नई दिल्ली (New Delhi) । ओडिशा (Odisha) की राजनीति और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक (Chief Minister Naveen Patnaik) एक दूसरे के पर्याय जैसे हो गए हैं। यही वजह है कि ओडिशा की राजनीति बीते दो दशकों से नवीन पटनायक के आसपास घूमती रहती है। भाजपा (BJP) के लिए इस राज्य में बीजद (BJD) से ज्यादा बड़ी चुनौती नवीन पटनायक बने हुए है, जिनकी लोकप्रियता का काट फिलहाल नहीं दिख रहा है। ऐसे में भाजपा ने अब नवीन के बजाए उनकी टीम और बीजद को निशाना बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
ओडिशा में लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ होने हैं। ऐसे में वहां की चुनावी रणनीति पर दोनों चुनावों का दबाब रहता है। राज्य में कांग्रेस काफी कमजोर है। ऐसे में सत्तारूढ़ बीजद का मुकाबला भाजपा से ही होना है। भाजपा ने भी नवीन पटनायक की मजबूत स्थिति को देखते हुए सीधे उन पर प्रहार न करने की रणनीति अपनाई है। ऐसे में उसके निशाने पर राज्य के अन्य मंत्री, सांसद व नौकरशाही रहती है। वैसे भी भाजपा को संसद में मौके बेमौके बीजद का समर्थन मिलता रहा है।
लोकसभा में भाजपा को पिछली बार काफी लाभ मिला था और उसने 21 में से आठ पर जीत हासिल की थी। बीजद को 12 व कांग्रेस को एक सीट मिली थी। दूसरी तरफ विधानसभा में 147 सीटों में बीजद के पास 114 सीटें हैं। भाजपा के पास 22, कांग्रेस के पास नौ व सीपीएम व आईएनडी के पास एक एक सीट है। इस आंकड़े से साफ है कि राज्य में 2000 से सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक को फिलहाल बड़ी चुनौती मिलती नहीं दिख रही है। हालांकि भाजपा ने राज्य में कई प्रयोग किए हैं, लेकिन वह सफल नहीं रहे हैं।
ऐसे में भाजपा की रणनीति लोकसभा चुनावों पर ज्यादा केंद्रित रहेगी। उसकी कोशिश रहेगी कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ अपनी ताकत को और ज्यादा बढ़ा सके। साथ ही नवीन पटनायक पर नरम रुख अपनाकर भाजपा इसे भी अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेगी। इस बार पार्टी की कोशिश राज्य की आधी से ज्यादा सीटें जीतने की होगी। ओडिशा में भाजपा की रणनीति को अमल में लाने का दारोमदार केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, आदिवासी नेता जियोल ओराम व युवा नेता संबित पात्रा पर ज्यादा रहेगा। पार्टी की रणनीति को धार देने के लिए राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल कमान संभाले हुए हैं।
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