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अमेरिका के बाद यूरोप में फैला साइबर हमलों का डर, रूस पर है शक

ब्रसेल्स। अमेरिका(America) में साइबर हमले (Cyber attack) के कारण एक बड़ी गैस पाइपलाइन के बंद हो जाने की वजह से यूरोपियन यूनियन European Union (ईयू) में भय फैल गया है। अमेरिका की कॉलोनियल गैस पाइपलाइन के कंप्यूटर सिस्टम (US Colonial Gas Pipeline Computer System) पर साइबर हमला हुआ था। उसके कुछ दिनों के बाद जाकर आंशिक रूप से गैस की सप्लाई शुरू हो पाई।
शुरुआती जांच से पता चला कि रूसी भाषी लोगों के ग्रुप डार्कसाइड (Darkside) ने अमेरिकी पाइपलाइन (American pipeline) पर साइबर हमला(Cyber attack) किया। ऐसी कुछ छोटी घटनाएं यूरोप में भी पहले हो चुकी हैं। यहां भी शक रूसी गुटों पर जाता रहा है। अब आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका जैसा कोई बड़ा हमला ईयू क्षेत्र में भी हो सकता है। कहा गया है कि रूस से टकराव में यूक्रेन को ईयू के समर्थन से नाराज रूसी गुट यूरोपियन सिस्टम्स को निशाना बना सकते हैं।



यूक्रेन में बिजली सिस्टम और चुनाव प्रणाली से जुड़े कंप्यूटर नेटवर्क्स पर साइबर हमले हो चुके हैं। इसके अलावा 2017 में यूरोप में नॉटपेटया नाम का हमला हुआ था, जिसमें डेनमार्क की शिपिंग कंपनी मायेर्स्क, लॉजिस्टिक्स कंपनी फेडएक्स, दवा कंपनी मर्क सहित कई दूसरी कंपनियों को निशाना बनाया गया था। बताया जाता है कि उस हमले के कारण दस अरब डॉलर का नुकसान हुआ था।
विशेषज्ञों का कहना है कि 2017 के साइबर हमले के बाद ईयू ने अपने ऊर्जा सिस्टमों को साइबर हमलों से बचाने के लिए विशेष उपाय किए। लेकिन अमेरिका में हुए ताजा हमलों के बाद कहा जा रहा है कि संभव है कि वो उपाय काफी ना हों। यूरोपीय संसद में नीदरलैंड्स से जीते सदस्य बार्ट ग्रूथियस ने वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू से कहा- ‘कोलोनियल पाइपलाइन पर हुए हमले से ये जरूरत साफ हो गई है कि महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर की रक्षा के लिए नए उपायों की जरूरत है।’
कॉलोनियल पाइपलाइन पर हमला रैनसमवेयर के जरिए हुआ। ईयू की साइबर सुरक्षा एजेंसी ईएनआईएसए के मुताबिक यूरोप पर 2020 में लगभग 100 बार साइबर हमलों की कोशिश हुई। उनमें लगभग आधे रैनसमवेयर हमले थे। ईयू में पहली बार 2016 में साइबर सुरक्षा कानून बनाया गया था। इसके तहत न्यूनतम साइबर सुरक्षा मानक तय किए गए। साथ ही साइबर हमले की सूचना तुरंत देने का नियम बनाया गया। अब विशेषज्ञ यूरोप की पाइपलाइन प्रणालियों के उन हिस्सों पर गौर कर रह हैं, जिनके अभी भी हमले का निशाना बन सकने की आशंका कायम है।
कॉलोनियल हमले में देखा यह गया कि हमलावरों ने सीधे इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना नहीं बनाया। बल्कि उन्होंने उसके बिजनेस से जुड़े कंप्यूटर नेटवर्क को हैक किया, जिसे एक प्राइवेट ऑपरेटर संचालित करता है। गैस पाइपलाइन को एहतियाती कदम के तौर पर बंद किया गया। लेकिन उसकी वजह से दर्जन भर राज्यों में गैस सप्लाई प्रभावित हुई। कुछ राज्यों में गैस के दाम बढ़ गए, जबकि कई जगहों पर उपभोक्ताओं को लंबी कतार लगानी पड़ी।
अब यूरोपीय विशेषज्ञों ने कहा है कि ईयू को इस हमले और उस कारण अमेरिका में हुए अनुभव से सबक लेना चाहिए। उसे सभी सदस्य देशों को कहना चाहिए कि वे कम से कम 90 दिन के कच्चे तेल और पेट्रोलियम पदार्थों का भंडार बना कर रखें। कम से कम दो महीने तक उपभोक्ताओं को कोई दिक्कत ना हो, इसका इंतजाम रखा जाना चाहिए। गौरतलब है कि पिछले दिसंबर में बुल्गारिया, रोमानिया और चेक रिपब्लिक को यूरोपीय आयोग ने इसलिए फटकार लगाई थी, क्योंकि वे न्यूनतम भंडार नहीं रखते।
विशेषज्ञों ने चेताया है कि जिस तरह साइबर हमले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए सारी व्यवस्था का नया मॉडल तैयार करना होगा। ईयू की एजेंसी फॉर को-ऑपरेशन ऑफ एनर्जी रेगुलेटर्स (एसीईआर) से जुड़ी विशेषज्ञ उना शॉरटॉल के मुताबिक साइबर स्पेस ने ऊर्जा क्षेत्र में खतरों और जोखिम के बारे में नए ढंग से सोचने की जरूरत पैदा कर दी है। इसमें बचाव की रणनीति बनाना उस हालत से कहीं ज्यादा बेहतर है, जब आपका बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर शिकार बन जाए।

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