ब्‍लॉगर

उप्र का जनसंख्या परिदृश्य और चुनौतियां

– प्रो. यशवीर त्यागी

विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) पर उत्तर प्रदेश की चुनौतियों की पड़ताल समीचीन होगी। उत्तर प्रदेश न केवल भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है पर बल्कि दुनिया के देशों में जनसंख्या के आकार पर पांचवें स्थान पर है। इस धरती पर हर छठा व्यक्ति भारत में रहता है और भारत का हर छठा व्यक्ति उत्तर प्रदेश का निवासी है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या का वर्तमान परिदृश्य आशा और चिंता दोनों की तस्वीर प्रस्तुत करता है। कतिपय संकेतक जनसंख्या के मोर्चे पर कुछ राहत देते हैं। पांच दशकों में पहली बार उत्तर प्रदेश में 2001-2011 के दौरान जनसंख्या वृद्धि की दशकीय दर घटकर 20.23 रह गई। इसमें पिछले दशक 1991-2001 की 25.85 की वृद्धि की तुलना में काफी गिरावट दर्ज की। वास्तव में तीन दशकों 1971- 2001 में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में प्रत्येक दशक में लगभग 25.26 की स्थिर दर से वृद्धि हुई।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने 2019 में 2011.36 की अवधि के लिए भारत और राज्यों के लिए जनसंख्या के नवीनतम प्रक्षेपित अनुमानों में आने वाले वर्षों में कुल प्रजनन दर में तेजी से गिरावट और जनसंख्या की धीमी वृद्धि का अनुमान लगाया है।

उदाहरण के लिएए 2011-2021 के दौरान जनसंख्या में दशकीय वृद्धि 15.56 होने का अनुमान लगाया गया था। इसके 2021-2031 के दौरार घटकर 9.14 होने का अनुमान है। इस प्रवृत्ति के अनुरूप जन्म दर और प्रजनन दर में भी गिरावट आने की संभावना है। इन अनुमानों के अनुसार उत्तर प्रदेश वर्ष 2025 में कुल प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करेगा। पहले इसे वर्ष 2027 माना गया था। उत्तर प्रदेश में कुल प्रजनन दर अब 3 से नीचे आ गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2019-21 के लिए इसका मान 2.4 रखा गया है। 1 जुलाई 2022 को उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 23.41 करोड़ होने का अनुमान है।

कुछ जनसांख्यिकीय संकेतक उत्तर प्रदेश में बहुत संतोषजनक तस्वीर पेश नहीं करते। यही चिंता का विषय हैं। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के नवीनतम बुलेटिन (मई 2022) के अनुसार उत्तर प्रदेश में जन्म दर 25.1 है।यह भारत में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक है। मृत्यु दर का आंकड़ा 6.5 है। इसको देखते हुए जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि दर 18.6 है। यह वास्तव में बिहार के बाद भारत में सबसे अधिक है। यह दृष्टव्य है कि भारत में 2017 से लागू मिशन परिवार विकास कार्यक्रम के तहत जिन 145 जिलों की पहचान की गई है, उनमें कुल प्रजनन दर 3 या अधिक है। इनमें 57 जिले उत्तर प्रदेश के हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 50.4 है। पांच वर्ष से कम शिशु मृत्यु दर 59.8 है। इन संकेतकों में पिछले वर्षों की तुलना में सुधार हुआ है। मगर उत्तर प्रदेश में मातृ-शिशु स्वास्थ्य देखभाल की बहुत संतोषजनक तस्वीर नहीं हैं।

नीति आयोग के 2019-20 के समग्र स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार उत्तर प्रदेश का स्कोर 30.57 सभी राज्यों में सबसे नीचे है। राज्य की योगी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और सुधार के लिए अनेक कदम उठाएं हैं। इनमे प्रमुख है राज्य के प्रत्येक जिले में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना करना। बावजूद इसके यह समझा होगा कि वर्षों से उत्तरोत्तर बढ़ती जनसंख्या और उससे उत्पन्न गतिशीलता के कारण उत्तर प्रदेश में कुल प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने के बाद भी आने वाले वर्षों में भारी जनसंख्या का दबाव बना रहेगा। इससे सार्वजनिक सुविधाओं और प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव बढ़ेगा। जनसंख्या के बढ़ता घनत्व भी परेशान करने वाला है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व 1951 में 250 से बढ़कर 2011 में 829 प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है। 2021 की अनुमानित जनसंख्या के अनुसार जनसंख्या घनत्व 958 हो सकता है।

उत्तर प्रदेश की पहली जनसंख्या नीति वर्ष 2000 में बनाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को राष्ट्र के नाम संबोधन में लाल किले की प्राचीर से देश में जनसंख्या विस्फोट के मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि समाज का एक छोटा वर्ग जो अपने परिवारों को छोटा रखता है, वह सम्मान का पात्र है। वो जो कर रहे हैं वह देशभक्ति का कार्य है। प्रधानमंत्री के विचारों का समर्थन करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने 2019 में कहा था कि सभी को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं, बेहतर शिक्षा, सड़क, पेयजल और अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए और यह तभी संभव है जब हम अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करें।

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यूपी में जनसांख्यिकीय स्थिति में सुधार के लिए और क्या किया जाना चाहिए। जनसंख्या वृद्धि को रोकने की आवश्यकता पर एक आम राजनीतिक सहमति होनी चाहिए। सरकार को परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाना प्रत्येक नागरिक का सामाजिक दायित्व है। कुछ समुदायों में परिवार नियोजन के बारे में भ्रांतियां हैं। इनको दूर करने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम में जमीनी स्तर पर सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। इन सभी गतिविधियों में निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। इस समय राज्य सरकार एक कदम उठा सकती है। वह है राज्य जनसंख्या आयोग का गठन करना।

( लेखक, लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं। )

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