ब्‍लॉगर

नूंह वाली जिहादी मानसिकता से आखिर देश कब आजाद होगा?

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

हरियाणा के मेवात में ब्रजमंडल यात्रा के दौरान जो बवाल हुआ, उसमें दो होमगार्ड्स की मौत होने के साथ ही 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हो गए। 120 से अधिक कारों और अन्य वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। पूरी योजना बनाकर की गई यह आगजनी और हिंसा नूंह से होती हुई आसपास के कई जिलों में फैल गयी। मेवात से शुरू हुए एक वर्ग विशेष के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से हिंसा के इस तांडव में एक बात और रेखांकित करने वाली है। कथित तौर पर अल्पसंख्यक वर्ग के नाबालिग बच्चों, युवाओं और यहां तक कि बुजुर्गों के साथ ही महिलाएं भी पत्थरबाजी में साथ देती हुई देखी गईं। जिस ब्रजमंडल यात्रा को सबसे पहले निशाना बनाया गया, उस यात्रा में बड़ी संख्या में महिलाएं थीं। हिन्दू समाज में किसी भी धार्मिक आयोजन में महिलाएं हमेशा से अग्रणी और प्रमुख भूमिका निभाती रही हैं। ब्रजमंडल यात्रा के लिए भी बड़ी संख्या में हिन्दू समाज जुटा था। पर मुस्लिम तबके की महिलाओं के दिलों में उन हिन्दू महिलाओं के लिए कोई दया भाव नहीं दिखा जो नूंह के नल्हड़ शिव मंदिर में फंस गईं थीं। पुलिसकर्मियों के द्वारा बमुश्किल और भारी सुरक्षा के बीच, खुद की जान जोखिम में डालकर बाहर निकालने का प्रयास किया जा रहा था। तब भी यह उन्मादी और हिंसक भीड़ लगातार पथराव और आगजनी कर रही थी।

जिहादी मानसिकता वाले यह उन्मादी और उपद्रवी तत्व जब भी हिंसा पर उतारू होते हैं तो सबसे पहले दूसरे वर्ग की दुकानों, बड़े प्रतिष्ठानों और भवनों पर हमलावर होते हैं। उन्हें लूट लेते हैं या उनमें आग लगा देते हैं। यह मानसिकता हर दंगे में सामने आती है। नूंह में भी योजनाबद्ध तरीके से शुरू के बाद प्रगतिशील समुदाय विशेष की दुकानों पर बड़े पैमाने पर लूट की गई, आग के हवाले किया गया। गुरुग्राम-अलवर नेशनल हाइवे पर हीरो कंपनी के शोरूम से 200 बाइक लूट ली गईं। कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। नूंह में भड़की हिंसा की चिंगारी शाम तक कई मंदिरों को नुकसान पहुंचाती और अपवित्र करती रही।


जाहिल जिहादियों की भीड़ ने पुलिस थाने तक को निशाना बनाया। नूंह के साइबर थाना पर भी हमला कर दिया गया। नूह का साइबर थाना इसलिए भी निशाने पर आया कि देश भर में जितनी भी साइबर क्राइम की घटनाएं हो रहीं हैं उसमें झारखंड के जामताड़ा के बाद दूसरा बड़ा केन्द्र मेवात ही है। कुछ ही दिनों पहले साइबर क्राइम की केन्द्रीय टीम ने भारी सुरक्षा के बीच जब मेवात की छापेमारी की तो अनेक गिरोहों का पर्दाफाश हुआ। भारी मात्रा में इलेक्ट्रानिक उपकरण बरामद हुए और 47 आरोपी गिरफ्तार किए गए। इसी कारण जिहादी उपद्रवियों ने थाने पथराव ही नहीं किया, बाहर खड़ी गाड़ियों में भई आग लगा दी। पुलिसकर्मियों ने सैकड़ों की इस भीड़ से कैसे अपनी जान बचाई होगी, यह तो वही जानें, लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

सवाल यह कि इन जाहिल जिहादी मानसिकता वालों को क्या किसी का भय नहीं रहता? जब भी ये उन्मादी अपने मजहब के नाम पर एकजुट होकर हिंसक होते हैं तब ये सबसे पहले निरपराध-निर्दोष लोगों की दुकानों-मकानों-प्रतिष्ठानों और वाहनों को लूटने व आग लगाने को ही तत्पर क्यों रहते हैं? ऐसे करके ये हमेशा देश की आर्थिक प्रगति में रोड़ा क्यों बिछाते हैं? खुद आर्थिक रूप से पिछड़े होने के चलते क्या यह अन्य सम्पन्न लोगों. देश की तरक्की में योगदान देने वालों को ही निशाना बनाकर अपनी कुंठा ही तो नहीं निकालते हैं?

नूंह-मेवात में जो हुआ क्या वह पहली बार हो रहा है ? यह तर्क दिया जाना कि किसी मोनू मानेसर के सोशल मीडिया पर जारी संदेश के चलते अल्पसंख्यक तबका भड़का हुआ था और उसने प्रतिक्रिया में पत्थरबाजी की, असलियत से आंखे चुराने वाला है। देश में ज्यादातर जगह जहां भी कथित अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय प्रभुत्व में है, बहुसंख्यक है, वहां यदि हिन्दू समुदाय की धार्मिक यात्राएं निकलती हैं तो हमेशा तनाव पैदा होता है। नारेबाजी होती है, पथराव होता है और बहुत बार हिंसक घटनाएं होती हैं। कुछ जिहादियों द्वारा बार-बार धमकी दी जाती है, पुलिस फोर्स हटाकर देख लो! समझना होगा कि आखिर परेशानी किसको है ? क्या बहुसंख्यक हिन्दुओं को. जिन्होंने स्वयं से आगे होकर सर्वपंथ सद्भाव में विश्वास रखा है, जिन्होंने स्वयं से अपने लिए धर्मनिरपेक्ष समाज और शासन व्यवस्था चुनी, क्या यही उनकी सबसे बड़ी भूल है? ऐसा तभी क्यों होता है जब हिन्दू समाज को धार्मिक आयोजन करता है या यात्रा निकल रही होती है? जबकि इस देश का बहुसंख्यक समाज अन्य मतावलंबियों के धार्मिक आयोजनों में कभी व्यवधान पैदा नहीं करता। उनमें सहयोग करता है।

सर्वपंथ समादर का भाव रखने वाला हिन्दू समाज के सामंजस्यवादी विचारधारा और जीवनशैली का परिचय तो अब अखिल विश्व को मिल चुका है। जहां भी हिन्दू समाज के लोग गए हैं वे उस देश की तरक्की में सहभागी हुए हैं और वहां का समाज उन्हें सम्मान की नजर से देखता है। वहीं कट्टर इस्लामी सोच के लोग जहां भी गए हैं वहां उस देश की तरक्की में बाधक हैं और वहां की कानून व्यवस्था के लिए सरदर्द बने हुए हैं। अत्यधिक उदार फ्रांस, आस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देश भी इस मजहबी कट्टरवाद के शिकार होने लगे हैं और अपने यहां अनेक तरह के बैन लगा रहे हैं। इस सारी सचाई को जानते हुए भी भारत का हिन्दू समाज देश की दूसरी बड़ी आबादी के साथ तालमेल बिठाने और समरस होने का प्रयास करता रहता है। पर उसके सामने बार बार नूह जैसे प्रकरण आते हैं तो विचार करना ही चाहिए कि आखिर हम किस तरह की सोच वालों के साथ और किस तरह के समाज के बीच में रह रहे हैं और आखिर इसका स्थायी समाधान क्या हो सकता है?

हम सब विचार करें। सरकारें, शासन व्यवस्था, समाज और राजनेता इस बात की तह तक जाएं कि आखिर यह नूंह जैसे काण्ड देश भर में बार-बार क्यों हो रहे हैं? यह कैसी भावनाएं हैं जोकि जरा से में आहत हो जाती हैं? कभी रामनवमी जुलूस पर पत्थर, कभी हनुमान यात्रा पर तो कभी कांवड़ियों पर पत्थर बरसाना, कभी दुर्गा यात्रा को निशाना बनाया जाना- भारत भर से इस तरह की खबरे आए दिन मिलती रहती हैं। देखने में यही आ रहा है कि जहां मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं वहां इस प्रकार की समस्या आम होती जा रही है। इसकी गहन पड़ताल करना जरूरी है कि ये मानसिकता कहां से उपजती है, कौन से कारण इसके पीछे जिम्मेदार हैं ? क्या कोई एक किताब, समूह, संगठन, संप्रदाय या व्यक्ति इसके पीछे है या कुछ ऐतिहासिक कारण और ऐतिहासिक भूल इसके लिए जिम्मेदार है जो 1947 से पहले वाली मानसिकता एक बार फिर भारत में देखने को मिल रही है। ऐसे में आज केंद्र सरका के साथ राज्य सरकारें. सभी राजनीतिक दल, सभी सामाजिक संस्थाएं ईमानदारी से और वोट-बैंक राजनीति से ऊपर उठकर ईमानदारी से कारण-मीमांसा करेंगे तो वह इस देश के हित में होगा, भारत के हित में होगा, भारत की आर्थिक उन्नति के हित में होगा, भारतीय संस्कृति और समाज के साथ साथ संपूर्ण मानवीयता के हित में होगा।

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