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जिन्ना ने क्यों नहीं रुकवाया कत्लेआम

– आरके सिन्हा

मोहम्मद अली जिन्ना 7 अगस्त, 1947 को सफदरजंग एयरपोर्ट से कराची के लिए रवाना हो गए थे। उन्होंने विमान के भीतर जाने से पहले दिल्ली के आसमान को कुछ पलों के लिए देखा। शायद वे सोच रहे होंगे कि अब वे इस शहर में फिर कभी वापस नहीं आएंगे। उनके साथ उनकी छोटी बहन फातिमा जिन्ना भी थीं। जिन्ना जब दिल्ली से जा रहे थे तब ही यहां और आसपास के अनेकों शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। पर उन्होंने कभी कहीं जाकर दंगा रुकवाने की चेष्टा नहीं की। उन्होंने पाकिस्तान जाकर भी यह काम नहीं किया।

जिन्ना एक एलिट थे। वे पैसे के पीर थे। वे रोज शराबखोरी करते थे यारों के साथ। जिन्ना देश के बंटवारे से कुछ समय पहले तक एयर इंडिया के शेयर खरीद रहे थे। दरअसल कांग्रेस और मुस्लिम लीग मार्च, 1947 तक देश के बंटवारे के लिए राजी हो गए थे। इसके बावजूद जिन्ना अपने लिए तो निवेश के बेहतर अवसर तलाश कर रहे थे। यानी उन्हें खुद भी यह यकीन नहीं था कि पाकिस्तान सच में बन ही जाएगा। उनके मन के किसी कोने में शंका के भाव भरे हुए थे। उन्होंने उसी मार्च, 1947 के महीने में एयर इंडिया लिमिटेड के 500 शेयर खरीदे थे। अब आप इस सौदे को किस तरह से देखेंगे।

वे बॉम्बे के पास सैंडो कैसल नाम के एक बड़े जमीन के भू-भाग को भी लेने के मूड में थे। वे इस भू-भाग को इसलिए लेना चाह रहे थे क्योंकि ये अरब सागर से सटी हुई जगह थी। इसकी कीमत 5 लाख रुपये थी। ये जानकारी ‘जिन्ना पेपर्स- स्ट्रगलिंग फार सर्ववाइल’ में दर्ज है। इसके संपादक जेड.एच.जैदी थे। चूंकि जिन्ना के शेयर खरीदने संबंधी बात जिन्ना पेपर्स में है, इसलिए इस पर कोई विवाद भी नहीं हो सकता।

जिन्ना दिल्ली से कराची जाने से पहले अपने 10 औरंगजेब रोड (अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड) स्थित बंगले में लजीज भोजन और महंगी शराब की पार्टियां अपने मित्रों को देने में व्यस्त थे। वे अपने बंगले को बेचने में भी लगे थे। वे उसके संभावित ग्राहक तलाश रहे थे।

पाकिस्तान 14 अगस्त, 1947 को विश्व मानचित्र में आ रहा था। इससे पहले ही पंजाब, बंगाल, दिल्ली और देश के बाकी कई भागों में खूनी दंगे चालू हो गए थे। दंगों की आग लगाने में मोहम्मद अली जिन्ना अपनी प्रमुख भड़काऊ भूमिका अदा कर चुके थे। उन्होंने ही 16 अगस्त, 1946 के लिए डायरेक्ट एक्शन (सीधी कार्रवाई) का आह्वान किया था। एक तरह से वह दंगों की एक योजनाबद्ध शुरुआत थी। उन दंगों में पांच हजार मासूम मारे गए थे। मरने वालों में उड़िया मजदूर सर्वाधिक थे। फिर तो दंगों की आग चौतरफा फैल गई।

मई, 1947 को रावलपिंडी में मुस्लिम लीग के गुंडों ने जमकर हिन्दुओं और सिखों को मारा, उनकी संपत्ति और औरतों की इज्जत लूटी। रावलपिंडी में सिख और हिन्दू खासे धनी थे। इनकी संपत्ति को निशाना बनाया गया। पर मजाल है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने कभी उन दंगों को रुकवाने की अपील की हो। वे एक बार भी किसी दंगाग्रस्त क्षेत्र में नहीं गए, ताकि दंगे थम जाएं।

पाकिस्तान के निर्भीक इतिहासकार प्रो. इश्ताक अहमद ने अपनी शानदार किताब ‘पंजाब बल्डिड पार्टीशन’ में लिखा है, “ हालांकि गांधी जी और कांग्रेस के बाकी तमाम नेता दंगों को रुकवाने की हर चंद कोशिश कर रहे थे, पर जिन्ना ने इस तरह का कोई कदम उठाने की कभी आवश्यकता तक महसूस नहीं की। बाकी मुस्लिम लीग के नेता भी दंगे भड़काने के काम में लगे थे न कि उन्हें रुकवाने में।” उधर, गांधी जी पूर्वी बंगाल के नोआखाली से लेकर कलकत्ता और फिर दिल्ली में दंगे रुकवाने में जुटे हुए थे।

खैर, 14 अगस्त, 1947 को कराची में जिन्ना को पाकिस्तान के गवर्नर जनरल पद की शपथ दिलाई गई। भारत के वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने उन्हें शपथ दिलवाई। उसके बाद तो सांप्रदायिक दंगे और तेज हो गए। इंसानियत मरने लगी। लेकिन न तो जिन्ना और न ही माउंटबेटन को इस बात की परवाह रही कि दंगों के कारण कितना खून-खराबा हो रहा। इन्हें रोका जाए। पश्चिमी पंजाब के प्रमुख शहरों जैसे लाहौर, शेखुपुरा, कसूर, रावलपिंडी, चकवाल, मुल्तान में हिन्दू और सिख मारे जा रहे थे। दंगाइयों का साथ दे रही थी नवगठित पाकिस्तान की पुलिस। पर जिन्ना साहब मौज-मस्ती में थे।

जिन्ना का गुणगान करने वाले यह भी याद रख लें कि उन्होंने एकबार भी जेल यात्रा नहीं। क्या कोई इस तरह का नेता होगा, जिसने कभी जेल यात्रा न की हो या पुलिस की लाठियां न खाई हों।

अगर बात दंगों से हटकर करें तो अब कुछ कथित इतिहासकार जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने से भी गुरेज नहीं करते। मतलब ये कि जो इंसान धर्म के नाम पर देश का बंटवारा करवा चुका हो उसे ही धर्मनिरपेक्ष बताया जाता है। अपने तर्क को आधार देने के लिए ये जिन्ना के 11 अगस्त, 1947 को दिए भाषण का हवाला देते हैं। उस भाषण में जिन्ना कहते हैं- “ पाकिस्तान में सभी को अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता होगी।”

इस भाषण का हवाला देने वाले जिन्ना के 24 मार्च, 1940 को लाहौर के बादशाही मस्जिद के ठीक आगे बने मिन्टो पार्क (अब इकबाल पार्क) में दिए भाषण को भी याद नहीं करते। उस दिन अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव मशहूर हुआ पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से। इसमें कहा गया था कि वे (मुस्लिम लीग) मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र का ख्वाब देखती है। वह इसे पूरा करके ही रहेगी। प्रस्ताव के पारित होने से पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने दो घंटे लंबे भाषण में हिन्दुओं को कसकर कोसा था- “हिन्दू-मुसलमान दो अलग मजहब हैं। दो अलग विचार हैं। दोनों की परम्पराएं और इतिहास अलग हैं। दोनों के नायक अलग हैं। इसलिए दोनों कतई साथ नहीं रह सकते।“

जिन्ना ने अपनी तकरीर के दौरान लाला लाजपत राय से लेकर चितरंजन दास तक को अपशब्द कहे। उनके भाषण के दौरान एक प्रतिनिधि मलिक बरकत अली ने ‘लाला लाजपत राय को राष्ट्रवादी हिन्दू कहा।’ जवाब में जिन्ना ने कहा, ‘कोई हिन्दू नेता राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। वह पहले और अंत में हिन्दू ही है।’ हैरानी होती है जब कुछ ज्ञानी जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष और गांधी जी के कद का नेता साबित करने की कोशिश करते रहते हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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