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शारदीय नवरात्र पर 58 साल बाद बने दुर्लभ योग में मां भगवती की आराधना

भोपाल । आज सुबह से ही मंदिरों में मां भगवती की आराधना, शारदीय नवरात्र के अवसर पर घट स्थापना का शुभ कार्य आरंभ हो चुका है । आपको बता दें कि आज यानी कि शनिवार से शुरू हुए शारदीय नवरात्र पर 58 साल बाद दुर्लभ योग बना है। शनि स्वराशि मकर और गुरु स्वराशि धनु में रहेंगे। इस योग में घटस्थापना से मां अपने भक्तों की झोली खुशियों से भर देती हैं।

ज्योतिषाचार्य राकेश दुबे का कहना है कि शारदीय नवरात्र पर 58 साल यह दुर्लभ योग बना है जो शुभ फल देता है। नवरात्र पर राजयोग, दिव्य पुष्कर योग, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, सिद्धि योग, रवि योग, आनंद, सौभाग्य और धृति योग भी बन रहे हैं। इसमें निवेश, खरीद और बिक्री बेहद शुभ हैं।

घट स्थापना मुहूर्त
सुबह सात से नौ बजे तक और सुबह 10:30 बजे से 1:24 तक कर सकते हैं । वैसे घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है। अगर किसी कारणवश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं, तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं। प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। यह 40 मिनट का होता है।

कलश स्थापना
नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें। मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं और कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।

अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें।अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें। इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं। एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें। अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें, जिसमें आपने जौ बोएं हैं।

घोड़े पर सवार मां दुर्गा
विद्वानों के अनुसार इस बार शनिवार को घट स्थापना होने से देवी का वाहन घोड़ा रहेगा। इसके प्रभाव से पड़ोसी देश से तनाव बढ़ने की आशंका है और देश में राजनीतिक उथल-पुथल भी हो सकती है। आज मां भगवती शैलपुत्री के रूप में पूजा कराएंगी। दूसरे दिन मां की पूजा ब्रह्मचारिणी के रूप में होगी । उसके बाद मां चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और अंतिम नवे दिन सिद्धिदात्री के रूप में मां की पूजा एवं आराधना भक्‍त करेंगे।

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