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उत्तराखंडः 7000 फीट के ऊपर क्यों जा रहे हैं 1200 फीट की ऊंचाई पर रहने वाले बाघ?

नैनीताल (Nainital)। अल्मोड़ा (Almora) में जागेश्वर (Jageshwar) में 12 दिसंबर 2023 को 1870 मीटर (6135 फीट) पर बाघ (Tigers) दिखने के बाद अब बिनसर इलाके में भी बाघ दिखाई (Tiger seen in Binsar area also) दिया. बिनसर 2250 मीटर की ऊंचाई पर है. यानी करीब 7382 फीट. इतनी ठंड वाले इलाके में बाघों के आने से लोग दहशत में है. वन विभाग ने अलर्ट (Forest department alert) भी जारी किया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि कम ऊंचाई पर रहने वाले बाघों की ऐसी क्या मजबूरी है कि वो इतने ऊंचे इलाके में जा रहे हैं?

आमतौर पर तराई में दिखने वाला बाघ (Tigers) 12 दिसंबर को जागेश्वर धाम के पास शौकियाथल में नजर आया. कुछ लोगों ने इसे अपने मोबाइल पर कैद किया. एक दिन बाद ही 13 दिसंबर को डीएफओ ध्रुव मर्तोलिया को बिनसर में बाघ नजर आया. ऐसा नहीं है कि टाइगर पहली बार पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं।


पहले भी टाइगर पहाड़ों की तरफ रुख करते थे. सर्दियों में जब बर्फ पड़ती थी तब ऊंचाई पर रहने वाले गड़रिये अपनी भेड़ बकरियां चराने के लिए मैदानी इलाकों में चले आते थे. बर्फ पिघलने और सर्दियों के कम होने के बाद ये लोग वापस लौटते थे. तब टाइगर आसान शिकार की तलाश में उनके पीछे-पीछे पहाड़ों की तरफ जाते थे।

जिम कॉर्बेट की किताब Man-Eaters of Kumaon में भी इस बात का जिक्र है कि उस वक्त नैनीताल और चंपावत में टाइगर थे. उनका शिकार-क्षेत्र मुख्यतः कुमाऊं रहा है, लेकिन उन्होंने रुद्रप्रयाग के आसपास भी कुछ आदमखोर बाघों का शिकार किया है।

तकनीकी विकास की वजह से ट्रैकिंग आसान हुई
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक और मुख्यमंत्री के स्पेशल सेक्रेटरी डॉ. पराग मधुकर धकाते ने कहा कि अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के चलते वन्य-जीवन के संरक्षण क्षेत्र में शोध की संभावनाओं में काफी विस्तार हुआ है. स्वाभाविक रूप से जहां टाइगर तराई क्षेत्र तक ही सीमित थे, अब स्थितियां बदल चुकी हैं.

डॉ. धकाते ने कहा कि वास्तव में टाइगर बहुत लंबे समय से तराई और हिमालय की ऊंचाइयों में मौजूद रहे हैं. यह बात दीगर है कि आधुनिक तकनीकी संसाधनों की मौजूदगी नहीं होने की वजह से उनके हिमालयी प्रवास का लेखा-जोखा रखना हमेशा चुनौती बना रहा. वर्तमान में थर्मल-सेंसर्स वाले कैमरा-ट्रैप्स, सेलफोन और उन्नत किस्म के DSLR कैमरों से उनकी मौजूदगी दर्ज करना आसान हो गया है. साथ ही उनके व्यवहार में आए बदलावों की स्टडी भी आसान हो गई है. इससे बाघ संरक्षण से जुड़ी नीतियों को भी अधिक प्रभावी बनाना आसान हुआ है।

उत्तराखंड में 560 बाघ, 260 तो सिर्फ कॉर्बेट में हैं
कॉर्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर धीरज पांडे कहते हैं कि टाइगर को हम नहीं समझा सकते. लोगों को समझा सकते हैं. लोगों को बताना जरूरी है कि क्या करें और क्या ना करें ताकि वन्य जीव संघर्ष को कम कर सकें. उत्तराखंड में 560 बाघ हैं. 260 बाघ तो कॉर्बेट में ही हैं. बाकी 300 तराई वाले इलाकों में हैं।

धीरज पांडे ने बताया कि बाघों की संख्या में वृद्धि एक कारण है. दूसरा इलाके की लड़ाई और संघर्ष. साथ ही इंसानी विकास और अतिक्रमण. हमारे जंगलों का क्षेत्र पहले सीमित थी. आज भी लगभग उतना ही है. लेकिन जानवरों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. टाइगर और हाथी लंबी दूरी तक घूमने वाले जानवर है. एक जगह पर लंबे समय तक नहीं रहते।

Easy Pray के लिए बाघ खुले इलाकों में आते हैं
पांड बताते हैं कि अपना टाइगर-हाथी जैसे जानवर अपना इलाका बनाते हैं. जो टाइगर बूढ़े हो जाते है वो जवान टाइगर को फ्रिंज एरिया में धकेलते हैं. फ्रिंज एरिया मतलब वन क्षेत्रों से लगे हुए गांव के खेत खलिहान. इन क्षेत्रों में इसलिए भी टाइगर का मूवमेंट बढ़ रहा है क्योंकि यहां पर आवारा पशु जानवर इन क्षेत्रों में घूमते हुए मिल जाते हैं. बाघ को पता है कि अगर वह जंगल से बाहर आएगा तो उसे आसानी से फ्रिंज एरिया में आवारा जानवर मिल जाएंगे. यानी आसानी से मिलने वाला शिकार जिसे Easy Pray कहते हैं. इसलिए बाघ ईजी प्रे की तरफ मूवमेंट करता है।

कॉर्बेट में क्षेत्रफल के हिसाब से ज्यादा टाइगर
कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों की ज्यादा संख्या होने की वजह से भी अब बाघ कॉर्बेट क्षेत्र को छोड़ पहाड़ों की तरफ चढ़ने लगे हैं. कॉर्बेट नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 1281 वर्ग km है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में इस वक्त 260 टाइगर है. कॉर्बेट में 25 वर्ग km पर एक मेल टाइगर होता है. 9 से 10 वर्ग km पर एक फीमेल टाइगर. जितने एरिया में एक टाइगर होना चाहिए कॉर्बेट नेशनल पार्क में इस वक्त उस एरिया में 4 से 5 टाइगर हैं. ज्यादा भी हो सकते हैं. इस वक्त कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगरों की संख्या केयरिंग कैपेसिटी से ज्यादा है।

कॉर्बेट में बढ़ी है बाघों की संख्या, इलाका कम पड़ रहा
धीरज पांडे ने बताया कि कॉर्बेट में चार साल के अंदर बाघों की आबादी 231 से 260 हो गई है. इसमें एक साल के बच्चों की गिनती नहीं कर रहे हैं. करेंगे तो लगभग 280 टाइगर होंगे. यह जनसंख्या तभी बढ़ेगी जब उसको खाने को पर्याप्त पसंदीदा भोजन मिलेगा. जिसमे सांभर और चीतल मुख्य है. इसीलिए कॉर्बेट में टाइगर की अच्छी ब्रीडिंग हो रही है. रूस में एक टाइगर का क्षेत्र 100 से 150 km है. यह बड़ा क्षेत्र है. वहां पर आहार भी कम है. कॉर्बेट में 100 वर्ग किलोमीटर आपको 15 से 20 टाइगर मिलेंगे. पूरी दुनिया में सर्वाधिक बाघों का घनत्व कॉर्बेट में है।

इलाके में घनत्व बढ़ने से से बाघ बाहर की ओर निकलते हैं
घनत्व बढ़ना भी बड़ा कारण है. जानवरों का व्यवहार भी बदलता है. लेकिन टाइगर का एक ही व्यवहार होता है. वह एक पैटर्न फॉलो करता है. लेकिन जब उसे कहीं डिस्टरबेंस होता है. स्ट्रेस होता है. इनफाइटिंग होती है. एक टेरिटरी में कई टाइगर आ जाते हैं तो सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट का फॉर्मूला चलता है. यानी जो ताकतवर होगा वह रहेगा, जो बूढ़ा होगा वह बाहर जाएगा. या मर जाएगा।

बाघों का पलायन पलायन बाहर की ओर हो रहा है. यह सिर्फ कॉर्बेट की समस्या नहीं है. आप दुधवा नेशनल पार्क में देखिए वहां भी जनसंख्या बढ़ने की वजह से पीलीभीत से लगे गन्नों के खेतों में टाइगर मिलने लगे हैं. महाराष्ट्र में लेपर्ड हैं जो शहरों की तरफ रहते हैं क्योंकि संजय गांधी नेशनल पार्क मुंबई से सटा हुआ है।

टाइगर कॉरिडोर को ध्यान में रखकर करना होगा डेवलपमेंट
धीरज पांडे ने बताया कि इस समय यह चिंता का विषय है. हमें यह देखना जरूरी है कि हम लैंडस्केप प्लानिंग कैसे करते हैं. रामनगर नैनीताल जिले का टाइगर टाउन है. टाइगर ही वहां की इकोनॉमी है. वहीं से लोगों का रोजगार चल रहा है. बाघ नहीं होगा तो रोजगार प्रभावित होगा. हमको यह बात सोचनी होगी कि हम अर्बन प्लानिंग ऐसे करें कि विकास के साथ संरक्षण भी हो. इस तरह से प्लानिंग करें कि टाइगर और हाथी के कॉरिडोर पर गलत प्रभाव न पड़े. अगर हम कॉरिडोर की प्लानिंग नहीं करेंगे. दो जंगलों को आपस में जोड़ने वाली कनेक्टिविटी पर ध्यान नहीं देंगे तो जानवरों को घूमने का मौका मिलेगा।

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