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बेरोजगारी, गरीबी या भ्रष्टाचार…जानिए क्‍या है कर्नाटक चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । कर्नाटक (Karnataka) में जैसे-जैसे मतदान (vote) की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. बीजेपी (BJP) के पक्ष में माहौल बनाने के लिए पीएम मोदी (PM Modi), केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah), पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) समेत कई दिग्गज मैदान में हैं. वहीं सत्ता में वापसी के लिए जोर लगा रही कांग्रेस (Congress) के लिए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी प्रचार करने में जुटे हुए हैं. ऐसे चुनावी माहौल के बीच जनता का मूड जानने के लिए लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) ने एक निजी टीवी चैनल के लिए सर्वे किया है.

कर्नाटक चुनाव के मुद्दों को लेकर ये प्री-पोल सर्वे 20 से 28 अप्रैल के बीच किया गया है. सर्वे के अनुसार, कर्नाटक में मतदाताओं के लिए बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसके बाद गरीबी, भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा माना गया. सर्वे के मुताबिक, टीपू सुल्तान का मुद्दा कर्नाटक के आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया है. सर्वेक्षण में पाया गया कि तीन में से केवल एक मतदाता को इस मामले की जानकारी है और जानने वालों में से केवल 29 प्रतिशत का मानना है कि इस मुद्दे को उठाना उचित था.


कर्नाटक में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी
सर्वे में शामिल 28 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इस चुनाव में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. 25 प्रतिशत के साथ गरीबी दूसरे नंबर पर है. जहां युवा मतदाताओं के लिए बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, वहीं ग्रामीण कर्नाटक में मतदाताओं के लिए गरीबी एक बड़ा मुद्दा है.

सर्वे में शामिल कम से कम 67 प्रतिशत लोगों का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में उनके क्षेत्रों में कीमतें बढ़ी हैं. 51 प्रतिशत लोग मानते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ा है जबकि 35 प्रतिशत का कहना है कि यह वैसा ही बना हुआ है. विशेष रूप से, कई पारंपरिक बीजेपी समर्थकों (41%) का कहना है कि 2019 के पिछले चुनावों के बाद से भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है.

नई आरक्षण नीति पर क्या रही जनता की राय?
सर्वे में लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के लिए कोटा बढ़ाने, मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग कोटा खत्म करने और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए कोटा बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले पर भी लोगों की राय ली गई. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल एक तिहाई को ही नए आरक्षण के निर्णयों की जानकारी थी. नई आरक्षण नीति के समर्थक ज्यादातर वे हैं जो बीजेपी के पक्ष में हैं, जबकि जो लोग इसका विरोध में रहे वे कांग्रेस समर्थक हैं.

टीपू सुल्तान के मुद्दे पर क्या कहा?
टीपू सुल्तान की मौत से संबंधित विवाद पर, सर्वेक्षण में पाया गया कि तीन में से एक शख्स इस विषय की जानकारी रखता है और 74 प्रतिशत का मानना है कि इस विवाद को उठाने से सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया. दावा किया गया है कि टीपू सुल्तान को दो वोक्कालिगा सरदारों ने मार दिया था. विवाद से वाकिफ लोगों में से 20 प्रतिशत से ज्यादा का मानना है कि इस मुद्दे को उठाना उचित है. सर्वे से पता चलता है कि बीजेपी समर्थक टीपू विवाद को उठाने को सही ठहराते हैं, जबकि इसका विरोध करने वालों में से ज्यादा कांग्रेस समर्थक हैं.

सरकार का कामकाज कैसा लगा?
सर्वे से पता चलता है कि कल्याणकारी योजनाओं का मतदाताओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा है और केंद्रीय व राज्य दोनों योजनाओं के लाभार्थी बीजेपी का पक्ष ले रहे हैं. राज्य और केंद्र सरकारों के कामकाज के सवाल पर 27 प्रतिशत का कहना है कि वे कर्नाटक में बीजेपी सरकार से पूरी तरह संतुष्ट हैं और 24 प्रतिशत केंद्र में बीजेपी की अगुआई वाली सरकार को समान रूप से पसंद करते हैं. वहीं राज्य में सरकार के कामकाज को लेकर 36 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं. इस सर्वे के दौरान 21 विधानसभा क्षेत्रों के 82 मतदान केंद्रों में कुल 2,143 मतदाताओं से बात की गई है.

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