ब्‍लॉगर

धर्मध्वजी पहल क्यों न करें?

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पैगंबर मोहम्मद के बारे में दिए गए बयानों के बारे में जो गलतफहमियां फैल गईं हैं, उन्हें अभी तक शांत हो जाना चाहिए था, क्योंकि भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि उन बयानों से उसका कुछ लेना-देना नहीं है और भाजपा ने अपने बयानबाजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी कर दी है। लेकिन देश के दर्जनों शहरों में जिस तरह के हिंसक प्रदर्शन हुए हैं, तोड़-फोड़ और मारपीट की गई है, वह किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं है। जिन मुसलमान भाइयों ने गुस्से में आकर ये सब कारनामे किए हैं, उनसे अगर आप पूछें कि किस बयान की किस बात पर आप नाराज हैं तो उन्हें उसका कुछ पता ही नहीं है।

शुक्रवार की नमाज के बाद किसी ने उन्हें उकसा दिया और वे अपनी जान हथेली पर रखकर सड़कों पर उतर आए, मानो इस्लाम खतरे में है। पैगंबर मोहम्मद की भूमिका अब से डेढ़ हजार साल पुरानी अरब दुनिया में इतनी क्रांतिकारी रही है कि उसे कोई किसी टीवी विवाद में क्या एक वाक्य के द्वारा मिटा सकता है? टीवी चैनलों पर चल रही बहसों में आजकल ऐसे लोगों को बुलाया जाता है, जो तथ्यशील और तर्कशील होने की बजाय एक-दूसरे पर गोले बरसाने में माहिर होते हैं। ऐसी बहसें लोगों का बरबस ध्यान खींचती हैं। उससे चैनलों की टीआरपी गरमाती है।

ज्ञानवापी की उस बहस में भी यही हुआ। एक वक्ता ने शिवलिंगों का मजाक उड़ाया तो दूसरे वक्ता ने पैगंबर के बारे में वह कहकर अपना जवाब दे दिया, जो कुछ अरबी हदीसों में भी लिखा है। दोनों कथन टाले जा सकते थे लेकिन उन्हें कुछ लोगों ने तिल का ताड़ बना दिया। हालांकि उन टिप्पणियों से न तो शिवजी का बाल बांका होता है और न ही पैगंबर साहब की शान में कोई गुस्ताखी होती है लेकिन यह भी सत्य है कि जो इनके भक्त लोग हैं, उन्हें बहुत बुरा लगता है।

इस बुरा लगने को भी टाला जाए तो जरूर टाला जाना चाहिए। जो लोग भी ऐसे आपत्तिजनक और दर्दनाक बयान देते हैं, उन्हें तथ्यों और तर्कों के आधार पर गलत सिद्ध किया जाना चाहिए, जैसा कि महर्षि दयानंद ने अपने युग प्रवर्तक ग्रंथ ‘सत्यार्थप्रकाश’ में किया है। उन्होंने अंतिम 4 अध्याय अन्य धर्मों की समीक्षा में लिखे हैं तो पिछले 10 अध्यायों में उन्होंने अपने पिताजी के पौराणिक हिंदू धर्म के परखचे उड़ा दिए हैं। यही काम यूरोप और अरब देशों के कुछ साहसी विद्वानों ने अपने-अपने धर्मों और उनके मूल धर्मग्रंथों के बारे में भी किया है। अभी डेढ़-दो सौ साल पहले तक भारत में सभी धर्मों के विद्वान खुले-आम ‘शास्त्रार्थ’ किया करते थे। उनमें मैंने मार-पीट, पत्थरबाजी या गाली-गलौज की बात कभी नहीं सुनी। इसी का नतीजा है कि दुनिया में आज भारत अपने ढंग का अकेला देश है, जहां दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का सह-अस्तित्व बना हुआ है। क्या ही अच्छा हो कि हिंदुओं और मुसलमानों के कुछ प्रमुख धर्मध्वजी मिलकर पहल करें और दोनों पक्षों से मर्यादा-पालन का आग्रह करें।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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