ब्‍लॉगर राजनीति

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

एक तीर से कई निशाने लगा दिए गौरव ने
भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे जिस तरह अपनी कार्यशैली को लेकर चर्चित हैं, उसने उन्हें बड़े नेताओं का मुरीद भी बना दिया है। गौरव ने अपने पौने दो साल के कार्यकाल में पीछे मुडक़र नहीं देखा है और उपचुनाव से लेकर पार्टी के बड़े आयोजनों को अपनी सूझबूझ से निपटा भी दिया। वे केवल फंसे थे तो अपनी कार्यकारिणी घोषित नहीं कर पाने के चक्कर में, लेकिन शहर में हो रही कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधकर बता दिया कि वे एक राजनीतिज्ञ की तरह सोचते हंै और करते भी वैसा ही हैं। दरअसल नई कार्यकारिणी के स्थान पर उन्होंने बैठक में अपेक्षित वर्ग की सूची में उन लोगों को भी शामिल कर लिया जो नगर के पदाधिकारियों के संभावित नाम हो सकते हैं। वैसे इनमें से ही अधिकांश पदाधिकारी चुने जाना हैं और गौरव की ये तरकीब प्रदेश के उन जिलों में भी अपनाई जा सकती है, जहां अभी तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है।

क्या अरुण का पेंचअप हो गया?
प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और उनसे नाराज रहने वाले अरुण यादव दोनों में क्या पेंचअप हो गया है? राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है, क्योंकि जिस तरह से दोनों नेताओं की भोपाल में मुलाकात हुई और उसके बाद अरुण के तेवर खलघाट आंदोलन को लेकर ढीले पड़े हंै, उससे ये शंका और बढ़ गई है। वैसे कहा जा रहा है अरुण अब इस आंदोलन को कमलनाथ के नेतृत्व में ही करेंगे। अरुण के नजदीकी कह रहे हैं कि फिर भी वे एक बार ताकत तो दिखाएंगे।

समय के पाबंद हैं पंडित नरोत्तम मिश्रा
प्रदेश के मंत्रियों में अगर कोई समय का पाबंद है तो वो हैं पंडित नरोत्तम मिश्रा, जो गृह-जेल के साथ-साथ इंदौर के प्रभारी मंत्री हैं। उनका दौरा कभी भी लेट नहीं होता। होता भी है तो मात्र 10 या 15 मिनट। नहीं तो मंत्रियों का क्या है, वे कितने भी लेट हो जाएं, उनके इंतजार का मजा बढ़ जाता है और वो नेता या मंत्री ही क्या, जिसके इंतजार में लोग पलक-पांवड़े न बिछा के बैठे रहें। हालांकि मिश्रा के बारे में ये बात गलत बात साबित हो रही है और वे दूसरों के लिए सबक भी बन रहे हैं।

संजय शुक्ला की दौड़ क्षेत्र एक तक तो नहीं?
संजय शुक्ला को समझने वाले उनकी दूर की राजनीति को समझने की कोशिश कर रहे हैं। शुक्ला जिस तरह से एक नंबर विधानसभा में दबदबा बनाए हुए हैं, उसको देखकर तो लग रहा है कि अब यहां से भाजपा के उम्मीदवार को खूब कसरत करना पड़ेगी, क्योंकि शुक्ला किसी न किसी आयोजन के बहाने क्षेत्र में बने रहते हैं। अब वे अपने ही क्षेत्र के लोगों के साथ अयोध्या यात्रा पर हैं। दो नंबर यूं ही भाजपा का अभेद्य किला नहीं बना और उसी तर्ज पर शुक्ला के भोजन-भंडारे भी चल रहे हैं। वैसे शुक्ला की ये दौड़ एक नंबर में कांग्रेस की राजनीति तक सीमित नहीं है। महापौर के लिए उनका नाम वैसे ही कांग्रेस ने घोषित कर रखा है, लेकिन शुक्ला की राजनीतिक चाल कुछ और इशारा कर रही है। जिस तरह से वे देवकीनंदन ठाकुर की कथा में पहुंचे और अयोध्या यात्रा के विज्ञापन में आकाश विजयवर्गीय और उनकी टीम का फोटो लगाया, उससे कहीं न कहीं कुछ तो पक रहा है।


नहीं हट पाया भाजपा नेता का कब्जा
राजबाड़ा पर महालक्ष्मी मंदिर की दीवार से सटकर भाजपा नेता की दुकान है और दोनों के बीच की गली पर उक्त नेता ने कब्जा कर वहां तक अपनी दुकान बढ़ा रखी है। नगर निगम वालों ने एक बार हाथ भी डाला, लेकिन भाजपा नेता के बेटों ने ऐसी धमकी दी कि अब उधर जाकर कोई नहीं देखता और सामान रोड तक जमा रहता है। पिछले दिनों यहीं पास में नगर निगम वाले फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों के सामान समेटते नजर आए, लेकिन नेताजी का अतिक्रमण और सडक़ तक फैला सामान उन्हें नहीं दिखा।

उमेश ने साबित किया वे ही हंै भाजपा प्रवक्ता
उमेश शर्मा या कह लो भाजपा के भोंपू…जब भी बजते हैं ऐसा बजते हैं कि सामने वाले को कान बंद करना पड़ता है। ये काम उमेश कई सालों से करते आ रहे हैं। टीवी की डिबेट हो या मंच पर भाजपा की बात कहना हो उमेश का जोश ऐसा है कि उसने इंदौर के दो और प्रवक्ताओं को ठंडा कर रखा है। एक तो दिव्या गुप्ता हैं और दूसरे सहमीडिया प्रभारी टीनू जैन। दोनों की कोई पूछपरख नहीं है, क्योंकि उनके तरकश में ऐसे तीर नहीं हैं, जो सामने वाले पर सीधे हमला कर सकें। इसलिए अभी तो चारों ओर केवल उमेश शर्मा ही छाए हुए हैं।

पंचायत चुनाव की अलग राजनीति
कहने को पंचायत चुनाव किसी दल के नहीं होते हैं, लेकिन इसमें उन छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं का हित रहता है जो हमेशा अपने से बड़े नेता के आगे-पीछे होते रहते हैं और फिर इन कार्यकर्ताओं का ध्यान रखना नेता का फर्ज बनता ही है। आज नामांकन की आखिरी तारीख है और नेता चाहते हैं कि उनके ही लोग उम्मीदवार बनकर जीतें। इसके लिए विधायक विशाल पटेल ने एक अलग बैठक रखी और अपने लोगों के नाम इक_ा किए। हालांकि दूसरे दिन जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव ने भी बैठक रखी थी, लेकिन उसमें देपालपुर के अधिकांश नेता नदारद थे। जाहिर है वे अपने नेता, यानी विधायक पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं।
शहर में हुई एक कथा चर्चा में हंै। कथा जिनके क्षेत्र में करवाई गई वे नाराज हंै, क्योंकि इसका मजमा यजमान बनकर कोई और लूट ले गया। वैसे जो यजमान था, उसकी नजर निगम चुनाव मेंं इसी वार्ड पर है। कुश्ती डल गई और देखना है कौन उस्ताद साबित होता है? -संजीव मालवीय

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