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कोरोना की लहर में नहीं समझें अपने को सुपरमैन, प्रोटोकॉल का पालन

– सुरेन्द्र कुमार किशोरी

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए डेल्टा वेरिएंट जिम्मेदार था, जिसने व्यापक तबाही मचाई थी और हेल्थ सिस्टम को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। कहीं ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा था तो कहीं रेमिडसिवर इंजेक्शन के लिए। ओमिक्रोन कोरोना के डेल्टा वेरिएंट्स से काफी अधिक संक्रामक है। ओमिक्रोन में 30 से अधिक म्यूटेशन मिले हैं, जबकि डेल्टा वेरिएंट में करीब 15 म्यूटेशन मिले थे, इसके डेल्टा वेरिएंट की तुलना में अधिक संक्रामक होने की मूल वजह यही है, इसी कारण डब्लूएचओ ने इसे ”वेरिएंट ऑफ कंसर्न” की कैटेगरी में डाला है।

कोरोना को लेकर लगातार अध्ययन कर रहे डॉ. अभिषेक कुमार ने बताया कि इस वेरिएंट के दहशत के बीच लोगों के मन में यह सवाल प्रमुखता से उठ रही है कि आखिर जो लोग वैक्सीन का दोनों डोज लिए हुए हैं, उनके ऊपर इस वैरिएंट का क्या असर होगा और यह वैरिएंट किस आयु वर्ग के लोगों को सर्वाधिक प्रभावित कर सकता है, इस वेरिएंट का पता कैसे चलेगा? पहले सवाल का जवाब यह है कि अभी तक हेल्थ एक्सपर्ट यह क्लियरकट रूप से जान नहीं पाए हैं कि जो व्यक्ति वैक्सीन के दोनों डोज से इम्मयूनेटेड हैं, उनपर यह वैरिएंट कितना असर करता है। लेकिन यह आशंका जरूर व्यक्त की जा रही है कि कहीं यह नया वेरिएंट वैक्सीन से मिली रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हावी न हो जाए। इसलिए लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही है और कहा जा रहा कि केवल वैक्सीन की इम्यूनिटी पर निर्भर नहीं रहें। जिन व्यक्तियों को आठ-नौ महीने पहले ही वैक्सीन लग चुकी हो निश्चित रूप से उनके इम्युनिटी में अब कुछ कमी आ गई होगी।

इस स्थिति में वैक्सीन के बूस्टर डोज पर ही हेल्थ प्रोफेशनल्स के बीच में बहस छिड़ी हुई है। हेल्थ एक्सपर्टों के बीच बूस्टर डोज को लेकर एक आम राय यह बन रही है कि बूस्टर डोज के लिए वैक्सीन में बदलाव होना चाहिए। उदाहरण के लिए, जिन लोगों को कोविशील्ड का पहला और दूसरा टीका लगाया गया है, उन्हें कोवैक्सीन का बूस्टर डोज दिया जाना चाहिए। वैक्सीन का प्लेटफॉर्म बदलने के इस प्रयोग से इम्यूनिटी बूस्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त बूस्टर डोज के लिए वैसे व्यक्तियों को प्रमुखता दी जानी चाहिए, जिन्हें वैक्सीन का दोनों डोज आठ-नौ महीने पहले लग चुका है।

दूसरे सवाल का जवाब यह है कि इस वेरिएंट से प्रभावित आयुवर्ग के आंकड़ों पर नजर दौड़ाने से यह स्पष्ट होता है कि अब तक यह एक साल से आठ साल तक के बच्चे से लेकर 80 साल के बूढ़े व्यक्ति को प्रभावित कर चुका है। इस स्थिति में यह किस आयुवर्ग को अधिक प्रभावित करेगा इसका अंदाजा लगाना कुछ मुश्किल हो रहा है। तीसरे सवाल का जवाब यह है कि इस वैरिएंट का पता भी आरटीपीसीआर जांच के द्वारा ही लगाया जा सकता है। बहरहाल यह तो तय है कि कोरोना के प्रथम और द्वितीय लहर के दौरान जिस तरह से सुरक्षात्मक उपाय जैसे मास्क का प्रयोग, भीड़-भाड़ से बचाव आदि को अपनाए गया, वही उपाय ओमिक्रोन वेरिएंट से भी सुरक्षा प्रदान कर सकती है। अगर व्यक्ति चार से छह सप्ताह सुरक्षात्मक उपाय को सतर्कता के साथ अपनाए रखे तो इस वेरिएंट को नियंत्रण में लाया जा सकता है।

ब्रिटिश मेडिकल काउंसिल के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. आर.एस. उपाध्याय के अनुसार ओमिक्रोन वैरिएंट लॉकडाउन से नहीं थम सकता, यह डेल्टा वैरिएंट से अलग है। डेल्टा फेफड़े में जाकर संक्रमण फैलाना शुरू करता है, जबकि यह श्वासनली में जाकर मल्टीप्लिकेशन करता है, इसलिए फेफड़े बच जाते हैं। दूसरी अहम बात यह है कि ओमिक्रोन जब फेफड़ों में जाता है तो डेल्टा के मुकाबले दस गुना धीमी गति से फैलता है। इसलिए मरीज को ऑक्सीजन स्पोर्ट की जरूरत नहीं पड़ रही है। हमारे श्वासनली में म्यूकोसल इम्यून सिस्टम होता है जो इम्युनिटी सिस्टम का केंद्र होता है। यहां एक ऐंटीबॉडी बनता है जिसे आईजी-ए कहा जाता है। चुकी ऑमिक्रॉन यहीं मल्टीप्लिकेशन करता है इसलिए ऐंटीबॉडी तत्काल एक्टिव हो जाते हैं। इससे मरीज जल्दी ठीक भी हो जा रहे हैं, क्योँकि वायरस को यह मौका नहीं मिलता की वह व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार कर सके। मरीज भी तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन डरने की जरूरत नहीं है। क्योँकि जितने लोगों में यह फैलेगा उन्हें नेचुरल इम्युनिटी मिल जाएगी जो वेक्सीनेटेड इम्युनिटी से अधिक कारगर और टिकाऊ होता है।

भारत के लिए साकारात्मक खबर यह है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में देश को दो और वैक्सीन आपात इश्तेमाल के लिए मिल गयी है एक कोर्बेवैक्स दूसरा कोवोवैक्स। कोर्बोवैक्स पहला स्वदेशी आरबीडी प्रोटीन वैक्सीन है, जिसका निर्माण हैदराबाद की बायोलॉजिकल ई कंपनी ने किया है। जबकि कोवोवैक्स का निर्माण सीरम इंस्टिट्यूट ने किया है। अब तक भारतीय दवा नियामक के द्वारा छह वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे गई थी- सीरम इंस्टिट्यूट की कोविशिल्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सिन, जायडस कैडिला की जायकोव-डी, रूस की स्पुतनिक-वी, अमेरिका की मोडरना और जॉनसन एंड जॉनसन। इसके अतिरिक्त कोरोना की एन्टीवायरल दवा मोलनुपिरावीर के आपातकालीन नियंत्रित उपयोग की अनुमति भी दी गई है।

डॉ. अभिषेक ने बताया कि ऑमिक्रॉन वेरिएंट को हल्के में मत लीजिए, यह बेहद संक्रामक है। यह बात सही है कि जो व्यक्ति वैक्सीन का दोनों डोज लिए हैं, उनमें इसकी मारकता कुछ कम होती है और दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार डेल्टा वेरिएंट की तुलना में इसकी प्रभाव क्षमता कुछ कम है, लेकिन इसका कतई यह अर्थ नहीं कि यह जानलेवा नहीं है। अपने देश की आबादी 140 करोड़ के पार है और आज की तारीख तक सभी व्यक्तियों को वैक्सीन का दोनों डोज नहीं पड़ पाया है। स्थिति ऐसी है कि अभी भी बहुत से लोग वैक्सीन का प्रथम डोज तक नहीं लिए हैं। इस हालात में लोगों के द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही कोरोना संक्रमण के लिए एक आमंत्रण है। दूसरी लहर ने हमारे हेल्थ सिस्टम को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। चारों तरह ऑक्सीजन, बेड और जीवन रक्षक दवाइयों के लिए हाहाकार मच गया था, अभी भी उस दृश्य को याद कर रेंगटे खड़े हो जाते हैं। पोस्ट कोविड इफेक्ट के कारण अभी भी स्वास्थ्य चरमराया हुआ रहता है। बहुत से लोग पोस्ट कोविड इफेक्ट से पीड़ित हो अवसादित जीवन गुजार रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को ही ध्वस्त नहीं किया, बल्कि इसने भारत को शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से झकझोड़ कर रख दिया।

भारत अभी भी दूसरी लहर द्वारा दिए गए झटके से उबर नहीं पाया है। हालांकि सरकार ने दूसरी लहर की भयावहता से सबक लेते हुए अपने हेल्थ सिस्टम को दुरुस्त करने की कोशिश की, अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया, प्रयाप्त मात्रा में जीवन रक्षक दवाइयों की सप्लाई की जाने लगी और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया गया। लेकिन लोगों को यह समझना चाहिए कि सरकार की कवायदों की भी एक सीमा होती है और एक सीमा तक ही यह इतनी वृहद आबादी को सुरक्षा प्रदान कर सकती है। इसलिए लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद ही जागरूक बने रहना होगा। जो व्यक्ति वैक्सीन का दोनों डोज लिए हुए हैं वह अपने आप को सुपरमैन समझते हैं, ऐसा समझना बिल्कुल गलत है। वैक्सीन का दोनों डोज भी ऑमिक्रॉन से संक्रमित नहीं होने की गारंटी नहीं देता है। इसलिए लोगों को अनिवार्य रूप से मास्क का प्रयोग करना चाहिए, अनावश्यक रूप से भीड़-भाड़ का हिस्सा बनने से बचना चाहिए। जो व्यक्ति अब तक वैक्सीन नहीं लिए हैं, उन्हें वैक्सीन लेना चाहिए। अगर सरकार वैक्सीन के बूस्टर डोज के बारे में कोई निर्णय लेती है तो यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम सरकार के निर्णय के साथ चलें। अगर हम आठ-दस सप्ताह सतर्क और संयमित बने रहें तो कोरोना को रोक सकते हैं। जागरूक, संयमित और सतर्क बने रहें और दूसरे लोगों को भी सतर्क करते रहे।

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