खरी-खरी

सच कहें तो… इंदौर को इस बार नहीं मिलना चाहिए स्वच्छता का सातवां पुरस्कार…

अहंकार के विकार में डूब चुका है यह शहर… यहां की व्यवस्था… यहां के अधिकारी…. लगातार पुरस्कार से उपजी लापरवाही शहर को कबाड़ बनाती जा रही है… चारों ओर गंदगी फैलने लगी… सफाई मित्र उदासीन होने लगे… सडक़ों पर कचरे के ढेर लगने लगे… केवल अंक बटोरकर आगे पाठ पीछे सपाट जैसी स्थितियों से गुजरता शहर सातवीं जीत की दावेदारी तो कर रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि शहर में ऊपर बेलबूटा, अंदर पेंदा फूटा जैसी स्थिति नजर आ रही है… कचरा कलेक्शन की गाडिय़ां कई जगह कई-कई दिन तो कई जगह समय पर नहीं आ रही हैं… शिकायतों की संख्या बढती जा रही है… नाला टेपिंग में तो हमने कमाल कर दिया… भ्रष्ट अधिकारियों ने पूरे शहर में नाले खोदकर ढक्कनों से टेप दिया… एक पाइप नीचे, दूसरा ऊपर कर डाला… लिहाजा पानी गुजरता नहीं और सडकों पर जरा सी बारिश में पानी भर जाता है… स्वच्छता के अंक बटोरने की जल्दबादी में पूरा शहर तालाब बना डाला… नाला टेपिंग तो हुई नहीं अधिकारियों ने जमकर नोट टेपिंग की… कचरा निपटान केन्द्र की हालत यह है कि कचरा ज्यादा है, निपटान कम… लिहाजा ट्रेचिंग ग्राउंड पर फैलती बदबू से गुजरने वालों का दम घुट रहा है… शहर के विभिन्न स्थानों पर स्थित कचरा निपटान केन्द्रों पर फैलता कचरा शहरियों की जान ले रहा है… कंगाल हो चुके निगम ने पूरे शहर में काम फैला डाले… भुगतान न होने की स्थिति में एक ठेकेदार मर चुका है और बाकी अधमरे पड़े हैं… लिहाजा पूरे शहर में सडक़ें खुदी पड़ी हैं… गड्ढे खुले पड़े हैं… कीचड़ फैल रहा है… और हम स्वच्छता के सातवें खिताब के सपने देख रहे हैं… ऐसा नहीं है कि निगम ने आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपय्या की तर्ज पर काम खोल लिए… हकीकत है कि राज्य शासन ने निगम का अरबों रुपया रोककर लाड़ली बहना में फूंक डाला… बच्चों को स्कूटी बांट दी और छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ते जैसी बड़ी दुकानें खोलकर इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश के निकायों की दुकानें बंद करवा डाली… आलम यह है कि हम पुराने इंदौर की तरफ लौट रहे हैं और देश के अन्य दावेदार शहर स्वच्छता की प्रतिस्पर्धा में हमसे कहीं आगे दौड़ रहे हैं… सूरत की शक्ल सुंदर हो चुकी है… हैदराबाद आबाद होते जा रहा है और हमारा शहर बर्बादी की ओर बढ़ रहा है… इस अंधेरे में उजाले की एक ही किरण नजर आ रही है… नगरीय निकायों का मंत्रालय इंदौर के ही मैनेजमेंट मास्टर कैलाश विजयवर्गीय के हाथों में आ चुका है… यह चुनौती भी है और सौभाग्य भी… लेकिन पराभव के मुहाने की ओर जा रहे इंदौर को पटरी पर लाने के लिए शहर को पुरस्कार नहीं परीक्षा में जुटना होगा… गिरने से पहले हमें संभलना होगा… स्वच्छता के खिताब तो कई मिल चुके… अब हमें अपने मिजाज को स्वस्थ करना चाहिए… खिताब मिले तो खिताबी दिखना भी तो चाहिए…

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