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सच बोलने का पाठ सबने पढ़ाया सच सुनना किसी ने नहीं सिखाया

June 07, 2025

मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने फिर लड़कियों के कम कपड़ों पर सवाल उठाया…फिर शहर के कुछ समझदारों को रास न आया…युवाओं ने तो जमकर गुस्सा बरसाया… सोशल मीडिया को कुतर्कों का बाजार बनाया…कसूर उनका नहीं हमारा है… हमने…हमारे गुरुओं ने… हमारे ग्रंथों ने सबको सच कहने का पाठ तो पढ़ाया, लेकिन सच सुनने… सच सहने और सच को समझने का ज्ञान किसी ने नहीं बताया…सदा सच बोलो…कहने वाले ज्ञानी-विद्वानी यह भी नहीं कह पाए कि कभी सच भी तो सुनो…लिहाजा हमारे देश में सच सुनने की परंपरा ही नहीं…हम सच को कड़वा कहते हैं और सुनते ही बरस पड़ते हैं…चापलूसी को सम्मान समझते हैं और करने वाले को गले लगाते हैं…हमारे यहां सच बोलना गुनाह समझा जाता है…निंदक को दुश्मन माना जाता है और सच तो यह है कि किसी ताकतवर को आईना दिखाने वाला…सच कहने वाला…निंदा करने वाला तबाह तक कर दिया जाता है…इसलिए सच वही है, जो लोग सुनना चाहें…कोई नंगा घूमे तो उसके नंगेपन पर उंगली मत उठाइए…कोई घपला करे तो उसे चोर कहकर मत पुकारिए… कोई लूटे-खसोटे…दमन करे तो उसके आगे सर झुकाइए…यही लोग चाहते हैं…इसे ही स्वीकारते हैं…यह और बात है कि जब देश में बलात्कार बढ़ जाते हैं…लोगों के अधिकार छीने जाते हैं… लोग अपनी कमाई लुटाते हैं…सज्जनता नोंची जाती है…सभ्यता रौंदी जाती है…घर की इज्जत सडक़ों पर लाई जाती है तो लोग पुलिस और प्रशासन…सरकार और नेताओं पर उंगली उठाते हैं…उन्हें जिम्मेदार मानते हैं… शहर पर बदनामी और बर्बादी की तोहमतें लगाते हैं…संस्कृति केवल अपने घर में चाहते हैं…पड़ोसी के घर की अश्लीलता को फैशन मानते हैं…यह दुनिया ऐसे ही चलती है…चलती रहेगी… फिर विजयवर्गीय यदि नग्नता को शूपर्णखा कहें तो उसे महिलाओं का अपमान माना जाएगा…पहनावे पर हिदायत को हिमाकत समझा जाएगा…और वैसे भी प्रहार जड़ पर होना चाहिए…अश्लीलता टीवी चैनलों से परोसी जा रही है…सोशल मीडिया की गंदगी दिमागों को वहशी बना रही है…उन पर रोक लगाने और समुद्र का प्रवाह मिटाने के बजाय लोटे से पानी निकालने की कोशिश किसी तूफान या तबाही को नहीं रोक पाएगी…हम पाश्चात्य संस्कृति भी चाहते हैं और अपनी संस्कृति को भी बचाना चाहते हैं…हम फैशन शो भी कराना चाहते हैं और फैशन को रौंदना भी चाहते हैं…हम मिस इंडिया को घूंघट पहनाकर प्रतिस्पर्धा में लाना चाहते हैं और मिस वल्र्ड भी बनाना चाहते हैं…देश की दोहरी मानसिकता संस्कृति भी चाहती है और विकृति भी…ऐसे में डूबना भी लोगों को ही है और बचना भी लोगों को ही है…जो चाहे स्वीकारें, लेकिन अपराध बढऩे पर…अपराध होने पर किसी और को जिम्मेदार मत ठहराइए…

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