भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

पावर प्लांट से राखड़ उठाने में जनता पर पड़ेगा 113 करोड़ का बोझ

  • संजय गांधी ताप गृह ने निकाली निविदा, राजमार्ग निर्माण के लिए दे रहे राखड़

भोपाल। कोयला से संचालित बिजली घरों की राख पहले जहां मुनाफा दे रही थी, अब यही राखड़ खर्चीली हो गई है। तापगृहों को राखड़ हटाने के लिए करोड़ों रुपये मिलने के बजाय खर्च करना पड़ रहा है। संजय गांधी तापगृह बिरसिंहपुर की राखड़ को उठाने के लिए अनुमानित 113 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। कंपनी प्रबंधन ने इसके लिए निविदा निकाली है। राखड़ का इस्तेमाल राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में होगा। तापगृह राखड़ को उठाकर निर्माण स्थल तक पहुंचाएगा। इसके परिवहन पर होने वाला सारा खर्च पहले तो मप्र पावर जनरेशन कंपनी देगी लेकिन अंत में इसका बोझ आम जनता को महंगी बिजली खरीदकर उठाना होगा।
सूखी और गीली राखड़ को पहले सीमेंट कंपनियां खुद के खर्च पर तापगृह से उठाती थीं। इसके लिए सालाना ठेका दिया जाता था। इसमें करोड़ों की आय तापगृह को होती थी। साल 2021 के अंत में केंद्र सरकार ने तापगृहों को राखड़ मुफ्त में देने का निर्देश दिया। पर्यावरण का हवाला देते हुए यह आदेश जारी हुआ, ताकि तापगृहों से सारी राखड़ हटाई जा सके। मप्र पावर जनरेशन कंपनी अब इस राखड़ को राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में देना चाह रही है। एक टेंडर 22.62 करोड़ रुपये का है, उसमें कटनी बायपास पर स्वीकृत राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 के लिए राखड़ पहुंचानी है। 90.32 करोड़ रुपये का ठेका सतना-मैहर के बीच 39 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए देनी है।


बोझ जनता पर आएगा
संजय गांधी तापगृह में 31 मार्च 2022 तक करीब एक करोड़ 61 लाख 85 हजार टन राखड़ का स्टाक था। अभी तक इसमें काफी इजाफा हो गया होगा। तापगृह में प्रतिमाह औसत 2.5 लाख टन राखड़ पैदा होती है, जिसे उठाने के लिए तापगृह को करीब 113 करोड़ रुपये की निविदा बुलानी पड़ी। इस राशि को खर्च करने के बाद कंपनी इसकी वसूली के लिए विद्युत नियामक आयोग के पास आवेदन करेगी, जहां से बिजली दर में बढ़ोतरी के जरिए इसकी भरपाई की संभावना है।

निविदा के समय पर सवाल
संजय गांधी तापगृह ने 18 अगस्त को निविदा जारी की। इसमें आनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि पांच सितंबर रखी गई। सात सितंबर को निविदा खोला जाना है। जानकारों का दावा है कि लोक निर्माण विभाग के निविदा मैन्युअल में निविदा जारी होने के बीच 21 दिन का न्यूनतम समय दिया जाता है जबकि यहां सिर्फ 15 दिन का समय दिया जा रहा है।

इनका कहना है
राखड़ को तापगृह से हटाना कंपनी की जिम्मेदारी है। इसमें जो भी राशि खर्च होगी, उसका वहन कंपनी करेगी, जिसे बाद में मप्र विद्युत नियामक आयोग के पास भुगतान के लिए लगाया जाएगा। सभी तापगृहों में राखड़ उठवाने की ऐसी ही प्रक्रिया अपनाई जा रही है।
व्हीके कैलासिया, मुख्य अभियंता, संजय गांधी तापगृह मप्र पावर जनरेशन कंपनी

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