपकी भावनाओं को पाठकों में परोसा… और लाखों पाठकों और दिल से चाहने वालों का ऐसा परिवार बनाया जो अग्निबाण के अक्स में आपको देखता है… जानने वाले जानते हैं… लेकिन जो नहीं जानते वो जानकर आश्चर्य से उंगली दबाते हैं कि आपने तब अग्निबाण का पौधा रोपा था जब लोग शाम के अखबार से अनभिज्ञ थे…आपकी आंखों में केवल सपने थे… उस पौधे को सींचने के लिए साधन नहीं आपका पसीना था… उसमें झोंकने के लिए खाद नहीं आपका परिश्रम था… आप उसकी छाया थे… आप ही उसकी बयार थे… तब कौन जानता था कि शहर में शाम का भी कोई अखबार होता है… सुबह के अखबार की चुस्कियों को शाम में परिवर्तित करने का कठोर सपना संघर्ष में बदलना ही था… फिर न जेब में दमड़ी और न अखबार निकालने के साधन-संसाधन थे… कागज खरीदो तो स्याही खत्म हो जाए… दोनों जुगाड़ लो तो वेतन नहीं बंट पाए… लेकिन हर मुश्किल का एक ही समाधान था आपका जज्बा, आपकी हिम्मत और आपका विश्वास… संघर्ष का सिलसिला चलता रहा… पौधे को रोपने के बाद खुद को झोंकने के इस सिलसिले से पौधे का पेड़ बनना और उस पर फूल खिलना तो तय था ही… ठुकराने वाला शहर अपनाने पर मजबूर हो गया… हिम्मत को दाद मिलने लगी… साधन जुटने लगे… सुबह के साथ शाम की परिपाटी बनने लगी… उत्साह बढऩे लगा… शहर साक्षी बनने लगा था… यह आपका संघर्ष और समर्पण था लेकिन आपकी यही शैली ईश्वर को भा गई… वक्त ने संघर्ष को कुछ विराम दिया ही था कि अग्निबाण को एक बड़े आघात का वज्रपात सहना पड़ा… आप ईश्वर की शरण और उनकी चाहत के वरण के लिए प्रस्थान कर गए… हमारे लिए यह एक ऐसा सदमा था जिससे उबरना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था… कैसे कर पाएंगे… कैसे बढ़ पाएंगे… कैसे चल पाएंगे… सोच के इस कहर से गुजर ही रहे थे कि आपने उंगली थाम ली… आपकी सीख ने राह दिखाई… आपके संघर्ष, समर्पण, निडरता, निर्भिकता और सच पर चलने की प्रेरणा हमारी राह बनकर कलम में समाई… पाठकों में आप हो… हर दिन हम उनके और वो आपके साक्षात्कार से गुजरते हैं… चाहे जितने साल बीत जाएं… युग बदल जाएं न आप हमें भूल पाएंगे और न हम आपसे जुदा हो पाएंगे… हर दिन के अखबार के साथ हम आपको अपनी निगाहों में पाएंगे… हम ना डिग पाएंगे न लडख़ड़ाएंगे… क्योंकि यह विश्वास है इस बात का आभास है… लोग तो अखबार में साधन-संसाधन और पैसा लगा सकते हैं, लेकिन आपने तो इसमें अपने प्राण लगाए हैं… आपके प्राणों का प्रमाण है यह अग्निबाण…

राजेश चेलावत

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