इंदौर। नगर निगम जब भी कडक़ी में रहता है तब हर बार प्राधिकरण से करोड़ों रुपए का चेक हासिल कर लेता है। मगर कल उल्टे बांस बरेली की स्थिति निर्मित हो गई। जब प्राधिकरण दफ्तर में निगम के अधिकारी 220 करोड़ रुपए की वसूली का नोटिस लेकर पहुंच गए और दबाव बनाया कि कम से कम 100 करोड़ की राशि का तो चेक आज की लोक अदालत के नाम पर ही दे दे। 5 से 6 घंटे तक चली मशक्कत के बाद प्राधिकरण ने उल्टे 26 करोड़ 33 लाख की बकाया राशि निगम पर ही निकाल दी और इस राशि का चेक आज उपलब्ध कराने को कहा। दरअसल, निगम ने प्राधिकरण द्वारा घोषित टीपीएस योजना में शामिल सभी जमीनों पर सम्पत्ति कर मांग लिया, जबकि प्राधिकरण ने बताया कि अभी तो ये सारी जमीनें किसानों के नाम पर ही है।
हर साल प्राधिकरण नगर निगम को सम्पत्ति कर सहित विकास अनुमतियों के बदले में करोड़ों रुपए की राशि चुकाता है। खासकर जब भी लोक अदालत या वित्त वर्ष की समाप्ति होती है तब निगम को अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए प्राधिकरण से चेक लेना पड़ता है। आज लोक अदालत लग रही है, जिसमें बकायादारों को छूट दी जाएगी। वहीं दूसरी तरफ निगम ने अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए बड़े बकायादारों की सूची भी बनाई है और रोजाना जब्ती, कुर्की, वसूली की जा रही है। कल निगम के राजस्व अधिकारी नरेन्द्र नाथ पांडे सहित अन्य प्राधिकरण दफ्तर पहुंचे और 220 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि का नोटिस थमा दिया। साथ ही यह भी कहा कि कम से कम 100 करोड़ रुपए का चेक तो प्राधिकरण दे ही दे। इस पर भौंचक प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार ने सम्पदा, भू-अर्जन शाखा और वित्त के अधिकारियों को बैठाया और उनसे हिसाब-किताब निकालने को कहा।
साथ ही निगम को यह भी समझाया कि जो टीपीएस योजनाओं में सैंकड़ों एकड़ जमीनें शामिल हैं उनकी रजिस्ट्रियां अभी प्राधिकरण के नाम पर नहीं हुई है, जिनमें से कुछ टीपीएस तो अभी शासन के पास विचाराधीन है, वहीं जो पुरानी टीपीएस घोषित की गई है उनमें भी किसानों-जमीन मालिकों द्वारा प्राधिकरण के पक्ष में रजिस्ट्रियां नहीं की गई है। लैंड पुलिंग एक्ट के तहत टीपीएस योजनाओं में शामिल निजी जमीनें 50 फीसदी वापस लौटा दी जाती है और शेष 50 फीसदी पर प्राधिकरण सडक़, बगीचे सहित अन्य विकास कार्य कर 20 फीसदी जमीन पर विकसित भूखंडों का विक्रय कर सकता है। सीईओ ने तुरंत ही अपर आयुक्त राजस्व के नाम पर एक पत्र तैयार करवाया, जिसमें पूर्व में दी गई योजना क्र. 166, 169-ए और 136 के सम्पत्ति कर का लेखा-जोखा बताया गया, जिसमें यह कहा गया कि 50 करोड़ 97 लाख के बदले प्राधिकरण ने 41 करोड़ रुपए से अधिक का चेक 31.03 को सौंपा और फिर शेष राशि 9 करोड़ 85 लाख रुपए भी 05 अप्रैल को जमा करा दिए। मगर इसमें से बची राशि का समायोजन नहीं किया गया। लिहाजा नगर निगम 26 करोड़ 33 लाख 24600 रुपए की शेष राशि प्राधिकरण को उपलब्ध करवाए। यानी कहां तो नगर निगम करोड़ों रुपए का चेक लेने पहुंचा था, उल्टा उस पर ही प्राधिकरण ने बकाया राशि निकाल दी।
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