लखीमपुर-खीरी/शाहजहांपुर। एक समय राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सबसे करीबी नेता माने जाने वाले जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) अब भाजपाई हो गए हैं। बुधवार सुबह से चर्चा का बाजार गर्म था कि यूपी से कांग्रेस (Congress) का कोई बड़ा नेता बीजेपी (BJP) में शामिल हो सकता है। दोपहर होते-होते आशंका के बादल छंट गए और जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) की बीजेपी (BJP) की सदस्यता लेते हुए तस्वीर सामने आ गई। इसी के साथ एक समय उनके पीछे झंडा उठाकर चलने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया और ट्विटर पर उन्हें अपशब्द तक कहे जा रहे हैं।
पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस ने जितिन को खूब सुनाया
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) पर सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया है। सुप्रिया ने कहा कि जब सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कांग्रेस (Congress) की कमान संभाली थी तो जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने विरोध किया था और विरोध में चुनाव लड़ा था। इसके बाद भी उन्हें पद दिया गया। बाद में जितिन प्रसाद को भी पार्टी में मौका दिया गया। वह युवा कांग्रेस के महासचिव, सांसद और फिर कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य है कि जिस कांग्रेस ने उन्हें इतना कुछ दिया, वह पार्टी छोड़ गए। क्या यह सहूलियत की राजनीति नहीं है?’
जितिन के BJP में जाने से किसे फायदा-किसे नुकसान?
ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि जिन जितिन प्रसाद के बीजेपी (BJP) में जाने पर इतना हंगामा हो रहा है, उनकी शख्सियत है क्या? क्यों उनके शामिल होने पर इसे बीजेपी के ब्राह्मण कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है? जितिन खुद जिस शहर से आते हैं, वहां उनका जनाधार क्या है और बीजेपी में जाने पर उनसे पार्टी को कितना फायदा होगा?
जब जितिन के पिता ने सोनिया गांधी के खिलाफ की थी ‘बगावत’
जितिन प्रसाद मूलरूप से शाहजहांपुर के रहने वाले हैं। जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और शाहजहांपुर लोकसभा सीट से 4 बार सांसद भी रहे। जितेंद्र प्रसाद पार्टी में कई अहम पदों पर रहे। उनका आखिरी चुनाव 1999 का लोकसभा चुनाव था। इसके अगले साल ही उन्होंने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत छेड़ दी। जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के लगातार पार्टी अध्यक्ष बनने का विरोध किया। जितेंद्र प्रसाद बतौर कार्यकर्ता पार्टी में सोनिया गांधी से बहुत वरिष्ठ थे। उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा, मगर हार गए। इसके कुछ महीनों बाद ही जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया।
जितिन को विरासत में मिली राजनीति, 30 साल की उम्र में बने सांसद
जितिन को राजनीति अपने पिता से विरासत में मिली। पिता के निधन के वक्त जितिन 26 साल के थे। पार्टी ने उन्हें यूथ कांग्रेस का महासचिव बना दिया। यहां से उन्होंने करीब से राजनीति का ककहरा सीखना शुरू किया और 2004 में महज 30 साल की उम्र में उन्हें पार्टी ने पिता की परंपरागत सीट शाहजहांपुर से लोकसभा उम्मीदवार बना दिया। पुश्तैनी सीट से चुनाव लड़ रहे जितिन के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ गईं और उन्होंने 34.83 फीसदी वोटों के साथ जीत दर्ज की। इसके बाद साल 2008 में उन्हें इस्पात राज्य मंत्री बनाया गया। जितिन उस वक्त अपने लोकसभा क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय थे और सुलभ थे। कोई भी कभी भी ‘प्रसाद भवन’ जाकर उनसे मिल सकता था और अपनी बात कह सकता था।
2009 में नई लोकसभा सीट से जीते चुनाव, केंद्र में बने मंत्री
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले परिसीमन में शाहजहांपुर, लखीमपुर-खीरी और सीतापुर जिलों से निकलकर एक नई लोकसभा सीट धौरहरा अस्तित्व में आई। जितिन ने 2009 का लोकसभा चुनाव इस सीट से लड़ा और जीत दर्ज की। इस जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह उनके लखीमपुर-खीरी में रेल की बड़ी लाइन लाने के वादे को माना जाता है। लखीमपुर की जनता लंबे समय से इसकी मांग कर रही थी और 2009 में उनके इस वादे पर भरोसा करके जितिन को चुनाव जिताकर लोकसभा भेजा। 2009 से 2014 का दौर जितिन के राजनीतिक करियर का स्वर्णिम दौर रहा। वह पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सड़क परिवहन और मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे बड़े मंत्रालयों में राज्य मंत्री रहे।
2014 में लगा पहला झटका, फिर उबर नहीं पाए
जितिन को पहला झटका 2014 के लोकसभा चुनाव में लगा जब ‘मोदी लहर’ में उनके हाथ से धौरहरा लोकसभा सीट चली गई। यहां से बीजेपी की उम्मीदवार रेखा वर्मा ने रेकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की और जितिन महज 16 फीसदी मतों के साथ चौथे नंबर पर रहे। इसके बाद से जितिन लगातार पार्टी के भीतर से लेकर जमीन तक संघर्ष करते रहे और 2017 में पार्टी ने उन्हें तिलहर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। हालांकि यहां भी उन्हें बीजेपी के रोशन लाल वर्मा के हाथों हार मिली। इसके बाद माना जा रहा था कि जितिन का राजनीतिक करियर खत्म हो रहा है, मगर कांग्रेस ने दोबारा उन पर भरोसा जताया और 2019 में फिर धौरहरा लोकसभा सीट से टिकट दिया। इस बार यहां उनका और बुरा हाल हुआ और महज 15 फीसदी वोटों के साथ वह तीसरे नंबर पर रहे।
करीबी बोले, जितिन की हार में भी छिपी थी उनकी व्यक्तिगत ‘जीत’
इस हार के बाद जितिन ने अपनी नई राजनीतिक जमीन तैयार करनी शुरू की। उन्होंने ब्राह्मण वोटों को एकजुट करना शुरू किया जो उनकी पिछली दो जीतों में एक बड़ा फैक्टर रहे। जितिन के करीबी मानवेंद्र सिंह ने कहा, ‘जितिन को पार्टी में वो सम्मान नहीं मिला जो उनके कद के नेता को मिलना चाहिए था। जितिन को 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पौने 2 लाख के करीब वोट मिले, 2017 में भी उनकी हार का अंतर बहुत बड़ा नहीं था। वह भले ही 3 चुनाव हारे, मगर ये जो भी वोट मिले वो उनकी अपनी मेहनत के थे।’ मानवेंद्र ने कहा कि कांग्रेस पार्टी बदलाव के लिए नहीं तैयार है, जितिन ने जब बदलाव को लेकर आवाज उठाई तो उनके खिलाफ पार्टी नेताओं ने ही मोर्चा खोल दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यही रवैया रहा तो आज सिंधिया और जितिन जैसे नेताओं ने साथ छोड़ा है, कल यह सिर्फ एक परिवार की पार्टी बनकर रह जाएगी।
BJP में शामिल होकर बोले जितिन, अब मेरा काम बोलेगा
उधर जितिन प्रसाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शाह और नड्डा को धन्यवाद देते हुए कहा कि मैंने बहुत विचार करने के बाद यह फैसला लिया है। उन्होंने कहा, ‘आज से मेरे राजनीतिक जीवन का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। बाकी दल तो व्यक्ति विशेष और क्षेत्र विशेष के होकर रह गए हैं। आज देश हित के लिए कोई दल और नेता सबसे उपयुक्त है और वह मजबूती के साथ खड़ा है तो वह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।’ प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस में रह कर वह जनता के हितों की रक्षा नहीं कर पा रहे थे इसलिए वहां बने रहने का कोई औचित्य नहीं था। उन्होंने कहा, ‘अब भाजपा वह जरिया बनेगी। एक सशक्त संगठन और मजबूत नेतृत्व है यहां, जिसकी आज देश को जरूरत है। मैं इस वक्त ज्यादा बोलना नहीं चाहता, मेरा काम बोलेगा।’