- प्रदेश के सभी धुरंधर नेताओं का जमावड़ा
- शिवराज ने भिंड से निकाली विकास यात्रा, कमलनाथ ने की सभा
रामेश्वर धाकड़
भोपाल। प्रदेश में आज संत रविदास जयंती पर चंबल से विधानसभा चुनाव का आगाज हो रहा है। दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस एवं भाजपा के दिग्गज नेताओं का भिंड और मुरैना में जमावड़ा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भिंड में विकास यात्रा का शुभारंभ किया। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी मुरैना में संत रविदास जयंती कार्यक्रम में शामिल होंगे। दोनों दल अब चुनाव मैदान में कूद चुके हैं।
मप्र की सियासत में ग्वालियर-चंबल की हमेशा से अहम भूमिका रही है। अगला विधानसभा चुनाव भी इसी क्षेत्र से तय होगा। यही वजह है कि कांग्रेस एवं भाजपा ने चुनावी आगाज ग्वालियर-चंबल से किया है। इस क्षेत्र में 34 विधानसभा सीटें है। मौजूदा स्थिति में कांगे्रस के पास 50 फीसदी 17 सीट हैं। जबकि कांगे्रस के पास 16 सीटें है। हालांकि भिंड से बसपा विधायक संजीव सिंह भी भाजपा के साथ हो लिए हैं। वर्ष 2020 में दलबदल करके कांग्रेस के 16 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। तब उपचुनाव में भाजपा 9 सीट और कांग्रेस 7 सीटों पर जीतकर आई थी। तब भी विधासभा सीटों के हिसाब से दोनों दल बराबर हैं।
दलित समाज को साधने की तैयारी
2018 के चुनाव में ग्वालियर-चंबल में दलित वर्ग की नाराजगी से भाजपा को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा था। 2 अप्रैल 2018 की हिंसा बड़ी वजह थी। यही कारण है कि संत रविदास जयंती पर चुनाव आगाज करके राजनीतिक दल दलित वर्ग को साधने में जुटे हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज भिंड में हैं और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ मुरैना में हैं।
- भाजपा की ताकत
सांसद, विधायकों की संख्या और संगठन के लियाज से भाजपा ग्वालियर-चंबल में मजबूत है। भाजपा के पास भिंड, मुरैना, ग्वालियर और गुना के चारों सांसद हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री है। इसी तरह 8 जिलों में 16 विधायक हैं। जिनमें से 9 मंत्री हैं। इनमें से 5 कैबिनेट मंत्री हैं। - भाजपा की कमजोरी
ग्वालियर-चंबल में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी गुटबाजी है। क्षेत्रीय जातिवाद का नुकसान भाजपा को झेलना पड़े सकता है। मंत्री, विधायक एवं सरकार में भ्रष्टाचार भी भाजपा की बड़ी कमजोरी है। - कांग्रेस की ताकत
सिंधिया खेमे के 16 विधायकों द्वारा भाजपा में शामिल होकर कमलनाथ सरकार गिराने के बाद भी कांगे्रस के पास आज भाजपा से ज्यादा 17 सीटें बची हैं। सिंधिया के जाने के बाद कोई गुटबाजी नहीं बची। गुना को छोड़कर कमलनाथ ही नेता हैं। - कांगे्रस की कमजोरी
संगठन बहुत की कमजोर। अभी भी टूट का खतरा। कई पदाधिकारी सिंधिया खेमे से जुड़े हैं। पार्टी के पास कोई क्षेत्रीय चेहरा नहीं है।