देश

टाइगर जिंदा तो है पर दाने-दाने को मोहताज


शहीदों की याद…जिंदा बेहाल….ये हाल है देश के जिंदा जाबाजों का
नई दिल्ली। देश आज पुलवामा (Pulwama) शहीदों को याद कर रहा है, लेकिन कुछ ऐसे देशभक्त जाबांज भी हैं, जिन्हें लोग न केवल भूल चुके हैं, बल्कि वे दुर्गती में जी रहे हैं।


इन्हं जाबांजो में एक रॉ के पूर्व एजेंट मनोज रंजन दीक्षित (Manoj Ranjan Dixit) हैं जो आज दाने-दाने को मोहताज हो रहे हैं। जासूसी के जुर्म में पाकिस्तान में गिरफ्तार होने के बाद दीक्षित 2005 में वाघा बार्डर से भारत आए थे। गिरफ्तारी के दौरान उन्हें कई बार टार्चर किया गया, लेकिन उन्होंने देश से गद्दारी नहीं की। कुछ साल पहले यह कैंसर पीडि़त पत्नी का इलाज कराने लखनऊ आए थे। पत्नी की मौत के बाद दीक्षित लखनऊ (Lucknow) में ही स्टोरकीपर की नौकरी करने लगे। उनके रॉ एजेंट होने का खुलासा उस समय हुआ जब दीक्षित नजीराबाद के डीएम दफ्तर में अपनी फरियाद लेकर पहुंचे और उन्होंने कहा कि मैं पूर्व रॉ एजेंट हूं मुझे रहने के लिए छत चाहिए। देश के इस जांबाज की गुहार के बावजूद कलेक्टर उनसे नहीं मिले और उन्हें घर लौटना पड़ा।


13 साल पाकिस्तान की हिरासत में रहे दीक्षित
1992 में गिरफ्तार होने के बाद 2005 में रिहा हुए दीक्षित 13 साल तक पाकिस्तान की यातनाएं सहते रहे। रॉ एजेंट रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण जानकारियां देश को दी। दीक्षित ने कांट्रेक्ट साइन किया था कि पकड़े जाने पर वे रॉ एजेंट का राज नहीं खोलेंगे।

 

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