देश

देश के अस्पतालों में बढ़ रहा बेतहाशा इलाज का खर्च, जानिए पांच साल का रिकार्ड

नई दिल्ली (New Delhi)। भारत में इलाज की महंगाई दर एशिया (Asia) में सबसे ज्यादा है। यह 14 फीसद तक पहुंच गई है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में संक्रामक बीमारियों (Infectious diseases in metropolitan cities like Mumbai) का खर्च पांच साल में दोगुना हो गया है। अन्य गंभीर बीमारियों का खर्च भी बढ़ा है। इंश्योरटेक कंपनी प्लम की हालिया रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इलाज का खर्च नौ करोड़ से अधिक लोगों पर असमान रूप से प्रभाव डाल रहा है और इसकी लागत उनके कुल व्यय का 10 फीसद से अधिक पहुंच गई है। इलाज की बढ़ती लागत ने कर्मचारियों पर भी वित्तीय बोझ बढ़ा दिया है। इनमें 71 फीसद व्यक्तिगत रूप से अपने स्वास्थ्य खर्चों के लिए स्वास्थ्य बीमा लेते हैं।



पांच साल में दोगुना हुआ खर्च
पिछले पांच वर्षों में अस्पताल में भर्ती होने के बाद इलाज में होने वाला खर्च दोगुना हो गया है। संक्रमण बीमारियों और सांस से जुड़े विकार के इलाज के लिए बीमा क्लेम तेजी से बढ़े हैं। आंकड़ों के अनुसार, संक्रामक रोग के इलाज के लिए 2018 में औसतन बीमा क्लेम 24,569 रुपये हुआ करता था, जो बढ़कर 64,135 रुपये तक पहुंच गया है।

कोरोना के बाद से आई तेजी
कोरोना महामारी के बाद इलाज खर्च में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इलाज में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों पर भी खर्च बढ़ा है। पहले कुल बिल में इन सामग्रियों का हिस्सा 3 से 4 फीसदी हुआ करता था, जो अब बढ़कर 15 फीसदी हो चुका है। स्वास्थ्य बीमा मांग में तेजी के चलते भी इलाज महंगा हुआ है।

स्वास्थ्य बीमा का प्रीमियम लगातार बढ़ रहा है। सालभर में इसमें 10 से 25% बढ़ोतरी हो चुकी है। बीमा कंपनियों का कहना है कि इलाज की लागत और बीमा क्लेम बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्रीमियम बढ़ाना मजबूरी है।

59 फीसद लोग सालाना जांच नहीं कराते: रिपोर्ट में सालाना हेल्थ चेकअप और नियमित डॉक्टर परामर्श से संबंधित आंकड़ों भी पेश किए गए हैं। इसके मुताबिक, महंगी स्वास्थ्य सेवाओं के चलते करीब 59 फीसद लोग सालाना स्वास्थ्य जांच कराने से कतराते हैं। वहीं, 90 फीसद अपने स्वास्थ्य की निगरानी के लिए नियमित परामर्श की उपेक्षा करते हैं।

दवा के दाम कितने बढ़े: रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 3-4 सालों में शेड्यूल्ड दवाओं की कीमत में 15-20 फीसद का इजाफा हुआ है। दवाओं की कीमत बढ़ने का ये सिलसिला भी कोरोना महामारी के बाद शुरू हुआ। वहीं, नॉन शेड्यूल्ड दवाओं के दाम भी 10 से 12 फीसदी तक बढ़े हैं।

15 फीसदी कर्मचारियों को ही स्वास्थ्य बीमा
रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ 15 फीसद कर्मचारियों को अपने नियोक्ताओं की ओर से स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाता है। यह आंकड़ा देश के रोजगार परिदृश्य की तुलना में बेहद कम है। यही नहीं, केवल 12 फीसद कंपनियां टेलीहेल्थ सहायता प्रदान करती हैं और एक फीसद से भी कम कंपनियां आउट पेशेंट कवरेज प्रदान करती हैं।

भारत में कैंसर मरीज अपनी जेब से खर्च करता है सालाना 3.3 लाख रुपए
भारत में एक कैंसर रोगी आर्थिक स्थिति और बीमा कवरेज की परवाह किए बिना अपने इलाज पर सालाना करीब 3.31 लाख रुपए खर्च करता है। देश के सात टॉप अस्पतालों में इलाज कराने वाले 12148 कैंसर रोगियों के बीच इस साल किए गए अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है।

अध्ययन इस साल जून में फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन में एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई इत्यादि अस्पतालों के मरीजों को शामिल किया गया था।

कैंसर के इलाज पर अपनी जेब से सालाना खर्च (खर्च रुपये में)
अस्पताल में भर्ती होने पर 55081
अस्पताल से बाहर रहकर 2,66,726
कुल 3,31,177
इनपर जेब से खर्च सबसे ज्यादा

अस्पताल में भर्ती होने पर
दवाएं 45%
जांच 16.4%

सर्जरी 12.1%
आने-जाने का खर्च 6.4%

फीस 10.7%
ठहरने, खाने का खर्च 5%

अन्य खर्च 4.4%

अस्पताल से बाहर रहकर इलाज कराने पर

जांच 36.4%

दवाएं 27.8%
आने-जाने पर 20.7%

खाने पर 4.3%
ठहरने पर 4.7%

फीस 5.3%
अन्य 0.6%

Share:

Next Post

मध्य क्षेत्र के बाजारों में अब बदली जा रही हैं होलकरकालीन ड्रेनेज लाइनें

Fri Nov 24 , 2023
कई जगह 40 साल पुरानी लाइनें हो गई थीं क्षतिग्रस्त, आए दिन लाइन चोक होने की समस्या से मिलेगी निजात इंदौर। मध्य क्षेत्र (Central area) के कई बाजारों में 40 साल पहले की होलकरकालीन ड्रेनेज लाइनें (drainage lines) अब बदलने का काम तेजी से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट (smart city project) के तहत चल रहा है। […]