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दुनिया के लिए गंभीर चुनौती बनी डायबिटीज, 2050 तक 130 करोड़ लोग होंगे पीड़ित

नई दिल्ली: जैसे-जैसे हम विकास करते जा रहे हैं, तमाम तकनीकें हमारी जिंदगी को सहूलियतों से भर रही हैं. उतना ही हम बीमारियों से भी घिरते जा रहे हैं. इनमें कुछ बीमारियों ऐसी हैं जिनके होने की वजह ही हमारा गैजेट्स पर इतना निर्भर होना हो गया है. अब हर कोई घर से बाहर निकल कर सामान लाने के बजाए ऑनलाइन खरीदारी पर भरोसा करने लग गया है. तमाम सहूलियतों से घिरे इंसान की बिगड़ती लाइफस्टाइल ने उसकी जिंदगी में मीठा जहर घोलना शुरू कर दिया है. आज दुनिया भर में डायबिटीज यानी मधुमेह एक महामारी की तरह पैर पसार रही है.

लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक शोध बताती है कि आज से 30 सालों बाद डायबिटीज के मरीजों की संख्या आज की तुलना में दोगुनी हो चुकी होगी. शोध में यह भी बताया गया है कि आने वाले 30 सालों में उम्र से जुड़ी डायबिटीज की दर में कोई कमी के आसार नहीं हैं. इस हिसाब से 2050 तक दुनियाभर में करीब 130 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित होंगे. जो उस वक्त की जनसंख्या का 13.4 फीसद हिस्सा होगा. अगर वर्तमान की बात करें तो आज दुनिया की आबादी का 6.7 फीसद (करीब 529 मिलियन) इस बीमारी की गिरफ्त में है.


शोध में पाया गया है कि, तमाम जागरूकता अभियानों और बहुराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे प्रयासों के बावजूद, डायबिटीज व्यापक रूप से बढ़ रही है. यही नहीं यह इतनी तेजी से फैल रही है कि इसने विश्व स्तर पर ज्यादातर बीमारियों को पीछे छोड़ दिया है. शोध में इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात जो सामने आई है वह यह है कि अल्पसंख्यक जातीय समूहों का संरचनात्मक नस्लवाद को लेकर अनुभव और निम्न व मध्यम आय वाले देशों का भौगोलिक असमानता अनुभव करना दुनिया भर में मधुमेह रोग, बीमारी और मृत्यु की बढ़ती दर में तेजी लाने की एक वजह है. एक अनुमान के मुताबिक 2045 तक डायबिटीज से पीड़ित तीन-चौथाई से ज्यादा वयस्क एलएमआईसी से होंगे. जिनमें 10 में से 1 को ही दिशानिर्देश आधारित डायबिटीज की देखभाल मिल सकेगी.

शोधकर्ताओं के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने विश्व स्तर पर डायबिटीज में असमानता को बढ़ा दिया है, जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लोगों में गंभीर संक्रमण होने की आशंका विकसित देशों की तुलना में 50% अधिक है और जिन्हें डायबिटीज नहीं है उन लोगों की तुलना में मरने की आशंका भी दोगुनी है.

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