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UCC: 75 साल पुरानी है यह बहस, देश में एक समान कानून चुनौती से कम नहीं

नई दिल्ली (New Delhi)। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) (Uniform Civil Code -UCC) यानी निजी जीवन के लिए बना ऐसा कानून, जिसे हर नागरिक को बाकी नागरिकों की तरह मानना होगा, चाहे वह किसी भी धर्म या मान्यता में विश्वास रखता हो। इनमें विवाह, तलाक, मुआवजा, उत्तराधिकार व संपत्ति, आदि से संबंधित कानून आते हैं। 75 साल पहले (75 years ago) संविधान सभा (Constituent Assembly) में बहस के दौरान यूसीसी से जुड़े कई तर्कों के संतोषजनक जवाब दिए गए तो कुछ के जवाब भविष्य में बनने वाली लोकतांत्रिक सरकार (Democratic government) के विवेक पर भी छोड़ दिए गए।

दरअसल, हमारे संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्व दिए गए हैं। इसका अनुच्छेद 44 कहता है, ‘शासन को प्रयत्न करना होगा कि देश के सभी क्षेत्रों में रह रहे नागरिकों के लिए वह समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करे।’ यह अनुच्छेद भारत के संविधान निर्माताओं के मन में यूसीसी के विचार पुष्टि करता है और पीएम मोदी भी इसी आधार पर जोर दे रहे हैं।


जब बेग बोले…1350 साल से इस्लामी कानून मान रहे हैं, अब नया नहीं मानेंगे
मद्रास से संविधान सभा सदस्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम 1937 बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले महबूब अली बेग ने यूसीसी पर बहस में कहा था, नागरिक संहिता… मेरा मानना है कि ये शब्द नागरिकों के निजी कानूनों को लेकर नहीं हैं। बेग ने कहा कि किसी धार्मिक समुदाय के माने जा रहे कानून इसमें नहीं आते। अगर इसे नागरिकों के निजी कानून से जोड़ा जा रहा है तो मैं बताना चाहूंगा कि कुछ धार्मिक समुदायों को अपने निजी कानून प्रिय हैं। मुसलमानों के लिए उत्तराधिकार, विरासत, निकाह, तलाक जैसे मामलों के कानून उनके मजहब पर निर्भर हैं। 1350 साल से मुसलमान इसे मानते आए हैं। अगर आज निकाह का कोई और तरीका लागू होता है, तो हम ऐसे कानून का पालन करने से इनकार करेंगे, क्योंकि यह हमारे मजहब के अनुसार नहीं होगा। इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहिए।

डॉ. आंबेडकर का जवाब…तो कई राज्यों में 1937 तक हिंदू कानून से कैसे चलते थे
बेग की बात का जवाब देते हुए सभा के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था, मैं इस तर्क को चुनौती देते हुए बताना चाहूंगा कि वे भूल रहे हैं कि साल 1935 तक नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस शरियत कानून के अधीन ही नहीं था। यहां विरासत व अन्य मामलों के लिए हिंदू कानून लागू थे।

डॉ. आंबेडकर ने कहा कि 1939 में केंद्रीय विधायिका को इसे रोक कर मुसलमानों के लिए शरियत कानून लागू करना पड़ा। 1937 तक यूनाइटेड प्रोविंस (आज का उत्तर प्रदेश), सेंट्रल प्रोविंस और बॉम्बे क्षेत्र के मुसलमान एक बड़े स्तर तक हिंदू कानूनों के अनुसार शासित थे। शरियत मानने वाले मुसलमानों से उनकी समानता रखने के लिए विधायिका ने हस्तक्षेप कर 1937 में कानून लागू किया।

उत्तर मालाबार में हिंदू हों या मुसलमान, सब पर मरुमक्कथायम कानून लागू हैं, जो मातृसत्तात्मक व्यवस्था है। वहां के मुसलमान उसी कानून को मानते आए हैं। इसलिए ऐसे बयान देना बेकार है।

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