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Corona: नए स्वरूपों, टीकों के घटते असर के कारण अभी तय नहीं हर्ड इम्युनिटी

वाशिंगटन। कोरोना महामारी (Corona epidemic) पर काबू पाने के लिए दुनियाभर में टीकों (vaccines) से हर्ड इम्युनिटी (सामूहिक प्रतिरक्षा) (Herd immunity ) पैदा करने का उपाय किया जा रहा है। ऐसे में काफी लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि कितनी आबादी को टीके लगाकर हम हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity ) का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। ताकि लॉकडाउन का अंत हो और सब बेफिक्री से अपना जीवन जीने लगें। देश-विदेश घूम सकें और अपने प्रियजनों के साथ खुलकर समय बिता सकें।


सिडनी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जूली लीस्क और पब्लिक हेल्थ एकेडमिक, यूएनएसडब्ल्यू के जेम्स वुड के मुताबिक, इसके पीछे तीन बड़ी वजह हैं, जिन्हें समझना जरूरी है…

1) महामारी के बदलते स्वरूप और टीकों में अंतर
तेजी से परिवर्तनशील कोरोना जैसे वायरस की स्थिति में हर्ड इम्युनिटी का अनुमान लगाना मुश्किल है। किसी बीमारी की संक्रामकता को आरओ यानी उसके बढ़ने की रफ्तार से समझा जाता है।

कोरोना को देखें तो उसका मूल स्वरूप का आरओ दो से तीन है लेकिन डेल्टा स्वरूप का संक्रमण इससे दोगुना ज्यादा है और इसका आरओ चार से छह के आसपास है। इसकी प्रकार टीकों की खुराक और उनके विभिन्न प्रकारों का प्रभाव भी काफी मायने रखता है।

ब्रिटेन के आंकड़ों से पता चला है कि फाइजर वैक्सीन की दो खुराक अल्फा संस्करण के खिलाफ 85 से 95 फीसदी के बीच प्रभावी हैं जबकि एस्ट्राजेनेका की दो खुराक 70 से 85 फीसदी प्रभावी है।

डेल्टा स्वरूप को लेकर टीकों के प्रभाव में करीब दस फीसदी तक गिरावट देखी गई है। यानी कोरोना के नए-नए स्वरूपों के खिलाफ टीकों का असर जितना कम होगा, हमें हर्ड इम्युनिटी के लिए उनते ही ज्यादा टीके लगाने की जरूरत पड़ेगी।

2) अभी पूरी आबादी को टीके लगाना संभव नहीं
ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण लें तो वहां अब जाकर 12 से 15 साल के बच्चों को टीकों लगाने की अस्थायी मंजूरी दी गई है। अगर इस आयु वर्ग के लिए नियमित मंजूरी दी जाए तो भी उन्हें टीका लगाने में काफी समय लगेगा।

ऐसा होने पर भी छोटे बच्चों की सुरक्षा में अंतर बना रहेगा। लिहाजा, बच्चों को वयस्कों को टीकाकरण से ही कुछ हद तक लाभ मिलना चाहिए। मसलन, ब्रिटेन में 48.5 फीसदी लोगों को दोनों खुराकें लग गई हैं। शुरुआत में वहां दस साल से कम उम्र के बच्चों में संक्रमण में गिरावट आई थी। यह वयस्कों को मिली सुरक्षा के कारण ही आंशिक रूप से संभव हो पाया था।

3) समय और स्थान के आधार भिन्न होगी सामूहिक प्रतिरक्षा
मौजूदा टीकों की क्षमता एक समय के बाद कमजोर पड़ जाएगी। कोरोना के नए स्वरूपों के आगमन के साथ हमें निश्चित रूप से बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी।

इन्फ्लूएंजा टीकाकरण को लेकर हमने शायद ही कभी सामूहिक प्रतिरक्षा की बात की होगी, क्योंकि इन टीकों से सुरक्षा की अवधि ही बहुत कम होती है। वहीं, इन वायरसों के खिलाफ सुरक्षा भी इलाकों और आबादी में अलग-अलग हो सकती है। हर्ड इम्युनिटी जनसंख्या घनत्व पर भी निर्भर करती है।

इन कारकों को समझते हुए ही विशेषज्ञ अकसर सामूहिक प्रतिरक्षा का तय आंकड़ा देने से बचते हैं। खासतौर पर डेल्टा की संक्त्रसमकता को देखते हुए तो हमें टीकाकरण दर ज्यादा तेजी से बढ़ानी होगी। इसके बाद ही जीवन थोड़ा सामान्य दिखाई देने लगेगा। हालांकि, कोरोना के प्रकोप आते रहेंगे लेकिन तब वह कम जोखिम भरे होंगे।

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