नई दिल्ली। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि युद्ध एवं अन्य वैश्विक हालातों की वजह से नया साल दुनिया के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और कठिन होगा। महंगाई, प्रमुख ब्याज दरें उच्च स्तर पर पहुंचने और निर्यात धीमा होने के बीच भारतीय जीडीपी अगले साल 5 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ती है तो भी हम भाग्यशाली होंगे।
राजन ने कहा, वैश्विक स्तर पर कमोडिटी की उच्च कीमतें भारत में महंगाई बढ़ा रही हैं। इसका आर्थिक वृद्धि दर पर नकारात्मक असर पड़ेगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ बातचीत में पूर्व गवर्नर कहा कि धीमा निर्यात और विकास दर में गिरावट देश के लिए बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए तकनीक समर्थन और कर्ज की जरूरत है। नीतियों को लेकर भी निश्चितता होनी चाहिए।
पहले से ही धीमी थी विकास दर की रफ्तार
पूर्व गवर्नर ने कहा, वृद्धि के आंकड़ों के साथ बड़ी समस्या है। आप उस संबंध में आकलन कर रहे हैं, जो अच्छा दिख रहा है। आदर्श स्थिति में हमें महामारी से पहले यानी 2019 और 2022 की तुलना करनी चाहिए। महामारी समस्या का हिस्सा थी। लेकिन, भारत की विकास दर पहले से धीमी थी।
अमीरों व गरीबों में और बढ़ी असमानता
देश में चार-पांच पूंजीपति लगातार अमीर हो रहे हैं। दो भारत बन रहे हैं। एक किसान और गरीबों का, जबकि दूसरा इन पूंजीपतियों का। इससे आय में असमानता बढ़ रही है…इस पर राजन ने कहा, कोरोना में उच्च-मध्य वर्ग की आय बढ़ गई क्योंकि वे घर से काम कर सकते थे। लेकिन, गरीबों को फैक्टरी जाना था और वे बंद हो गई थीं। इससे गरीबों की मासिक आय बंद हो गई। इससे असमानता और बढ़ी है। चंद उद्योगपतियों के हाथों में संपत्ति पर कहा, हम पूंजीवाद के खिलाफ नहीं हो सकते। हमें एकाधिकार के खिलाफ होना चाहिए क्योंकि यह देश के लिए अच्छा नहीं है।
इसलिए बड़ी नहीं हो पातीं छोटी कंपनियां
अर्थशास्त्री ने कहा, देश में छोटी कंपनियां बहुत बड़ी क्यों नहीं हो पाती हैं क्योंकि वे छोटे रहने के कुछ लाभों के आदी हो जाती हैं। वे जैसे ही बड़ी होती हैं, हम उन लाभों को वापस ले लेते हैं। इसके बजाय हम यह क्यों नहीं कहते कि आप (कंपनियां) बड़ी हो जाती हैं तो लाभ 5 साल तक मिलेंगे। उन्होंने कहा, कंपनियों को बड़ी बनाने के लिए सरकार को मदद करनी चाहिए।
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