ब्‍लॉगर

भाजपा ने राजनीति को सेवा करने का सर्वोत्तम माध्यम बनाया

– डॉ. आशीष वशिष्ठ

देश के राजनीतिक इतिहास में छह अप्रैल का दिन खास अहमियत रखता है। “अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा ” भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने आज ही के दिन, 1980 में यानी 44 साल पहले, पार्टी की स्थापना के समय ये शब्द कहे थे। शायद उन्होंने यह बात पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कही होगी लेकिन उस समय पार्टी कार्यकर्ताओं या फिर विपक्षी दलों में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले दिनों में अटल जी की बातें सही साबित होंगी। 1984 के लोकसभा चुनाव में केवल दो सीटें हासिल करने से लेकर 2019 के चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली भाजपा ने अपने इस शानदार सफर में कई उतार-चढ़ाव भी देखे, बड़े झटके भी खाए और मायूसी भी महसूस की।

धरातल पर बदलाव लाने के लिए राजनीति सबसे सशक्त माध्यम है। राजनीति के माध्यम से हम समाज के दबे-कुचले लोगों और उपेक्षित समुदायों को ऊपर उठाते हुए सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को दूर करने का भरसक प्रयास कर सकते हैं। एक व्यापक बदलाव लाने का जो कार्य, बड़े से बड़े वेतन वाली प्रतिष्ठित नौकरी करके भी नहीं किया जा सकता है, उसे राजनीति के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। इसी सिद्धांत पर चलते हुए भाजपा ने आरंभ से ही राजनीति को सत्ता की बजाय सेवा का माध्यम माना है।


आजादी के बाद के लंबे कालखंड तक भारतीय राजनीति में परिवार और व्यक्ति केंद्रित दलों ने राजनीति को कमाई का जरिया बनाया और सेवा भाव को नदी के जलधारा में प्रवाहित कर दिया। बीच-बीच में केंद्र की सत्ता पर आसीन गैरकांग्रेसी सरकारों ने लोक कल्याण के लिए कुछ करने की सोची तो उन्हें अस्थिर कर दिया गया। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में पूर्ण बहुमत की एनडीए सरकार का गठन हुआ, तब से तस्वीर में बदलाव आया है। पिछले दस वर्षों में आम आदमी को इस बात का आभास हुआ है कि राजनीतिज्ञ अगर सेवा करने के भाव से राजनीति करें तो कितना बड़ा और व्यापक बदलाव देश और आम आदमी की जिंदगी में लाया जा सकता है। भाजपा की रीति-नीति और संकल्पों की डगर पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने यह साबित कर दिया कि राजनीति सेवा का सबसे सशक्त माध्यम है। परिवारवादी दल जो अपने परिवारजनों के विकास और उत्थान में सारी ऊर्जा खपाते हैं, वह राजनीति को सेवा का नहीं, बल्कि मेवा का माध्यम मानते हैं। उनकी डिक्शनरी में परिवार पहले और देश बाद में आता है।

तीन मार्च, 2024 को बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में जन विश्वास महारैली में इंडी अलांयस की रैली में बोलते हुए राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने प्रधानमंत्री मोदी के परिवारवाद वाली टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा था कि उनकी कोई संतान नहीं है। वो पत्नी के साथ नहीं रहते। कैसे जानेंगे कि परिवार क्या होता है? लालू प्रसाद की आपत्तिजनक टिप्पणी के अगले दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तेलंगाना के आदिलाबाद में जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने विपक्ष की ओर से उनके परिवार को लेकर किए गए हमले का परोक्ष रूप से जवाब दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं इनके परिवारवाद पर सवाल उठाता हूं, तो इन लोगों ने अब बोलना शुरू कर दिया है कि मोदी का कोई परिवार नहीं है। मैं इनसे कहना चाहता हूं कि 140 करोड़ देशवासी मेरा परिवार हैं। जिनका कोई नहीं है, वो भी मोदी के हैं और मोदी उनका है। मेरा भारत ही मेरा परिवार है।’ जो दल एक परिवार या व्यक्ति द्वारा द्वारा संचालित हो रहे हैं, उनके लिए परिवार ही सर्वोपरि है। उनकी सारी ऊर्जा परिवार के विकास और कल्याण में ही खर्च होती है। उनके एजेंडे में आम आदमी का विकास और कल्याण अंतिम पायदान पर होता है। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की विचारधारा ने भारतीय राजनीति की इसी विचारधारा को पलटने का काम किया है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य नेता कहते हैं कि हमारे लिए नेशन फर्स्ट है। विपक्ष के लिए तो फैमिली फर्स्ट इसे सारा देश अब अनुभव करने लगा है।

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को राजनीति और कूटनीति के माध्यम से राज्य, धर्म एवं समाज की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया है। धर्म के विपरीत आचरण करने वालों और सत्ता, सुख-संपदा, धन-वैभव एवं ऐश्वर्य के लिए जीने वालों को उन्होंने समस्त संसार के लिए विनाशकारी बताया है। इसलिए हमारी राजनीति के विमर्श में लोकमंगल की भावना होना बहुत आवश्यक है। राजनीति को सत्ता पाने का अवसर मानने वाली अनैतिकता ही अस्वस्थ राजनीतिक परंपरा को पोषित करती रहती है। यदि राजनीति की ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाया जाए और नैतिकता, मूल्यों एवं आदर्श का समावेश करते हुए सेवाभाव से कार्य किया जाए तो एक स्वस्थ, सक्षम एवं सजग समाज और सशक्त राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।

भाजपा के चाहे दो सांसद रहे हों या 303 भाजपा ने राजनीति को हमेशा सेवा का माध्यम माना। और ये बात उसके चरित्र और आचरण से झलकती भी है। राजनीति का चरित्र-चित्रण, उसके नेतृत्व में प्रतिबिंबित होता है। सही राजनीतिक नेतृत्व किसी भी संस्था या अभियान को जन-जन के बीच पहुंचा सकता है और उसे जनभागीदारी का प्रतीक बना सकता है। वैश्विक महामारी कोरोना के समय में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वर्तमान भारत सरकार ने जिस प्रकार से गरीबों एवं असहायों की सहायता के लिए राजनीतिक दूरदृष्टि के साथ शासन एवं प्रशासन का कार्य किया है, वह संस्थाओं के नेतृत्व का श्रेष्ठ उदाहरण है। कोरोना के समय विपक्ष ने नकारात्मक भूमिका निभाई। देश में बनी वैक्सीन से लेकर तमाम व्यवस्थाओं का उपहास उड़ाया। देश की जनता को भ्रमित करने का काम किया।

इसमें कोई दोराय नहीं है कि विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले भारत जैसे देश में कोरोना के संकट से निपटते हुए गरीबों, मजदूरों, किसानों, शोषितों और वंचितों के हितों की रक्षा करने से लेकर देश की आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने तक का कार्य, किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन संकट के ऐसे समय में प्रधानमंत्री ने देश के सभी राजनीतिक दलों को एक साथ जोड़ने का समेकित प्रयास करते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाने और जन-कल्याण करने के लिए सरकार की भावी प्राथमिकताओं और योजनाओं को धरातल पर उतारा है।

राजनीति का मूल उद्देश्य जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण को अधिकतम करना है। यदि राजनीति का पूरी तरह से सही और सकारात्मक दिशा में प्रयोग की जाए तो विकास के नए शिखर छुए जा सकते हैं, मानवता की सेवा की जा सकती है और देश को निरंतर आगे बढ़ाया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी साफ-सफाई जैसे छोटे से बिंदु से लेकर गरीबों को आवास की सुविधा के बारे में एक साथ सोचते हैं। उनकी सोच के दायरे में किसान, महिलाएं, युवा, दलित, आदिवासी, वंचित और देश का एक-एक नागरिक है। प्रधानमंत्री मोदी में सेवा के गुण पार्टी की रीति-नीति और विचारों की वजह से प्रभावी हैं, क्योंकि भाजपा के संस्थापकों ने सेवा भाव से ही राजनीतिक क्षेत्र में कदम बढ़ाया और अपनी आने वाली पीढ़ियों में भी सेवाभाव को कूट-कूट कर भरने का काम किया।

कहा जाता है कि व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है। प्रधानमंत्री ने देश की और देशवासियों की सेवा करने में दिन-रात एक किया। आज आदमी अपना भला-बुरा सब बहुत अच्छे से समझता है। उसे पता है कि कौन राजनीति को सेवा का माध्यम मानता है, और कौन सत्ता हासिल करके अपना पेट भरना चाहता है। इसलिए देशवासी विपक्ष के दुष्प्रचार, प्रलोभन और मायाजाल में नहीं फंसे। वर्तमान में देश में आम चुनाव का माहौल है। तीसरी बार प्रधानमंत्री मोदी चुनावी मैदान में है। देश की जनता भलीभांति यह समझ चुकी है कि उसका कल्याण और उत्थान वही व्यक्ति कर सकता है जो 140 करोड़ देशवासियों को अपना परिवार समझता है। जो बिना किसी भेदभाव और पूर्वाग्रह के प्रत्येक व्यक्ति की सेवा में जुटा रहता है।

वर्ष 2023 में भाजपा के स्थापना दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा था, ”आज अस्तित्व के संकट से जूझ रही पार्टियां हमारे खिलाफ साजिश करती रहेंगी। लेकिन हमें परेशान होने की जरूरत नहीं, क्योंकि गरीब, वंचित, दलित, आदिवासी ‘कमल’ की रक्षा कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, भाजपा भारत के लिए दिन-रात काम कर रही है, और हमारी पार्टी “मां भारती”, संविधान और राष्ट्र को समर्पित है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दूसरे दल भी भाजपा से इस सेवाभाव को ग्रहण कर राष्ट्र और राष्ट्र वासियों के कल्याण और उत्थान के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित होंगे।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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