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“भैय्या इज बैक” पोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जमानत रद्द कर आरोपी छात्र नेता को भेजा जेल

नई दिल्‍ली । दुष्कर्म के मामले (rape cases) में रिहा किए गए छात्र नेता (student leader) को सोशल मीडिया (social media) पर नामी लोगों के चेहरे के साथ ‘भैया इज बैक’ वाली पोस्ट करना महंगा पड़ा है। नाराज सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बृहस्पतिवार को छात्र नेता की जमानत रद्द कर दी। उस पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का आरोप है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने आरोपी शुभांग गोटिया को प्राथमिकी दर्ज करने में देरी के आधार पर राहत दी थी। जबकि, उसके आपराधिक इतिहास की अनदेखी की गई थी।


जस्टिस हिमा कोहली ने पोस्ट का जिक्र करते हुए कहा, इस गंभीर अपराध में दो महीने से कम समय में हिरासत से रिहा होने के बाद आरोपी और उसके समर्थकों के जश्न गुणगान करने वाले हैं। जबकि इस गंभीर अपराध के लिए कम से कम दस साल की सजा होती है। पीठ ने यह भी कहा कि इस बेशर्म आचरण ने शिकायतकर्ता के मन में एक वास्तविक भय पैदा किया कि उसे एक निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी। आरोपी के गवाहों को प्रभावित करने की भी आशंका है।

तस्वीरें आरोपी के परिवार की शक्ति उजागर कर रहीं…शिकायतकर्ता पर हानिकारक पड़ेगा प्रभाव
पीठ ने कहा, सोशल मीडिया पर तस्वीरों के साथ टैग कैप्शन समाज में आरोपी व उसके परिवार की बेहतर स्थिति और शक्ति को उजागर करते हैं। शिकायतकर्ता पर इसके हानिकारक प्रभाव को भी जाहिर करते हैं। लिहाजा पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपी को एक सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है।

पीड़िता ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा था, रिहाई के बाद उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया में दिखाई दीं, जिसमें उसके स्नैपशॉट प्रमुख रूप से पोस्टर और होर्डिंग पर समाज के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के चेहरे के साथ सबसे आगे दिखाए गए और ‘भैया इज बैक’, ‘बैक टू भैया’ जैसे कैप्शन के साथ उसका स्वागत किया गया। वहीं आरोपी ने दावा किया कि वह छात्र नेता है और पोस्टरों से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि कोर्ट ने कहा, मुकुट और दिल के इमोजी इस तर्क को झुठलाते हैं।

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