- दमोह विधानसभा उप चुनाव में भितरघात और बगावत की आशंका
भोपाल। दमोह विधान सभा सीट उप चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही चुनावी बिसात भी बिछने लगी है। नवंबर में उप चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों को टिकट देने से साफ है कि दमोह में भी राहुल लोधी ही भाजपा के उम्मीदवार होंगे। बस इसी आशंका के कारण भाजपा में खलबली मची हुई है।दमोह के कद्दावर नेता और लगातार छह बार विधायक रहे जयंत मलैया उप चुनाव से पहले सक्रिय हो गए हैं और इस बात की संभावना जताई जा रही है कि अगर जयंत मलैया या उनके बेटे को टिकट नहीं दिया जाता है तो फिर वह रामकृष्ण कुसमरिया की तरह ही बगावत का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव में मलैया की हार की बड़ी वजह खुद कुसमरिया थे क्योंकि भाजपा से टिकट न मिलने पर वो बागी हो गए थे और पथरिया और दमोह से निर्दलीय मैदान में कूद गए थे नतीजा मलैया को हार का सामना करना पड़ा था।
मलैया कद्दावर चेहरा
दमोह में जयंत मलैया भाजपा का कद्दावर चेहरा हैं। दमोह के राजनीतिक इतिहास को देखें तो 1990 से लेकर 2018 तक विधान क्षेत्र में भाजपा का दबदबा रहा है। अभी भी सांसद बीजेपी का ही है। प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के नाम के साथ 1990 से 2018 तक दमोह में सात विधानसभा चुनाव हुए हैं। उनमें से लगातार छह चुनाव में जयंत मलैया ने जीत दर्ज की। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी ने जयंत मलैया को महज 758 मतों के अंतर से हराया था। उनकी हार की वजह रामकृष्ण कुसमरिया रहे जो भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ गए थे।
क्या इतिहास दोहराएगा
विधानसभा चुनाव में रामकृष्ण कुसमरिया की तरह इस उपचुनाव में जयंत मलैया अपने या बेटे सिद्धार्थ मलैया के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। यह माना जा रहा है कि अगर उन्हें या बेटे को टिकट नहीं मिलता है तो फिर वह बागी होकर मैदान में उतर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो फिर राहुल लोधी के लिए भाजपा के टिकट पर जीत की राह कितनी आसान होगी इसका अंदाज लगाया जा सकता है। खुद रामकृष्ण कुसमरिया के मैदान में आने से जयंत मलैया जैसे दिग्गज हार गए थे। ऐसे में देखना होगा कि क्या दमोह में मलैया के रूप में कुसमरिया का इतिहास दोहराएगा।