मध्‍यप्रदेश राजनीति

मध्य प्रदेश में 3 मई क्यों है राजनीति के लिए अहम, जानिए ये बड़ी वजह

भोपाल: देश में जैसे ही कोई राज्य चुनाव की तरफ बढ़ता है, वहां जातिगत समीकरणों की बात हमेशा शुरू हो जाती है, क्योंकि जातिगत आधार पर चुनाव बहुत ज्यादा निर्भर करता है. मध्य प्रदेश में भी अगले साल यानि 2023 में विधानसभा चुनाव होना है, सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए यह चुनाव बेहद अहम होने वाला है, ऐसे में दोनों राजनीतिक दल अभी से तैयारियों में जुटे हैं, खास बात यह है कि दोनों पार्टियां हर वर्ग को साधने की कोशिश में जुटी हैं.

बीजेपी एक तरफ आदिवासी और अनुसूचित जाति को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, तो दूसरी तरफ अब उसका फोकस एक ऐसे वर्ग पर है, जिसके हाथ से निकलने से बीजेपी 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से दूर रह गई थी. एक खास आयोजन के माध्यम से बीजेपी इस वर्ग को रिझाने के प्रयास में जुट गई है. जिसके सियासी मायने प्रदेश की सियासत के लिहाज से बेहद अहम है.

दरअसल, मध्य प्रदेश की सियासत में पहले जातिगत फैक्टर इतना अहम नहीं रहता था, लेकिन इस बार भाजपा की चुनावी रणनीति से जाहिर हो रहा है कि पार्टी दलित, ओबीसी, सामान्य वर्ग के वोट हासिल करने जातियों को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, तो कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है.

बीजेपी 2023 के विधानसभा चुनाव के नजरिए से हर वर्ग को साधने की तैयारी में है. जिसके चलते अब ब्राह्मणों को साधने की कवायद शुरू हो गयी है. 3 मई को परशुराम जनमोत्सव के अवसर पर ब्राह्मण समाज प्रदेशभर में बड़े आयोजन करने जा रहा है. राजधानी भोपाल के गुफा मंदिर में 3 मई को भगवान परशुराम की प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी. इस आयोजन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी ब्राह्मण सभा ने न्यौता दिया है. इसके अलावा अन्य कई कैबिनेट मंत्रियों को भी न्योता दिया गया है. मंगलवार को हुई कैबिनट बैठक में भी इस आयोजन को लेकर चर्चा हुई. ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी इस वर्ग पर भी विशेष निगाह बनाए हुए हैं.


मध्य प्रदेश में 10 प्रतिशत से ज्यादा ब्राह्मण वोट है, राजनीतिक जानकारों की माने तो यह वोटबैंक बीजेपी के पाले में जाता है, जिसके चलते पार्टी पिछले 15 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज थी. लेकिन 2018 के पहले कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए कि यह वोटबैंक भाजपा से दूर होता दिखा, कुछ लोगों ने सीएम शिवराज आरक्षण पर दिए बयान को इसकी वजह माना तो कुछ राजनीतिक जानकारों ने एससी-एसटी एक्ट में हुए संसोधन के बाद बने हालातों को भी एक बड़ी वजह माना. जिसका नुकसान 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हुआ और पार्टी को केवल 107 सीटें ही मिली थी. ऐसे में इस बार पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए सबकों साधने की कवायद शुरू हो गई है.

2018 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के लिहाज से मध्य प्रदेश में कुल 4.94 करोड़ मतदाता थे. जिनमें से 40 लाख से ज्यादा ब्राह्मण वोटर थे, यानि कुल वोट बैंक का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा इसी वर्ग का था. थोड़ा और बारीकि से नजर डाली जाए तो विंध्य, महाकौशल, चंबल और मध्य क्षेत्र पर नजर डालें तो यहां कि 60 सीटें ऐसी हैं जहां ब्राह्मण सीधा असर डालते हैं. इन आंकड़ों से यह बात तय होती है कि जिस पार्टी को इस वर्ग का साथ मिला सत्ता उसके हाथ में आनी तय मानी जाती है.

यही वजह है कि इस चुनाव में ब्राह्मण फैक्टर मजबूत असर दिखा सकता है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण वोटों में बिखराव हुआ था, जिसका बीजेपी को नुकसान और कांग्रेस को फायदा मिला था. 2018 में मिली चुनावी हार के बाद बीजेपी ने तभी से इस वर्ग को साधने की कोशिश भी शुरू कर दी थी, पार्टी ने वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाया था, तो वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी थी.

वहीं वर्तमान विधानसभा में ब्राह्मण विधायकों की स्थिति पर भी नजर डाल ली जाए तो इस वक्त सदन में 31 विधायक ब्राह्मण वर्ग से आते हैं, जिनमें से 19 विधायक बीजेपी और 11 विधायक कांग्रेस पार्टी के हैं, जबकि 1 समाजवादी पार्टी से हैं. जबकि पांच सांसद भी ब्राह्मण वर्ग से आते हैं. यानि ब्राह्मण सत्ता तक पहुंचने के लिए मध्य प्रदेश में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने 2023 में फिर सत्ता वापसी के लिए ब्राह्मणों को रिझाना शुरू कर दिया है.


इन आंकड़ों से एक बात तो तय होती है कि अगर किसी भी पार्टी से ब्राह्मण रूठता है तो चुनाव में उसकी राह मुश्किल हो सकती है. खास तौर पर विंध्य, मध्य भारत में ब्राह्मण वर्ग की अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है, दोनों अंचल की 60 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण हार-जीत के समीकरण तय करते हैं, जबकि अन्य अंचलों में भी इनकी ताकत का एहसास राजनीतिक दलों को है.

माना जा रहा है कि बीजेपी मध्य प्रदेश में इस बार सोशल इंजिनियरिंग के फॉर्मूले पर काम करती हुई नजर आ रही है, पार्टी हर वर्ग को जोड़कर सत्ता वापसी करना चाहती है, अगर प्रदेश में एससी-एसटी और सर्वण वोटबैंक एक हो जाता है, तो बंपर बहुमत मिलना तय माना जाता है. पहले भी कई राज्यों में बीजेपी ने इसी रणनीति पर काम किया है, ऐसे में अब जिस तरह से बीजेपी मध्य प्रदेश में हर वर्ग को साधने की कोशिश करती दिख रही है, उससे यहां भी भी यह प्रयोग होता नजर आ रहा है. क्योंकि हर वर्ग को साध लेकर चलने वाला यह फॉर्म्युला पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा सकता है.

हालांकि 3 मई परशुराम जन्मोसत्व पर होने वाले आयोजन को लेकर बीजेपी और कांग्रेस में आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. कांग्रेस नेता मानक अग्रवाल का कहना है कि 2018 के माई के लाल वाले बयान के खामियाजे के बाद बीजेपी मरहम लगाने की कोशिश में जुट गई है, इतना ही नहीं साम्प्रदायिक तनाव फैलाकर 2023 के लिए बीजेपी वोटों का विखराव करना चाहती है. हालांकि इससे कुछ होने वाला नहीं है. क्योंकि जनता बीजेपी की सच्चाई जान चुकी है.

वहीं कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया, बीजेपी नेता हितेष वाजपेयी ने कांग्रेस के बयान पर पलटवार किया है. हितेष वाजपेयी ने कहा कि ब्राह्मण और हिन्दुओं से कांग्रेस को नफरत है. इसलिए जब जब हिन्दूओं के त्यौहारों की बात आती है तो कांग्रेस अड़ंगा करती है. बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कांग्रेस के लोग भी भगवान परशुराम की जयंती में शामिल हों और पूरे प्रदेश में इस त्यौहार को पूरे उत्साह और भाईचारे से मनाएं. हालांकि राजनीतिक दलों के नेता कुछ भी कह लेकिन 3 मई होने वाले परशुराम जन्मोत्सव के आयोजन में इस बार दोनों ही राजनीतिक दल ब्राह्मण वर्ग को रिझाने की तैयारियों में जुट गए हैं. ताकि चुनाव में फायदा मिल सके.

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