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न डरी न झूकी भारत की पहली महिला कव्वाल बनी


आज है शकीला बानो भोपाली की बरसी
इंदौर । देश की प्रथम महिला कव्वाल शकीला बानो का आरम्भिक जीवन संघर्षों भरा रहा, घर परिवार में भी उनके कव्वाली गायन का विरोध हुआ लेकिन वे ना डरी ना झुकी और कई दिनों के लम्बे संघर्ष के बाद उन्होंने अपना मुकाम हासिल किया उन्हें फिल्मों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ ।
हिंदुस्तान में कला के क्षेत्र में ऐसी कई हस्तियां हुई हैं जिन्होंने अपने हुनर से देश दुनिया में खूब शोहरत हासिल की इन्हीं में से एक हैं झीलों की नगरी में जन्मी शकीला बानो भोपाली। शकीला बानो देश की पहली महिला कव्वाल थी जिन्होंने कव्वाली के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया। इनकी कव्वाली के दीवाने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी खूब है। अपने दौर में उन्होंने इंग्लैंड, कुवैत, अफ्रीका में कई कार्यक्रम भी किये। वो शकीला बानो ही थी जिसने उस दौर में पुरुष प्रधान कव्वाली को महिला की आवाज देने का बीड़ा उठाया। कव्वाली को एक नया रूप दिया जिसकी कल्पना शायद ही किसी पुरुष कव्वाल ने की होगी। आजाद भारत का ये वो दौर था जिसमें महिलाओं पर सख्त पाबंदी हुआ करती थी। घर से बाहर निकलना तो मानों ख्याली पुलाव की तरह था। इसके बावजूद शकीला ने शायरी और कव्वाली के प्रति अपने प्रेम को दुनिया के सामने रखा और भारत की पहली महिला कव्वाल के रुप में शोहरत पाई।
दर्दनाक हादसे में खो दी थी अपनी आवाज, कभी शादी नहीं की
वर्ष-1984 में भोपाल में हुई एक गैस त्रासदी ने देश को हिलाकर रख दिया। जिसमें जन-धन और मन की हानि भी हुई। इस गंभीर हादसे में शकीला ने अपनी आवाज खो दी। अपने अंतिम दिनों में शकीला बेहद अकेली और तंगहाली का जीवन जी रही थी। हालांकि कई बॉलीवुड स्टार्स ने उनकी मदद भी की मगर 16 दिसंबर 2002 को दुनिया ने इस कलाकार को खो दिया। शकीला बानो ने कभी शादी नहीं की थी।

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