उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

फिलहाल तो शिप्रा का पानी आचमन योग्य नहीं

  • नदी को शुद्ध करने के केवल प्रस्ताव ही बन रहे हैं-क्या मकर संक्रांति का स्नान इसी दूषित जल से होगा

उज्जैन। शिप्रा शुद्धिकरण पर अब तक 600 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं लेकिन आज की बात करें तो नदी का पानी गंदा ही है और आचमन योग्य नहीं है..! अफसर केवल शिप्रा को शुद्ध करने के प्रस्ताव कर रहे हैं लेकिन उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है। दरअसल बीते दिनों भोपाल से आए आला अधिकारियों के दल ने शिप्रा शुद्धिकरण को लेकर चार सुझाव दिए हैं लेकिन इन सुझावों को पहले तो अमल में लाना और फिर तकनीकी रूप से भी देखना चुनौती से कम नहीं है। जिन सुझावों को अफसरों के दल ने दिया है यदि उन्हें अमल में लाया जाने की कवायद भी की जाए तो भी कम से कम अगले वर्ष के अंत तक शिप्रा शुद्धिकरण के मामले में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है।


इधर शिप्रा की मौजूदा स्थितियों को देखे तो मकर संक्रांति पर भी श्रद्धालुओं को गंदे और बदबूदार पानी में ही स्नान करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के निर्देश पर भोपाल के वरिष्ठ अफसरों का दल शिप्रा का मुआयना करने के लिए यहां आया था और इन अधिकारियों ने जो सुझाव दिए थे उनमें इंदौर में ही कान्ह के पानी का बेहतर ट्रीटमेंट करने, उज्जैन में राघौपिपल्या से पहले सीवरेज वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाये जाने , कान्ह पर पक्का बांध बनाये जाने राघोपिपल्या से कालियादेह महल तक खुली नहर बनाकर कान्ह के पानी को डायवर्ट करने जैसे सुझाव शामिल है। सरकार ने शिप्रा को प्रवाहमान बनाए रखने और शुद्ध बनाने के लिए दो दशकों में अभी तक 900 करोड़ रूपए खर्च कर दिए है। बावजूद इसके शिप्रा की स्थिति सुधरने का नामनहीं ले रही है। शिप्रा में प्रदूषण का मुख्य कारण कान्ह नदी का गंदा पानी मिलना है और इसे रोकने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना कर कान्ह डायवर्शन पाइपलाइन बिछवाई है। नर्मदा को शिप्रा से जोड़ा है, बावजूद इतना करने पर भी नतीजा शून्य ही रहा है। बता दें कि शिप्रा के मैली होने के खिलाफ संतों के प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जांच के निर्देश दिए थे और इसके बाद ही शिप्रा की स्थिति जानने के लिए अधिकारियों की टीम सूबे से उज्जैन आई थी।

इनका कहना
शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए करोड़ो रूपए खर्च कर दिए गए हैं लेकिन इसके बाद भी शिप्रा की स्थिति वैसी ही है। यह आश्चर्य का ही विषय है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। शिप्रा का पानी आचमन तो क्या स्नान योग्य भी नहीं रह गया है। शुद्धिकरण के मामले को गंभीरता के साथ लेना चाहिए।
– पं. आनंदशंकर व्यास, ज्योतिषाचार्य

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