जीवनशैली स्‍वास्‍थ्‍य

बच्चों में गंभीर हो सकती है यह बीमारी, लक्षणों को भूलकर भी न करें नजरअंदाज

डेस्‍क। ऑटिज्म से ग्रसित अधिकांश बच्चों में समय के साथ फिजियोथैरेपी के बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। मुश्किल यह है कि अधिकांश पैरेंट्स स्थिति से समझौता करते हुए फिजियोथैरेपी को उस तरह नियमित नहीं करते जिस तरह  किया जाना चाहिए। दरअसल, ऑटिज्म एक तरह की न्यूरोलॉजिकल व डेवलपमेंटल डिसेबलिटी है। इसे आप साधारण शब्दों में इस तरह समझ सकते हैं कि दिमाग की बाकी शरीर से कम्युनिकेशन की क्षमता कमजोर हो जाती है।

इसलिए वह किस अंग को किस तरह काम करना है यह संदेश ठीक से नहीं कर पाता। यह अवस्था बच्चे के जीवन के प्रारंभ से ही उसके साथ होती है और जीवन पर्यंत रहती है। इसका कोई ठोस इलाज नहीं है। लेकिन शोध यह साबित कर चुके हैं कि फिजियोथैरेपी, स्पेशल एजुकेशन और इलाज से ऑटिज्म पीड़ित बच्चों की स्थिति में बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। कई बच्चों में तो 60 प्रतिशत से भी अधिक सुधार देखा गया है।

कई सारी समस्याओं का ग्रुप है ऑटिज्म 
ऑटिज्म असल मे कई सारी समस्याओं का एक समूह होता है। इसमें मसल्स संबंधी, बातचीत करने, सोशल इंटरेक्शन, इमोशनल इन्वॉल्वमेंट संबंधी, मोटर स्किल्स (जैसे हाथ मे पेंसिल पकड़ना), चलने, बैठने आदि जैसी गतिविधियों में दिक्कत आती है। अधिकांशतः बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद ही सामान्य चेकअप में इस समस्या का पता चल सकता है, लेकिन यदि ऐसा न हो तो लक्षणों के आधार पर डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं।

कैसे करती है फिजियोथैरेपी असर 
फिजियोथैरेपी की कई अलग अलग प्रक्रियाएं/विधाएं इसमें सहायक हो सकती हैं। जैसे-

  • एक्सरसाइज आधारित थैरेपी: इसमें बच्चे को उम्र के हिसाब से अलग अलग गतिविधियां करवाई जाती हैं। जैसे जंपिंग (उछलना), ताली बजाना, रस्सी कूदना, बॉल कैच करना या फेंकना आदि। 
    मोटर स्किल्स को मजबूत बनाने के लिए: पेंसिल पकड़ने, क्रेयॉन्स या अन्य तरीकों से रंग भरवाने, बच्चों वाली कैंची पकड़ना, ब्लॉक्स आदि जमवाना आदि।
  • बोलने में मदद के लिए थैरेपी: शब्दों पर जोर देकर उन्हें सुनकर बोलने में मदद करना।
  • हाइड्रो थैरेपी: यानी स्वीमिंग या पानी संबंधी अन्य गतिविधियां। हालांकि इसके संबंध में विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है।

इनके अलावा भी अन्य कई तरीके हैं, जिन्हें ऑटिज्म वाले बच्चों के पोश्चर को सही बनाने, उन्हें बैठने में मदद करने आदि में मदद करने के लिए काम में लाया जाता है। उदाहरण के लिए स्पेशल बॉल्स की सहायता से मसल्स और हड्डियों को दृढ़ बनाना, संतुलन बनाने में मदद करना, कुछ उपकरणों जैसे ब्रेसेस के जरिये बच्चे के शरीर का अलाइनमेंट सही बनाने में मदद करना, कम्युनिटी आधारित एक्टिविटीज करना ताकि बच्चे समाज मे घुल मिल सकें।

निरंतरता जरूरी 
इन एक्टिविटीज या फिजियोथेरेपी के लिए जरूरी है कि एक बार इन्हें शुरू करने के बाद लगातार बिना नागा इनका प्रयोग किया जाए। चाहे आप किसी हॉस्पिटल से जुड़ें या फिजियोथैरेपी क्लिनिक से, आपको एक्सरसाइज को लगातार करवाते रहना है। आप एक बार में डॉक्टर या फिजियोथैरेपिस्ट से एक्सरसाइज का तरीका सीखकर बच्चे को घर पर भी नियमित अभ्यास करवा सकते हैं। यह याद रखिए, ऑटिज्म की अवस्था वाले बच्चों को भी दया नहीं सही साथ और सहयोग की जरूरत होती है। कोशिश करते रहने से बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।

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