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NDA के आदिवासी कार्ड के सामने तार-तार हुई विपक्ष की एकता, बड़ी जीत की ओर बढ़ीं द्रौपदी मुर्मू

नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव (Presidential candidate ) के जरिए विपक्ष (Opposition) की कोशिश एकजुट होने की थी। हालांकि इस चुनाव में राजग (NDA) की ओर से द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu ) के रूप में लगाए गए आदिवासी और महिला (tribal and women) दांव ने विपक्ष की एकता तार-तार कर दी। विपक्ष में पड़ी फूट के कारण मुर्मू बड़ी जीत की ओर बढ़ रही हैं। मुर्मू के उम्मीदवारी से जहां यूपीए में फूट पड़ गया, वहीं दूसरे विपक्षी दल ने मजबूरी में मुर्मू का साथ देने की घोषणा की। सांसदों के तीखे तेवर के बीच शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Shiv Sena chief Uddhav Thackeray) भी मुर्मू का साथ देने के लिए मजबूर हो गए।


आठ गैर राजग दलों ने मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा की
मुर्मू के समर्थन और विरोध के सवाल पर यूपीए में ही फूट नहीं पड़ी है, बल्कि सपा और कांग्रेस जैसे कई दल भी फूट के शिकार हुए हैं। खासतौर पर विपक्षी उम्मीदवार के तौर पर यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखने वाली टीएमसी सियासी नुकसान के भय से खुद ऊहापोह में है। अब तक आठ गैर राजग दलों ने मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा की है।

गौरतलब है कि मुर्मू को अब तक गैर राजग दलों में बीजेडी, अकाली दल, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, बसपा, झामुमो, जदएस और शिवसेना ने समर्थन देने की घोषणा की है। इनमें झामुमो, शिवसेना, जदएस और टीडीपी ने पहले विपक्षी दलों की बैठक में यशवंत के नाम पर सहमति दी थी। हालांकि राजग के आदिवासी कार्ड के बाद ये दल मुर्मू के साथ आने पर मजबूर हो गए।

कांग्रेस-सपा में फूट तो शिवसेना में बवाल
समर्थन के सवाल पर कांग्रेस, सपा में फूट पड़ गई है तो शिवसेना के अधिकांश सांसदों ने उद्धव को मुर्मू का साथ देने के लिए एक तरह से अल्टीमेटम दे दिया है। सूत्रों का कहना है कि संसदीय दल में फूट रोकने की कोशिश में जुटे उद्धव मुर्मू का समर्थन करने के लिए तैयार हो गए हैं। कांग्रेस के झारखंड के कुछ विधायकों ने मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा की है, जबकि सपा के शिवपाल यादव ने मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा की है। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी मुर्मू के समर्थन में आगे आएगी।

ऊहापोह में फंसी ममता
मुर्मू की उम्मीदवारी की घोषणा ने टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की उलझन बढ़ा दी है। उनके सामने एक तरफ खुद के प्रस्तावित उम्मीदवार यशवंत सिन्हा हैं तो दूसरी ओर आदिवासी वर्ग की द्रौपदी। ममता को द्रौपदी का समर्थन न करने की स्थिति में आदिवासी वर्ग के नाराजगी का डर सता रहा है। वह इसलिए कि राज्य में आदिवासी इलाकों में बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई थी। यही कारण है कि ममता मुर्मू के प्रति उदारवादी रुख अपना रही हैं। उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि राजग अल्पसंख्यक या आदिवासी समुदाय से उम्मीदवार दे रही है तो हम उसे समर्थन करने पर विचार करते।

बड़ी जीत की ओर बढ़ रही हैं मुर्मू
विपक्ष के सात दलों के समर्थन और शिवसेना में हुई टूट के बाद द्रौपदी मुर्मू बड़ी जीत की ओर बढ़ रही हैं। इन दलों के साथ आने से उनके समर्थक वोटों की संख्या 6.5 लाख के करीब पहुंच रही है। गौरतलब है कि राजग के पास 5,26,420 वोट हैं जो उम्मीदवार को जिताने केलिए 13000 कम थे। हालांकि बीजेडी (करीब 25,000), वाईएसआर कांग्रेस (करीब 43,000 वोट) के साथ आने और शिवसेना में बड़ी टूट के साथ ही भाजपा की समस्या दूर हो गई। हालांकि मुर्मू अब भी बीते चुनाव में राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की तुलना में कम वोट हासिल करती दिख रही हैं। कोविंद को बीते चुनाव में करीब 7.2 लाख वोट हासिल हुए थे।

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