खरी-खरी

हार नहीं… हाय लगी

 

जब सारा देश कर रहा था चीत्कार, तब देश के मुखिया कर रहे थे चुनाव प्रचार… क्या मुखिया, क्या मुख्यमंत्री… क्या नेता, क्या अधिकारी… क्या सरकार, क्या जिम्मेदार… देशभर की वेदना पर मरी हुई संवेदनाओं की ऐसी निर्ममता देश ने देखी और भुगती जो कल्पना से बाहर हैं… बिखरी हुई लाश के बीच एक मामूली सी जीत की जद्दोजहद… आंसुओं की सुनामी और बिखरती सांसों के बीच खुशियों की आस कुछ इस तरह चिढ़ा रही थी जैसे आसुरी शक्तियां मानवता का परिहास कर रही हों… वो जागते तब तक बहुत से सो चुके थे… वो भागते तब तक कई जिंदगियों के पैर उखड़ चुके थे… चुनाव के लिए वो रैलियों की होड़ लगा रहे थे… मंचों पर दहाड़ रहे थे… लेकिन जब जिंदगी और मौत का सवाल आया तो बंद कमरों से व्यवस्थाएं संभाल रहे थे… अपनी आवाज जनता तक पहुंचाने की जरूरत करने वाले केजरीवाल पर दहाड़ रहे थे… सब कुछ असहनीय था किंतु हर व्यक्ति बेबस होकर जान बख्शने की गुहार लगा रहा था… टुकड़े-टुकड़े जिंदगी मांग रहा था… कहीं ऑक्सीजन तो कहीं दवाओं के लिए देश मरा जा रहा था… वक्त इतना लग गया कि जब मोदीजी अपनी जीत के परिणाम पर नजर लगाए बैठे थे, तब भी देश जिंदगी की जंग में जुटा था… आज भी जुटा है… लेकिन कल तक इस देश की जनता के पास कोई जवाब न था… आज है… यह हार नहीं हाय है… आप 200 पार का नारा लगा रहे और देश में मौतें 2 लाख पार हो गई… आप जुमले उछालते रहे और इधर कोरोना जिंदगियां उछालता रहा… आप उड़ानें भरते रहे और यहां चिताओं के लिए श्मशान कम पड़ गए… आक्रोश से बिलबिलाती जनता ने अपना हिसाब चुकाया है… लेकिन यह हिसाब केवल एक राज्य का है… राष्ट्र अभी बाकी… सवाल अभी बाकी है… काश मोदीजी चुनाव प्रचार छोड़ देते… सबको अपनी जिम्मेदारी संभालने के लिए कह देते… मुख्यमंत्रियों को लौटा देते… महकमे को काम पर लगा देते… सबको जिम्मेदारी का सबक सिखा देते तो बंगाल के परिणाम कुछ और हो सकते थे… अंतिम 4 चरणों के 100 सीटों पर हुए चुनाव में हारी 97 सीटों में से कईयों पर जीत हासिल कर सकते थे… क्योंकि यह देश निर्मम नहीं दयावान है… इस देश में जान से ज्यादा संवेदनाओं का मान है… इस देश में जिंदगी से ज्यादा भावनाओं की कीमतें हैं… सर पर हाथ रख देते …जो बन सकता वो कर देते… सांसें नहीं दे पाते तो आस ही दे जाते तो सारे के सारे मिलकर लडऩे के काबिल हो जाते… लेकिन कई प्राण हार चुके देश में जीत की जुगत भिड़ाना…संवेदनाओं को रौंदकर अहंकार दिखाना… लाशों पर चढक़र मंचों पर जाना… जब देश मोदी-मोदी की गुहार लगाए, तब दीदी-ओ-दीदी कहकर परिहास जताना परिणाम भी है और प्रमाण भी है… जब हिमाकत बढ़ जाती है, तब शक्तियां ताकत दिखाती हैं और इस बात का अहसास कराती हैं कि यह हार नहीं हाय है…

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