भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

प्रदेश में 2000 करोड़ से ज्यादा का निर्यात कारोबार उलझा

  • निर्यात पर प्रतिबंध से मंडी में गेहूं 200 रुपए क्विंटल सस्ता, फिर भी खुले बाजार में महंगा

भोपाल। गेहूं उत्पादक देश यूक्रेन व रूस युद्ध के बाद गेहूं निर्यात का हौवा महंगा पड़ता नजर आ रहा है। निर्यात में बूम के हल्ले से सरकारी खरीद का जरूरी खजाना नहीं भरा और आम उपभोक्ता को महंगा गेहूं खरीदना पड़ रहा है। अब निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे प्रदेश के निर्यात कारोबारियों में हड़कंप है। 10 हजार से ज्यादा ट्रक माल फंस गया है। स्थानीय व्यापारियों और किसानों के 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा दांव पर लगने से घबराहट का माहौल है। मंडियों में 200 रुपए क्विंटल दाम जरूर गिरे, लेकिन आम आदमी को आज भी 3000 रुपए क्विंटल ही गेहूं खरीदना पड़ रहा है।


कारोबारियों के अनुसार, इन सरकारी निर्णयों से आम उपभोक्ता की रोटी महंगी हुई तो किसान भी ज्यादा कीमत के लालच में फंस गया है। कई किसानों के सौदे निरस्त होने की कगार पर हैं। अब उन्हें सरकारी दाम के आसपास ही माल बेचने को मजबूर होना पड़ेगा। वहीं, व्यापारियों ने जिन किसानों का माल उठा लिया था, वह शिपमेंट में उलझ गया है। उनके बीच भुगतान को लेकर विवाद होंगे। सरकार अपने नियंत्रण में शुरू से निर्यात नीति बनाती तो न गेहूं महंगा होता, न सरकार के गोदाम खाली रहते और न ही कारोबारी फंसते। सरकार की जल्दबाजी से किसान-कारोबारी और निर्यातक तीनों ही निर्यात के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। अनाज, दलहन, तिलहन व्यापारी महासंघ समिति ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को चि_ी लिखकर कांडला व मुंबई पोर्ट पर फंसे लोडेड ट्रक का माल शिप में लोड करने की अनुमति देने की मांग की है।

सालाना खरीद में लग रहा फटका
अप्रेल-मई में सरकारी खरीद, निर्यात के बाद भी सालाना गेहूं की खरीदी बड़ी मात्रा में होती है। इंदौर में ही यह 40-50 हजार टन होती है। निर्यात के हौवे से इन खरीदारों को 300 से 400 रुपए क्विंटल का फटका लग रहा है। गेहूं निर्यात पर अचानक प्रतिबंध से व्यापारियों का करोड़ों का गेहूं बंदरगाहों पर फंस गया है। वे बंदरगाहों पर फंसे गेहूं के निर्यात की अनुमति मांग रहे हैं। अनाज व्यापारी 17-18 मई को सूबे की सभी अनाज मंडियां बंद रखेंगे।

ऐसे बढ़ी मुश्किल
सरकार ने एक्सपोर्ट के लिए फ्री पॉलिसी कर सोचा कि किसान को गेहूं के अच्छे दाम मिल जाएंगे। सरकार की इस नीति का असर यह हुआ कि गेहूं के दाम बढ़ गए, व्यापारियों ने निर्यात के सौदे तय कर लिए। सरकार ने देखा कि व्यापारियों द्वारा मलेशिया, गल्फ कंट्री, ईरान, टर्की, इंडोनेशिया, जापान, इटली व यूरोपियन देशों में माल भेजा जा रहा है। इससे सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा है। व्यापारी ऊंचे दाम पर एक्सपोर्ट कर मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों को लाभ हो रहा है, लेकिन देश की फूड सुरक्षा मुश्किल में लग रही है। गेहूं उत्पादक राज्यों में उत्पादन में गिरावट आई और सरकारी खरीदी भी 50 प्रतिशत तक प्रभावित होने लगी तो सरकार ने एक्सपोर्ट प्रतिबंधित किया। अब सरकार चाहती है कि उसकी मंशा के अनुरूप ही निर्यात हो। जिन देशों की मांग आए, वहां सरकार के माध्यम से निर्यात किया जाए। इससे सरकार को भी कहने को रहे कि संकट के समय मदद की।

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