इंदौर न्यूज़ (Indore News)

2020 की इकलौती फांसी की सजा का फैसला नए साल में


2019 की सजा-ए-मौत टिक नहीं पाई, उम्रकैद में तब्दील
इंदौर, बजरंग कचोलिया । वर्ष 2020 की इकलौती फांसी की सजा का फैसला अब नए साल में ही होगा। महू में हुए जघन्य हत्याकांड में मौत की सजा की पुष्टि अब हाईकोर्ट पर टिकी है, जबकि वर्ष 2019 में सुनाई सजा-ए-मौत, यानी मृत्युदंड गुजरते साल में टिक नहीं पार्ई और हाईकोर्ट में जाकर उम्रकैद में तब्दील हो गई।
महू में 4 साल की मासूम को हवस का शिकार बनाकर मौत की नींद सुलाने वाले हत्यारे अंकित पिता कमल विजयवर्गीय (28) निवासी खिलौने वाले का बगीचा, महू की फांसी की सजा पर अभी फैसला बाकी है। हाईकोर्ट में इस साल सरकार की ओर से एक पुष्टि याचिका दायर करके हत्यारे की फांसी पर मुहर लगाने मांग की हुई है। याचिका में कहा था कि दो बार फांसी के फैसले पर हाईकोर्ट अपनी मुहर लगाकर दरिंदे को फांसी के फंदे तक पहुंचाए। वहीं अंकित की ओर से भी हाईकोर्ट में इस फैसले को मनमाना व गलत ठहराते हुए अपील की हुई है। बहरहाल इस मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में आखिरी बहस होना बाकी है। कोरोना संक्रमण के चलते लंबे समय से अनेक प्रकरण अटके हुए हैं, जिससे यह भी लंबित है। अब इस पर 2021 में ही सुनवाई होगी। गौरतलब है कि सेशन कोर्ट के फैसले द्वारा सुनाई फांसी की सजा तभी टिक पाती है जब उसे हाईकोर्ट से मंजूरी मिल जाए। अब इस मामले में हाईकोर्ट तय करंगी कि सेशन कोर्ट द्वारा सुनाई फांसी की सजा उचित है या नहीं।
लाश मिली तो लोग भडक़े, वकील तक पैरवी से पीछे हटे
घटना 1 दिसंबर 2019 रात के समय की है। सांई मंदिर के फुटपाथ किनारे माता-पिता के साथ सो रही बालिका को अज्ञात बदमाश उठा ले गया था। अगले दिन उसकी लाश प्रशांति अस्पताल के पीछे बने खंडहर में मिली तो लोग भडक़ उठे थे। मामले में सीसीटीवी फुटेज व लास्ट सीन के आधार पर पुलिस ने मुजरिम अंकित विजयवर्गीय को पकड़ा तो कोर्ट पेशी के दौरान लोगों ने अंकित की धुनाई भी कर दी थी। यहां तक कि वकीलों ने पैरवी तक से इनकार कर दिया था। इंदौर की सेशन कोर्ट में स्पेशल जज वर्षा शर्मा ने 24 फरवरी 2020 को जारी फैसले में अंकित को फांसी की सजा दी थी। अंकित के बारे में पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि वह बुरी आदतों का शौकीन था और जब मौका मिलता लोगों की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश करता था, लेकिन उसके खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज नहीं हो सका था। सेशन कोर्ट के फैसले में भी इसका जिक्र है। बहरहाल, अब नए साल में अंकित विजयवर्गीय की फांसी बरकरार रह पाएगी या नहीं, इस सवाल का जवाब भविष्य की गर्त में छिपा है।
दफा 302 में फांसी नहीं होने से बच गया था हनी
इसके पहले वर्ष 2019 में भी द्वारकापुरी में मासूम की हत्या के मामले में इंदौर की सेशन कोर्ट ने 30 सितंबर 2019 को हनी उफ कक्कू अटवाल को मृत्युदंड की सजा से दंडित किया था। द्वारकापुरी में एक मासूम को उठाकर ले जाकर उससे हवस की भूख मिटाकर उसकी लाश एमजी रोड थाने के सामने बोगदे में फेंक देने वाला यह शख्स हालांकि कानून की पतली गली का फायदा उठाकर हाईकोर्ट में फांसी की सजा से बच गया था। सेशन कोर्ट ने इसे दफा 302 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जबकि दफा 376-ए यानी नाबालिग से दुष्कर्म में फांसी की सजा। हनी की सजा को इस साल 3 मार्च को जस्टिस सतीशचंद्र शर्मा व जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला की डिवीजन बेंच ने पलटते हुए इस आधार पर फांसी से उम्रकैद में तब्दील कर दिया था कि उसे दफा 302 में फांसी नहीं मिली थी, यानी यह मामला विरल से विरलतम मामलों में नहीं आता जिसमें फांसी दी जा सके। यदि हनी को सेशन कोर्ट से दफा 302 में भी फांसी मिली होती तो शायद नतीजा कुछ अलग होता। हालांकि हनी मरते दम तक जेल की सलाखों के पीछे ही रहेगा।

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