जोधपुर । आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं। इन 75 सालों में हमने जमीं से लेकर आसमां तक, बहुत कुछ हासिल किया है। आज हम देश की आजादी का 75वीं अमृत महोत्सव मना रहे हैं।
आपको बता दें कि भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने भाग लिया था, किन्तु कुछ ऐसे भी लोग थे जो एक नई प्रतीक या प्रतिमा के साथ उभरे ये कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का त्याग किया और इन्हीं लोगों के कारण हम आज स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं। यहां तक कि इन 75 सालों के दौरान भारत एक बड़ी आर्थिक ताकत बनकर उभरा है।
आजादी दिलाने में न जाने कितने स्वंत्रता सेनानी ने अपनी जान की बाजी लगाई है। भारत माता के वीर सपूत गुलामी की बेड़ियां तोड़ चुके थे पर आजाद भारत को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। उस समय भारत 500 से ज्यादा छोटी बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। ऐसी ही एक जोधपुर रियासत थी, सरदार पटेल न होते तो जोधपुर के कारण राजस्थान आज पाकिस्तान में होता।
बता दें कि जोधपुर रियासत का था। जो एक पुराना और काफी बड़ा रजवाड़ा था। जोधपुर का राजा और अधिकांश प्रजा हिंदू ही थी। महाराजा हनुवंत सिंह के मन में किसी ने डाल दिया कि उसके राज्य की सीमा पाकिस्तान से भी छूती है। इसलिए वह वहां से बेहतर शर्तें मनवा सकता है।
महाराजा ने मोहम्मद अली जिन्ना के सामने कई शर्तें रखीं। जिन्ना ने भी महाराजा हनुवंत सिंह को कई प्रलोभन दिए। जिन्ना ने महाराजा के सामने कराची के बंदरगाह की सुविधा देने, हथियारों की निर्बाध आपूर्ति और अकाल-पीड़ित जिलों के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति करने का भरोसा दिलाया। इतिहासकार यहां तक कहते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना ने महाराजा को एक खाली पन्ना दे दिया था कि वो इसपर सभी शर्तें लिख सकते हैं।
जिन्ना और हनुवंत सिंह की बातचीत की खबर सरदार पटेल तक पहुंची। भारत को ये आशंका थी कि अगर जोधपुर पाकिस्तान में शामिल हुआ तो जयपुर और उदयपुर भी हाथ से निकल जाएंगे। इस मामले में सरदार पटेल ने समझदारी दिखाई। उन्होंने बिना कोई देरी किए तुरंत जोधपुर के महाराजा से संपर्क साधा। उसे हथियार, अनाज की आपूर्ति का भरोसा दिलाया। सरदार पटेल ने हनुवंत सिंह को समझाया कि वे एक मुस्लिम देश के साथ तालमेल बिल्कुल नहीं बिठा सकते। ऐसे में महाराजा मान गए। आखिरकार सरदार पटेल की कोशिश सफल हुई और महाराजा जोधपुर को भारत में विलय करने के लिए तैयार हो गए।
विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से ठीक पहले महाराजा ने विवाद खड़ा कर दिया। महाराजा ने वायसराय के कार्यालय में हस्ताक्षर करने से पहले वायसराय के सचिव पर पिस्तौल तान दी लेकिन उन्हें फिर से समझाया गया। जिसके बाद उन्होंने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और इस तरह से जोधपुर रियासत पाकिस्तान में नहीं गई। उसके साथ ही जयपुर और उदयपुर भी भारत के हाथ से निकलने से बच गया।
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