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घोड़े के खून से एंटीबॉडी लेकर किया युवक की जानलेवा बीमारी का इलाज

पहली बार एटीजी थैरेपी से अप्लास्टिक एनीमिया से पीडि़त मरीज का इलाज

सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से 3 महीने इलाज के बाद कल होगी युवक की घर वापसी

इंदौर, प्रदीप मिश्रा। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर (Super Specialty Hospital Indore) में पहली बार दुनिया की खतरनाक जानलेवा बीमारियों में से एक अप्लास्टिक एनीमिया से पीडि़त गम्भीर मरीज का एटीजी थैरेपी के माध्यम से, यानी घोड़े के खून से एंटीबॉडी लेकर इलाज किया गया। इलाज करने वाली टीम के डॉक्टर के मुताबिक लगभग 3 माह तक चले इलाज के बाद स्वस्थ होने पर कल हॉस्पिटल से इस मरीज की घर वापसी हो रही है।


सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (Super Specialty Hospital Indore) के डॉक्टर ने बताया कि जिस तरह जिन मरीजों के लिवर, किडनी फेल हो जाते हैं तो ऐसे मरीजों में दूसरों के ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए जाते हैं। इसी तरह जब किसी भी मरीज का बोनमैरो फेल हो जाता है, मतलब खून बनना बंद हो जाता है, उसे अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी कहते हैं। इसके इलाज के लिए बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है, मगर कई बार ट्रांसप्लांट वाले बोनमैरो के जीन्स उस पीडि़त मरीज से मैच नहीं करते। ऐसे हालात में बोनमैरो ट्रांसप्लांट करना असंभव हो जाता है। तब मरीज का इलाज घोड़े के खून से एंटीबॉडी लेकर एटीजी (एंटीथाइमोसाइट ग्लोब्युलिन थैरेपी के माध्यम से किया जाता है।

अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी की वजह
अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी की मुख्य वजह हड्डियों में मौजूद बोनमैरो के अंदर खून बनना बन्द हो जाना है। अप्लास्टिक एनीमिया दो तरह के होते हैं- एक्वायर्ड अप्लास्टिक एनीमिया, इन्हेरिटेड अप्लास्टिक एनीमिया। इस जानलेवा बीमारी की वजह से शरीर में लगातार खून कम होता चला जाता है। इसके साथ ही प्लेटलेट कम होना, ब्लीडिंग होना, व्हाइट ब्लड सेल कम होना, बार-बार इंफेक्शन होने लगता है। हर हफ्ते ब्लड चढ़ाना पड़ता है। इम्युनिटी लगातार कम होने लग जाती है। समय पर इलाज न होने पर मरीज की 24 या 36 माह में मौत तक हो जाती है।

जानलेवा अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी के लक्षण
शरीर में लगातार कमजोरी और थकान बने रहना, श्वास सम्बन्धित समस्या का बढ़ते जाना, अचानक धडक़न (हार्टबीट) बढ़ जाना, स्किन मतलब त्वचा का पीला पडऩा, लंबे समय तक इन्फेक्शन बने रहना, नाक और मसूड़ों से खून आते रहना चोट लगने के बाद जख्म से खून का बहना बंद न होना, शरीर पर लाल रंग के चकत्तों का पडऩा, सिर चकराना, बार-बार सिरदर्द, बुखार बने रहना, छाती में दर्द होना, यह लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर्स से तत्काल जांच कराना चाहिए। यह बीमारी खतरनाक बीमारियों में से एक है, जिसका इलाज बहुत ज्यादा महंगा होता है।

इस जानलेवा बीमारी का इलाज एटीजी थैरेपी से ही संभव है। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में इस थैरेपी से पहली बार इलाज किया गया है। तीन माह तक चले इलाज में डॉक्टर सुधीर कटारिया, डॉक्टर राहुल भार्गव, डॉक्टर सुमित शुक्ला की अहम भूमिका रही। इन सबकी वजह से पहली बार सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में अब एटीजी थैरेपी इलाज की शुरुआत हो गई है। इससे अब गरीब और मध्यम वर्ग के पीडि़तों का इलाज आसानी से हो सकेगा।
डॉ. अक्षय लाहोटी, डीएम क्लिनिकल हेमेटोलॉजिस्ट, सहायक प्रोफेसर मेडिकल कॉलेज, इंदौर

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