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अंतिम सोमवार को ओंकारेश्वर पहुंचे हजारों श्रद्धालु

ओंकारेश्वर। पिछले दो सप्ताह से रोजाना यह देखने में आ रहा है कि इस बार के श्रावण मास (shravan month) में पिछले श्रावण मास पर्वों की अपेक्षा भारी संख्या में श्रद्धालु गण (pilgrims) रोजाना पहुंच रहे हैं। सप्ताह के दौरान आने वाले रविवार एवं सोमवार के दिन श्रद्धालुओं की संख्या इस हद तक बढ़ रही है कि ओमकारेश्वर एवं ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Mamleshwar Jyotirlinga Temple) के मंगल करने के समय रात्रि 8 से 8.30 तक भी दोनों मंदिरों में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने वालों की संख्या हजारों में देखी जाती है। इसकी मुख्य वजह यह भी मानी जा रही है कि महाराष्ट्र एवं अन्य प्रांतों के धार्मिक स्थल एवं मंदिर बंद है तथा पिछले एक डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी के चलते लोग बाहर निकलने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। इसी का परिणाम है कि ओमकारेश्वर तीर्थ नगरी में इस श्रावण मास के दौरान रोजाना ही भारी संख्या में श्रद्धालुओं का के पहुंचने का क्रम जारी है।



जानकारी के अनुसार स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती भारी संख्या को देखते हुए अपरान्ह 4 बजे बाद नगर के झूला पुल एवं जेपी चौक के से लगे पद गामी पुल से यात्रियों का आवागमन कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था तथा नाव का संचालन भी बंद किया गया। सोमवार पर्व पर भी ओमकारेश्वर में नाव का संचालन पूरी तरह बंद रहा। यात्रियों की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने यह कदम उठाया था। पदगामी पुल से यात्रियों को दर्शन के लिए कतारों में लगकर आने की सुविधा दी गई थी जबकि वापस उन्हें झूला पुल से जाना पढ़ रहा था। इसी तरह झूला पुल से जो यात्रीगण दर्शन हेतु आ रहे थे उन्हें ऊपर के क्षेत्र से पुराने व्यवस्था के अनुसार घुमाकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करवाए जा रहे थे।


रजत निर्मित पालकी में निकली भगवान ओमकारेश्वर की सवारी
श्रावण मास के अंतिम सोमवार पर्व पर ओंकारेश्वर मंदिर से भगवान भोलेनाथ की पंचमुखी रजत प्रतिमा को चांदी से निर्मित पालकी में बैठा कर ढोल नगाड़ों के साथ कोटि तीर्थ घाट लाया गया। यहां पर भगवान भोलेनाथ की पंचमुखी प्रतिमा का पंडित राजेश्वर दीक्षित एवं सहयोगी पंडितों द्वारा गगनभेदी मंत्रोर के साथ अभिषेक किया गया इस दौरान बड़ी संख्या में भगवान भोलेनाथ के भक्त गण उपस्थित थे। इसी तरह ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कि भगवान भोलेनाथ की दो मुखी पीतल की प्रतिमा को कास्ट निर्मित पालकी में बैठा कर स्थानीय गोमुख घाट पर लाया गया यहां पर उनका पूजन अभिषेक विद्वान पंडितों द्वारा विधि विधान से किया गया। इस दृश्य का आनंद लेने के लिए बड़ी संख्या में शिव भक्त गण यहां भी उपस्थित थे। सवारी के प्रारंभ होने से लेकर वापस मंदिर पहुंचने के संपूर्ण मार्ग में भोले शंभू भोलेनाथ के जयघोष के साथ गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां तथा आरती उतारकर भगवान भोलेनाथ की सवारी का स्वागत अनेक शिव भक्तों ने स्थान स्थान पर किया। दोनों मंदिरों की सवारियों के पूजन अभिषेक के पश्चात उन्हें नावो के समूह में अलग-अलग नो का भ्रमण करवाया गया।
परंपरा अनुसार ओमकारेश्वर मंदिर की सवारी इस पार के केवल राम घाट पहुंची। इसके पश्चात इस सवारी को उस पार शिवपुरी क्षेत्र के ओंकार मठ घाट लाया गया। यहां से भगवान ओमकारेश्वर की सवारी शिवपुरी क्षेत्र के मुख्य बाजार से होते हुए रात्रि 7.30 बजे ओमकारेश्वर मंदिर पहुंची। दूसरी ओर ममलेश्वर मंदिर की सवारी उस पार के कोटि तीर्थ क्षेत्र घाट पहुंची तथा यहां से पुनः यह सवारी गोमुख घाट वापस पहुंची। ममलेश्वर मंदिर की सवारी में भी इसके प्रारंभ प्रारंभ से लेकर समापन तक पालकी के साथ चल रहे शिव भक्त संपूर्ण मार्ग में भोले शंभू भोलेनाथ के जयघोष के साथ गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां उड़ाते दिखाई दिए तथा यहां से शिव भक्तों के साथ भोले शंभू भोलेनाथ का जयघोष करते हुए ममलेश्वर मंदिर पहुंची।

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