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अल नीनो से बन सकते हैं सूखे जैसे हालात! आर्थिक वृद्धि और महंगाई पर बढ़ेगा जोखिमः वित्त मंत्रालय

नई दिल्ली (New Delhi)। तमाम चुनौतियों के बावजूद विकास की पटरी (development track) पर तेज गति से रफ्तार भर रहे भारत (India) को कृषि उपज में कमी (Decrease in agricultural yield), कीमतों में वृद्धि (increase in prices ) और भू-राजनीतिक परिवर्तन (geopolitical changes) जैसे संभावित जोखिमों (possible threats) से सतर्क रहने की जरूरत है। वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने मंगलवार को मासिक आर्थिक समीक्षा में आगाह करते हुए कहा, अल नीनो (स्पैनिश में लिटिल ब्वॉय) से सूखे जैसे हालात बन सकते हैं।

 

इससे कृषि उपज में कमी के साथ कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका है। भू-राजनीतिक परिवर्तन और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता जैसे संभावित जोखिम भी भारत की चिंता बढ़ा सकते हैं। ये तीनों कारक अनुमानित आर्थिक वृद्धि और महंगाई के परिणामों के अनुकूल संयोजन को प्रभावित कर सकते हैं।


 

मंत्रालय ने समीक्षा के मार्च संस्करण में कहा, चालू वित्त वर्ष में वास्तविक वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के अनुमानों के अनुरूप है। हालांकि, कुछ कारक इस अनुमान को प्रभावित कर सकते हैं।

अर्थव्यवस्था : सबसे तेज रहेगी वृद्धि दर
रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी और भू-राजनीतिक संघर्ष के कारण उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था 2022-23 में मजबूत रही है। अब भी इसमें मजबूती देखी जा रही है। भारतीय जीडीपी के 7 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की तुलना में अधिक है।

चालू खाता घाटे में सुधार, महंगाई के दबाव में कमी और नीतिगत दरों में वृद्धि का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूती वाली बैंकिंग प्रणाली से वृहद आर्थिक स्थिरता बढ़ती दिख रही है। इससे आर्थिक वृद्धि दर और भी टिकाऊ बनी है।

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी, कैड घटा
मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि बाहरी मोर्चे पर देश की स्थिति अच्छी है। चालू खाता घाटे (कैड) में गिरावट आई है। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी हो रही है।

महंगाई पर काबू पाने में सरकार के त्वरित कदमों से मिली मदद
रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में पूरे वर्ष के लिए खुदरा महंगाई दर 5.5 फीसदी रही थी। 2022-23 में यह बढ़कर 6.7 फीसदी पहुंच गई। लेकिन, 2022-23 की दूसरी छमाही में यह 6.1 फीसदी ही रही, जबकि पहली छमाही में 7.2 फीसदी रही थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय जिसों के दामों में नरमी, सरकार के त्वरित कदमों और आरबीआई की मौद्रिक सख्ती ने घरेलू महंगाई पर काबू पाने में मदद की है।

बैंकिंग क्षेत्र पर बढ़ी निगरानी
वित्तीय क्षेत्र पर रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई ने संपत्ति के आकार की परवाह किए बिना बैंकिंग क्षेत्र पर निगरानी बढ़ाई है। केंद्रीय बैंक के दायरे में आने वाले संस्थानों की संख्या बढ़ी है। बैंकों पर दबाव का परीक्षण भी समय-समय पर किया जाता है।

इसलिए अमेरिका व यूरोप से अलग हैं भारतीय बैंक
मंत्रालय ने कहा, जमा की तेजी से निकासी की आशंका नहीं है, क्योंकि 63 फीसदी जमा वैसे परिवार करते हैं, जो जल्द निकासी नहीं करते हैं। इन सभी कारकों की वजह से भारत के बैंक अमेरिका और यूरोप के बैंकों से अलग हैं।

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