खरी-खरी

उनमें गैरत नहीं… हमको भी हैरत नहीं…

 

बूढ़ा हो गया है लोकतंत्र…बेचारा 77 साल का…उसे मुर्दा बनाने पर तुले हैं यह नेता…यह मीडिया…यह संविधान और अब तो जनता भी साथ हो गई… जिन्हें लोकतंत्र के चार स्तंभ कहा जाता है, जब वे नीयत बदलने लग जाएं… कायदे के बजाय फायदे की नीतियों पर चलने लग जाएं तो हम किस पर उंगली उठाएं… नेता एक दल से चुना जाता है, दूसरे दल में चला जाता है…दूसरे दल की उंगली पकडक़र सत्ता में आने के लिए उम्मीदवार बनाया जाता है…जनता उसे फिर जिताती है…उसकी दलबदलू नीति, बिकाऊ निष्ठा पर मुहर लगाती है… संविधान में भी उसकी यह हरकत वैधानिक मानी जाती है…मीडिया उसके दलबदल के गीत गाती है…उसे बड़ा नेता मानती है…तोड़े हुए नेताओं को जोडक़र सरकार गिराई जाती है…नई सरकार बनाई जाती है…इसे तोडफ़ोड़ करने वाले दल की सफलता माना जाता है…टूटने वाले दल को कमजोर आंका जाता है…समझ में नहीं आता लोकतंत्र किसे कहा जाता है…एक नेता एक दल को पानी पी-पीकर कोसते हुए चुना जाता है…फिर उसी शर्म के पानी में डुबकी लगाकर उसी दल को गंगा-जमुना बनाता है तो मतदाता समझ नहीं पाता है कि उसने अपना मत किसको दिया…क्यों दिया…क्या सोचकर दिया…जिसे दिया उसका मिजाज बदल गया तो हमारा मत किसको गया…हम अपनी सोच के साथ सरकार बनाते हैं या जिसे चुनते हैं उसकी सोच के साथ सरकार बदलने पर मजबूर हो जाते हैं…यदि ऐसा होता है तो संविधान की निगाहों में धोखा समझा जाना चाहिए…चुनाव आयोग को भी इसे गलत ठहराना चाहिए और मीडिया द्वारा ऐसे नेता को बड़ा नहीं टुच्चा कहा जाना चाहिए…लेकिन जब सब साथ हो जाते हैं, संविधान इसे सही मानता है…आयोग उंगली नहीं उठाता है और मीडिया पलक-पांवड़े बिछाता है तो जनता का कद वैसे ही बौना हो जाता है…हालांकि जिस लोकतंत्र को जनता के लिए जनता के द्वारा कहा जाता है, वो नेता का, नेता के लिए, नेताओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता है तो अब जनता को भी अपनी सोच बदल लेना चाहिए और जिसकी सरकार उसकी जयकार करना चाहिए… जनता भी वही कर रही है…आम चुनाव के नतीजे कुछ और होते हैं…चलती सरकार में विधायक पाला बदलते हैं और बनी हुई सरकार नई सरकार की भेंट चढ़ जाती है…वक्त बदल चुका है…अब जनता की ताकत से नहीं, नेताओं की हिमाकत से सरकार बनाई जाती है… पहले शिवसेना ने भाजपा को झटका दिया… फिर शिंदे ने शिवसेना का तख्ता पलट दिया… शरद पवार को भी जैसे को तैसे का फल मिला… भतीजे से चोंट पाए पवार अपना कल याद कर रहे हैं… मुलायम के बेटे अखिलेश अपने बचे-खुचे विधायक समेट रहे हैं… हिमाचल में बर्फीला तूफान चल रहा है… कांग्रेस सिकुड़ रही है… भाजपा फैल रही है… नतीजे बदलते मौसम का इंतजार कर रहे हैं और पैसे वाले (भाजपाई) अगले सौदे के इंतजार में लगे हैं… सब ऐसा ही चलता रहेगा… हमारी हैरत से उनकी गैरत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा…कौन कहां है… कब तक वहां रहेगा… इसका फैसला तो पैसे वाला ही करेगा…

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