इंदौर न्यूज़ (Indore News)

एक और टॉकिज जमींदोज, ऑटो पार्ट्स कॉम्प्लेक्स बनेगा

54 साल पहले बिना बालकनी के एक फूल – एक ही भूल फिल्म के साथ शुरू हुआ मधुमिलन…कुछ महीने पहले बिक गया, दो साल से  बंद  पड़ा था

इन्दौर। शहर के वर्षों पुराने टॉकिजों (many years old talkies) के बंद होने का सिलसिला जारी है। कुछ महीने पहले छोटी ग्वालटोली क्षेत्र स्थित मधुमिलन सिनेमा (Madhumilan Cinema) का भी सौदा मोदी परिवार ने कर दिया, जिसके बाद इसे तोडऩे का सिलसिला शुरू हुआ। सूत्रों के मुताबिक यहां पर ऑटोमोबाइल पाट्र्स का कॉम्प्लेक्स बनाया जाएगा, क्योंकि आसपास इसी से संबंधित कारोबारियों की दुकानें हैं।


 6 फरवरी 1968 को एक फूल-एक भूल फिल्म के साथ इस टॉकिज का शुभारंभ हुआ था और अंतिम फिल्म कुछ दिनों पहले बेल बॉटम लगी। हालांकि दो साल से टॉकिज लगभग बंद ही रहा। यशवंत, रीगल, बेम्बिनो, स्टारलिट, प्रकाश सहित कई टॉकिज विगत वर्षों में बंद हो गए और उनकी जगह व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स निर्मित हो गए हैं। हालांकि अब पुराने टॉकिजों की पूछपरख भी कम हो गई, क्योंकि चमचमाते मल्टीप्लेक्स टॉकिजों का जमाना आ गया है, जो शॉपिंग मॉलों में कई स्क्रीनों के साथ बने हैं। इंदौर में पीवीआर, आईनॉक्स व अन्य ने अपनी स्क्रीनों की संख्या बढ़ा ली। हालांकि यहां फिल्म देखना पुराने सिंगल स्क्रीन टॉकिजों की तुलना में कई गुना महंगा भी पड़ता है। अभी भी आम आदमी मनोरंजन के लिए इन छोटे पुराने सिनेमाघरों में ही जाता है। छोटी ग्वालटोली क्षेत्र स्थित मधुमिलन सिनेमा भी आखिरकार बंद हो गया। कई दिनों से इसके टूटने का सिलसिला भी जारी रहा। मोदी परिवार ने इस टॉकिज का सौदा कुछ समय पूर्व कर दिया था। इंदौर के फिल्म वितरक और जानकार ओपी गोयल के मुताबिक बिना बालकनी के यह टॉकिज चालू हुआ था और फिर ईवनिंग इन पेरिस फिल्म से बालकनी की सुविधा भी शुरू की गई। यहां ज्यादातर एक्शन फिल्में ही लगती रहीं। सरवटे बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के साथ-साथ बीच शहर में मौजूद होने के कारण एक वक्त में यह टॉकिज अत्यंत लोकप्रिय भी रहा, जहां दर्शकों की अच्छी-खासी भीड़ भी जुटती रही। सूत्रों का कहना है कि अब यहां ऑटो पाट्र्स का हब निर्मित किया जाएगा। कोविड के चलते टॉकिज बंद भी रहा और दो साल से संचालन एक तरह से बंद रहा। कुछ दिनों के लिए अक्षय कुमार की फिल्म बेल बॉटम लगी थी। इस टॉकिज को लम्बे समय तक जगदीश शर्मा ने भी बतौर मैनेजर चलाया, जो यहीं पर गेटकीपर थे और बाद में इस टॉकिज के मैनेजर बने। उन्होंने अपना खुद का मनमंदिर सिनेमा भी बनाया। हालांकि वह भी कुछ वर्ष पूर्व बिक गया और उसकी जगह पर व्यावसायिक मार्केट निर्मित हो गया।

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