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भोपाल गैस कांड : केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान बेंच ने भोपाल गैस पीड़ितों (bhopal gas victims) को 7400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा (Additional compensation of Rs 7400 crore) दिलवाने की मांग वाली केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल गैस पीड़ितों को एक भी पैसा नहीं देगा।


कोर्ट ने 11 जनवरी को केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा था कि त्रासदी की भयावहता पर किसी को कोई संदेह नहीं है। त्रासदी के बाद जो मुआवजे का भुगतान किया गया है। उसपर कुछ सवालिया निशान जरूर है। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि इस तरह की भयावहता की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानवीय दुर्घटना में परंपरागत सिद्धांतों से परे हटकर विचार किया जाना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा था कि जब इस बात का आकलन किया गया तो इस तरह का आकलन करने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार था।

जस्टिस कौल ने कहा कि कल भी हमने पूछा था कि जब केंद्र सरकार ने फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की है तो वह क्यूरेटिव पिटीशन कैसे दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि शायद इस मामले को तकनीकी रूप से न देखा जाए, लेकिन हर एक विवाद का कहीं तो अंत होना ही चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा कि इस मामले में 19 साल पहले समझौता हुआ था। उस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती थी, लेकिन सरकार द्वारा कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं किया जाता है। अब केंद्र सरकार इस मामले पर क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करता है। घटना के तीन दशक बीत जाने के बाद केंद्र द्वारा क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग कैसे हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से 2 और 3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को जहरीली मिथाइल आइसोसायनेट गैस का रिसाव हुआ था, जिसमें तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। 1989 में हुए समझौते के समय 715 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था। केंद्र सरकार ने 2010 में अतिरिक्त मुआवजे की मांग करते हुए क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी। भोपाल की अदालत ने 7 जून, 2010 को यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों को दो साल की सजा सुनाई थी। इस मामले में यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन मुख्य आरोपित था। इस मामले की सुनवाई करनेवाली संविधान बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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