इंदौर न्यूज़ (Indore News)

बंबई बाजार कांड को आज तक भुना रही है भाजपा, 1993 से लगातार गौड़ परिवार का कब्जा

इंदौर। संजीव मालवीय। इंदौर (Indore) की चार नंबर विधानसभा को यूं ही भाजपा की अयोध्या नहीं कहा जाता, लेकिन हकीकत यह है कि इस क्षेत्र में हुए बंबई बाजार कांड को भाजपा ने ऐसा रंग दिया कि यह इलाका दो वर्गों में बंट गया। 1990 में कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) ने यह सीट नंदलाल माटा से जीती और उसके बाद वे दो नंबर में आ गए, लेकिन इसके बाद लगातार 1993 यानि 20 सालों से इस सीट पर गौड़ परिवार काबिज है।

इस सीट पर 1962 में वीवी द्रविड़ यहां से कांग्रेस (Congress) के विधायक बने और निर्दलीय लक्ष्मीशंकर शुक्ला को हराया। तब यहां 25 हजार के आसपास ही मतदाता हुआ करते थे। खैर समय बदलने के साथ-साथ आज 4 नंबर ऐसी अभेद अयोध्या हो गया है, जहां अभी तक कांग्रेस को कोई दमदार उम्मीदवार नहीं मिल पाता। हालंकि कांग्रेस के प्रत्याशी पूरा दमखम लगाते हैं, लेकिन सीट नहीं छीन पाए। उस जमाने के लोगों को बंबई बाजार कांड याद होगा। तब से इस सीट पर हिन्दूवादी कट्टर विचारधारा के कारण ही इस सीट को भाजपा की अयोध्या कहा जाता है।


तीन साल लखन तो अब 3 साल से पत्नी हैं विधायक
1990 में कैलाश विजयवर्गीय यहां से भाजपा के पहले विधायक बने। हालांकि इसके पहले श्रीवल्लभ शर्मा जनता पार्टी से यहां से विधायक रहे थे। 1993, 1998 और 2003 में लगातार लक्ष्मणसिंह गौड़ तो उसके बाद 2008, 2013 और 2018 में उनकी पत्नी मालिनी गौड़ का इस सीट पर कब्जा है। हालांकि इस बार वे अपनी विरासत पुत्र को सौंपना चाहती थीं, लेकिन लगातार विरोध के चलते पार्टी को भी सोचने पर मजबूर होना पड़ा और फिर से मालिनी गौड़ को टिकट दे दिया गया।

कांग्रेस-भाजपा की सीट, एक बार निर्दलीय भी
इस सीट का मिजाज यूं तो अब भाजपाई है, लेकिन इसके पहले कांग्रेस और भाजपा के पास यह सीट रही। इस सीट पर सबसे पहले कांग्रेस के वीवी द्रविड़ ने विजय पताका फहराई और निर्दलीय लक्ष्मीशंकर शुक्ल को हराया, लेकिन इसके बाद ही 1967 के चुनाव में यज्ञदत्त शर्मा निर्दलीय के बतौर चुन लिए गए। इसके बाद 1972 में कांग्रेस, 1977 में जनता पार्टी तो 1985 में नंदलाल माटा जैसे नेता यहां से विधायक बने। चन्द्रप्रभाष शेखर, श्रीवल्लभ शर्मा, यज्ञदत्त शर्मा जैसे नेता यहां से हारे भीं।

1990 में विजयवर्गीय ने छीनी थी यह सीट
1990 में कैलाश विजयवर्गीय ने करीब 25 हजार वोटों से अपने जीवन के विधायक का पहला चुनाव यहीं से जीता और इकबाल खान को हराया। इसके पहले यह सीट नंदलाल माटा के पास थी। बस इसके बाद इस सीट को कांग्रेस आज तक एक बार भी नहीं जीत सकी।

महिला-पुरुष मतदाता बराबर हैं इस विधानसभा में
इस विधानसभा में इस बार 2 लाख 40 हजार 754 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इनमें देखा जाए तो महिला और पुरुषों की संख्या बराबर है। इस सीट पर 1 लाख 20 हजार 349 पुरुष तो 1 लाख 20 हजार 398 महिला मतदाता हैं। अन्य यानि तीसरे जेंडर के मतदाताओं की संख्या यहां 7 है।

पिता-पुत्र भी हारे हैं इस सीट से
1993 में इस सीट से कांग्रेस ने उजागरसिंह चड्ढा को टिकट दिया था, लेकिन वे लक्ष्मणसिंह गौड़ से 28 हजार 109 सीटों से हार गए थे। इसके बाद उनके पुत्र और वर्तमान शहर कांग्रेस अध्यक्ष सुरजीतसिंह चड्ढा को 2018 में टिकट दिया गया। वे मालिनी गौड़ से 43 हजार 90 वोट से हार गए। अब इस सीट पर पार्टी ने सिंधी समाज से राजा मांधवानी को टिकट दिया है, जो फिलहाल तो कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

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