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सिगरेट पीने वालों को कोविड-19 का संक्रमण का अधिक खतरा हो सकता है


कोरोनावायरस ने दुनियाभर को परेशान कर रखा है। हर दिन इस वायरस से संक्रमण फैलने के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। हर दिन इस वायरस के नए-नए लक्षणों में बढ़ोतरी को देखकर वैज्ञानिक भी परेशान हैं। इस वायरस के लक्षण और लोगों पर इसका असर अलग-अलग तरह से देखने को मिल रहा है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में विकसित एक फेफड़े पर अध्ययन करते हुए पाया है कि स्मोकर पर इस वायरस का असर खतरनाक हो सकता है। अध्ययन के मुताबिक स्मोकिंग के कारण कोरोनावायरस का असर फेफड़े पर अत्यधिक जोखिम वाला हो सकता है।

इस अध्ययन से सिगरेट पीने वालों पर कोरोना संक्रमण के प्रभाव को पहले से कम किया जा सकता है। यह रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के वैज्ञानिकों ने की है। रिसर्च में स्मोकर के लिए कोविड-19 के कई और जोखिम का पता लगाया गया है। रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि वर्तमान में जो स्मोकिंग करते हैं उन्हें गंभीर कोरोना वायरस संक्रमण का जोखिम सबसे ज्यादा है। यानी सिगरेट पीने वालों को सबसे अधिक कोविड-19 का संक्रमण हो सकता है। हालांकि ऐसा क्यों होता है इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं है।

स्टेम सेल जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में जब वर्तमान में स्मोकर कोरोना वायरस के सार्स कोविड-2 से संक्रमित हो जाते हैं, तब उनपर क्या इसका प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए कृत्रिम फेफड़े को विकसित किया और इस पर प्रभाव जानने के लिए एयर लिक्विड इंटरफेस कल्चर का इस्तेमाल किया। यानी कृत्रिम तरीके से ही इस फेफड़े के आस-पास स्मोकर वाला वातावरण तैयार किया गया।

यह एयरवेज सबसे पहले सांस लेने के समय वायु को मुंह और लंग तक ले जाता है जो शरीर को वायरस, बैक्टीरिया आदि से शरीर की रक्षा भी करता है। अध्ययन के लेखक ब्रिगिते कॉम्पर्ट ने बताया कि हमारा अध्ययन एयरवेज के ऊपरी पार्ट को दोहराता है जहां सबसे पहले वायरस का आक्रमण होता है। इस खास कृत्रिम वातावरण में वैज्ञानिकों ने स्मोक के साथ सार्स कोवि-2 वायरस का प्रवेश कराया। इसी तरह दूसरे वातावरण में सिर्फ वायरस को प्रवेश कराया।

दोनों तरह के वातावरण का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने पाया कि स्मोकिंग के कारण सार्स कोविड2 का संक्रमण अत्यधिक गंभीर हो गया। इसके कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक प्रणाली के संदेशवाहक प्रोटीन इंटरफेरोन की गतिविधियां रूक गई जिसके कारण फेफड़े पर अत्यधिक प्रतिकुल असर पड़ा।

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