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Climate Change पर यूएन रिपोर्ट मानवता के लिए एक चेतावनी, दंसान धरती पर भाग कर नहीं बचा पाएगा जान

जिनेवा। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर संयुक्त राष्ट्र(UN) द्वारा नियुक्त अंतरसरकारी समिति (IPCC) की एक नई रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें वैश्विक तापमान के बारे में नवीनतम आधिकारिक जानकारी का सारांश दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र(UN) ने दावा किया है कि धरती का तापमान अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी के साथ बढ़ रहा है और इसके लिए साफ तौर पर मानव जाति जिम्मेदार है। इसे मानवता के लिए ‘कोड रेड’ करार दिया गया है। यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन के जिन खतरों के भविष्य में आने की आशंका थी, वे वक्त से पहले दिखने लगे हैं, जिनकी भरपाई मुमकिन नहीं।



इंसानों पर है इस खतरे का दोषारोपण
रिपोर्ट कहती है कि पूर्व औद्योगिक समय से हुई लगभग पूरी तापमान वृद्धि कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी ऊष्मा को अवशोषित करने वाली गैसों के उत्सर्जन से हुई। इसमें से अधिकतर इंसानों द्वारा कोयला, तेल,लकड़ी और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन जलाए जाने के कारण हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि 19वीं सदी से दर्ज किए जा रहे तापमान में हुई वृद्धि में प्राकृतिक वजहों का योगदान बहुत ही थोड़ा है।

पेरिस समझौते का लक्ष्य भी पीछे छूटा
करीब 200 देशों ने 2015 के ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना है और वह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से अधिक नहीं हो। रिपोर्ट के 200 से ज्यादा लेखक 5 परिदृश्यों को देखते हैं और यह रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी जो पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है। उन परिदृश्यों में से तीन परिदृश्यों में पूर्व औद्योगिक समय के औसत तापमान से दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की जाएगी।

संभले नहीं तो होंगे गंभीर परिणाम
रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है तथा प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत तथा बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित की जा चुकी हरित गैसों के कारण तापमान “लॉक्ड इन” (निर्धारित) हो चुका है। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी आ भी जाती है, कुछ बदलावों को सदियों तक “पलटा” नहीं जा सकेगा।

कुछ उम्मीद भी जगाई रिपोर्ट ने
इस रिपोर्ट के कई पूर्वानुमान ग्रह पर इंसानों के प्रभाव और आगे आने वाले परिणाम को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त कर रहे हैं लेकिन आईपीसीसी को कुछ हौसला बढ़ाने वाले संकेत भी मिले हैं, जैसे – विनाशकारी बर्फ की चादर के ढहने और समुद्र के बहाव में अचानक कमी जैसी घटनाओं की कम संभावना है हालांकि इन्हें पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।

क्या होता है आईपीसीसी?
आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।

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