जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

Corruption का पुलिंदा बना पुल

  • फ्लाईओवर की गुणवत्ता में प्राइवेट लैब व ठेका कंपनी एनसीसी ने खेला करोड़ों का खेल
  • सरकारी लैब के बाद भी भोपाल की प्राइवेट लैब को दिया गया टेस्टिंग का ठेका

जबलपुर। लंबी कवायद, चार टेण्डर प्रक्रिया के बाद दमोह नाका-मदन महल फ्लाईओवर का निर्माण आरंभ तो हो पाया पर इसके निर्माण की गति बताती है कि तय समय सीमा में इसका बन पाना बेहद कठिन होगा। अभी निर्माण जहां चल रहा है, वहां पिलर तो दिखने लगे और काम होता भी दिख रहा है, पर पूरी ऊर्जा के साथ और जरूरी हिस्सों में पहले प्राथमिकता से काम हो ऐसा कतई नजर नहीं आ रहा है। इस उपयोगी संरचना का निर्माण टारगेट 36 माह है इनमें से कई माह गुजर गए । इसी प्रकार लॉक डाउन की आड़ में अधिकारी भी घरों में दुबक कर बैठ गए हैं, जिसके कारण ठेकेदार कंपनी लगातार गुणवत्ता में जमकर समझौता करके अपनी मनमानी कर रही है।


नर्मदा की रेत होने के बावजूद भी डस्ट का हो रहा है इस्तेमाल
फ्लाई ओवर में शहर के निर्माणाधीन क्षेत्र में कॉलम का कार्य प्रारंभ हो चुका है जिसमें की कई प्रकार के प्रश्न अभी से उठने लगे हैं सूत्र बताते हैं कि यह कॉलम डस्ट से भरे जा रहे हैं। जानकारों का कहना है जब शहर में नर्मदा की रेत मौजूद है तो फिर क्यों डस्ट से इन कॉलम को भरा जा रहा है!! डस्ट की मिलावट व गिट्टी के चूरे के कारण आने वाले वक्त में कंक्रीट क्रेक आने की भी संभावनाएं बनी हुई है। अर्थात कॉलम में भरे जा रहे मटेरियल की टेस्टिंग को भी लेकर सवाल उठ रहे हैं।

सीवर लाइन डैमेज
फ्लाईओवर के निर्माण के दौरान शहर के कुछ हिस्सों पर सीवर लाइन भी डैमेज हो रही हैं ऐसी स्थिति में कंपनी को इन्हें ठीक भी करके देना है। 3 साल के कार्यकाल में कंपनी का 1 साल बीत चुका है अर्थात कंपनी के समक्ष यह भी चुनौती है कि सीवर लाइन का भी कार्य सुधार कर देना होगा । लोक निर्माण विभाग के अधिकारी लाख दावे करें कि काम तय सीमा में होगाए पर अभी बड़े हिस्से में काम आरंभ नहीं हो सका है और किसी तरह का मूवमेंट भी नजर नहीं आ रहा है। वैसे यदि तय सीमा में निर्माण पूरा नहीं होता हैए तो ठेका लेने वाली एजेंसी को प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना अदा करना होगा।इसी तरह यदि लोक निर्माण विभाग देरी करता है, तो उसको भी जुर्माना देना होगा। दावों से अलग मौके पर हालात यही नजर आते हैं, अगर इसी गति से प्रक्रिया चली तो आने वाले 5 सालों में इसका बनकर तैयार हो पाना कठिन है।

चौड़ाई को भी लेकर लगातार संशय बरकरार
ऐसा कहां जा रहा है कि यह फ्लाईओवर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा और चौड़ा फ्लाईओवर होगा परंतु सिंगल पाए में यह फ्लाईओवर कितना चौड़ा हो सकता है। इस बात को भी लेकर आम जनता के मन में संशय बरकरार है क्योंकि सिंगल पाए को देखते हुए अगर इस ब्रिज कि हम परिकल्पना करते हैं तो हमें शहर में एक और शास्त्री ब्रिज बना दिखाई देता है ए ऐसा फ्लाईओवर जो कि थोड़ा कम चौड़ा होगा। कहीं ना कहीं लोगों के मन में यह छवि बनाई गई है कि यह फ्लाईओवर कछपुरा ब्रिज जितना चौड़ा होगा अगर शास्त्री ब्रिज जितना फ्लाईओवर का निर्माण होता है तो इसकी चौड़ाई कम ही रहेगी और फिर जिस प्रकार से शास्त्री ब्रिजमें जाम की स्थिति निर्मित हो जाती है। अर्थात कल्पना कीजिए अगर एक गाड़ी भी आपकी रूकती है तो पूरे फ्लाईओवर में जाम तो हो ही जाएगा और सिंगल लेन की भी स्थिति निर्मित हो जाएगी।

यहां से गुजरना मुसीबतों से भरा
फिलहाल जहां फ्लाईओवर के पिलर तैयार हो रहे हैं उस हिस्से में सड़क से निकलना एकदम मुसीबतों से भरा है। वैकल्पिक प्रबंध ट्रैफिक पुलिस ने किए नहीं और किसी तरह रेंगकर आदमी आसपास से निकल रहा है। राह से गुजरने वाले यही सोचते हैं कि अगर यह जल्द बनकर तैयार नहीं हुआ, तो सालों यहां रोना बरकरार रहेगा।

टेस्टिंग में भी हो रहा है बड़ा झोल
सूत्र बताते हैं कि अधिकारी फील्ड पर नहीं है जिसके कारण इन सभी सैंपलों की टेस्टिंग सही सुचारू रूप से नहीं हो रही है क्योंकि जबलपुर की किसी भी लैब को सैंपल टेस्टिंग का ठेका नहीं दिया गया है। इसलिए इन सभी सैंपलों की टेस्टिंग भोपाल की हाईटेक लैब से करवाई जा रही है परंतु देखने में आ रहा है कि इन सैंपल टेस्टिंग का कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। अधिकारियों द्वारा स्वयं टेस्टिंग के वक्त अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई जा रही है क्योंकि आधा विभाग कोरोना के डर से घरों में बैठा हुआ था । जिसके कारण कंपनी भी अपने मनमाने ढंग से सैंपलिंग करते हुए कॉलम खड़ी करती जा रही है। नाही अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार की सामने से कोई भी विटनिस टेस्टिंग करवाई जा रही है और ना ही किसी भी प्रकार की थर्ड पार्टी टेस्टिंग की जा रही है। वही सूत्र बताते हैं कि एनएबीएल की 20 परसेंट टेस्टिंग सामने होनी चाहिए जिसका इस कार्य से कोई सरोकार नहीं दिख रहा है वहीं अस्सी परसेंट टेस्टिंग डिपार्टमेंट की लैब में होनी चाहिए। परंतु डिपार्टमेंट की भी लैब बंद पड़ी हुई है क्योंकि डिपार्टमेंट में सरिया की मशीन भी नहीं है। इसी कारण लोहे की टेस्टिंग के लिए कंपनी को बार-बार भोपाल जाना पड़ रहा है, जिसके चलते यह प्रश्न उठ रहा है कि लोहे की भी टेस्टिंग कितनी ऑथेंटिक हो रही है क्योंकि हर चार गाड़ी के बाद रेत, सीमेंट, गिट्टी की टेस्टिंग जरूरी है और इन सब की टेस्टिंग भोपाल से हो रही है वहीं कुछ जानकार कह रहे हैं कि बार-बार टेस्टिंग के लिए भोपाल जाना और इन सैंपलों की टेस्टिंग की रिपोर्ट पास हो जानाए यह भी कई प्रकार के प्रश्न खड़े कर रहा है। टेस्टिंग का कार्य भोपाल की हाईटेक लैब को दिया गया है जो कि भोपाल ब्रिज और जबलपुर ब्रिज के सैंपल टेस्टिंग का कार्य कर रही है। जबलपुर ब्रिज काअब तक यह एक करोड़ का कार्य कर चुकी है।टेस्टिंग के दौरान बार-बार प्रश्न यह उठ रहा है कि अधिकारी कब भोपाल जा रहे हैं और करो ना का बहाना लेकर जो अधिकारी अपने घरों में बैठ गए हैं वे किस तरह कंपनी के कार्यों का अवलोकन का माप दंड निर्धारित कर रहे हैैं, यह तो सिर्फ कंपनी और यह अधिकारी वर्ग ही बता पाएंगे।

इनका कहना
आपके द्वारा यह मामला मेरे संज्ञान में लाया गया है जल्द से जल्द इस प्रकार की शिकायतों का निराकरण किया जाएगा और यह ध्यान रखा जाएगा कि भविष्य में आम जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े।
सुरेश वर्मा, चीफ इंजीनियर लोक निर्माण विभाग जबलपुर

शुरू से ही फ्लाईओवर में कई प्रकार के भ्रष्टाचार की बात सामने आ रही हैं कुछ दिन पूर्व महिला भी दुर्घटना का शिकार भी हुआ था। युवा कांग्रेस जल्द इन मुद्दों पर अधिकारियों से वार्तालाप करेंगी। अगर निवारण नहीं हुआ तो युवा कांग्रेस सड़कों पर उतरेगी।
जतिन राज, युवक कांग्रेस नेता

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