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Google से Twitter तक इन भारतीयों ने बढ़ाया देश का मान, क्या भारत के प्रति बदलेंगी इन कंपनियों की पॉलिसी?

नई दिल्ली। आजादी के 74 साल के बाद चरखा चलाने वाले देश के लोग दुनिया की बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों (technology companies) का नेतृत्व कर रहे हैं. अब इनमें एक नया नाम जुड़ गया है और वो है पराग अग्रवाल (Parag Agarwal). सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर (Twitter) के सह संस्थापक जैक डोर्सी (Jack Dorsey) ने सीईओ का पद छोड़ने की घोषणा की है और उनके बाद इस पद की जिम्मेदारी पराग अग्रवाल (Parag Agarwal) को सौंपी जाएगी.



कौन हैं पराग अग्रवाल?
आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) से इंजीनियरिंग करने वाले पराग अग्रवाल (Parag Agarwal) वर्ष 2011 से ट्विटर (Twiiter) के लिए काम कर रहे हैं और वर्ष 2017 में उन्हें ट्विटर का चीफ टेक्निकल ऑफिसर नियुक्त किया गया था, लेकिन अब वो ट्विटर के नए सीईओ बन गए हैं. ट्विटर की मार्केट वैल्यू 2 लाख 70 हजार करोड़ रुपये है और ये एक ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जो कई देशों की राजनीति और वहां की सामाजिक सोच को प्रभावित करता है.

बड़ी कंपनियों के सीईओ हैं भारतीय
आज दुनिया की बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं. माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के सीईओ सत्य नडेला हैं. गूगल (Google) के सीईओ सुंदर पिचाई हैं. एडोबी (Adobe) कंपनी की कमान शांतानु नारायण के पास है. इसके अलावा आईबीएम (IBM) और बार्कले (Barclay) कंपनी के सीईओ भी भारतीय मूल के हैं. सोचिए, जिस देश ने एक समय औद्योगिक क्रान्ति को मिस कर दिया था, आज उसी देश के लोग दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों के सीईओ हैं.

इस खबर में भारत के लिए दो सीख
ये बातें गर्व करने और खुश होने के लिए तो अच्छी हैं, लेकिन आज इस खबर में भारत के लिए भी दो सीख हैं. पहली सीख ये कि ये बात सही है कि आज भारत के लोग दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ हैं, लेकिन आज ये सोचने का भी दिन है कि भारत में ऐसी बड़ी कंपनियां नहीं हैं, जो ग्लोबल स्टेटस रखती हों. और दूसरी बात ये कि क्या आपने कभी ये सुना है कि पाकिस्तान का कोई प्रोफेशनल दुनिया की किसी बड़ी कंपनी का सीईओ बना हो. पाकिस्तान दुनिया में आतंक की ग्लोबल कंपनियां चलाता है और इन कंपनियों के सीईओ भी उसी के देश से होते हैं.

क्या भारत के प्रति बदलेंगी इन कंपनियों की पॉलिसी?
ट्विटर (Twitter) और गूगल जैसी कंपनियों पर भारत विरोधी होने के आरोप लगते हैं. तो अब सवाल है कि जब इन कंपनियों को भारतीय मूल के लोग चलाएंगे तो क्या ये कंपनियां भारत के प्रति अपनी पॉलिसी में बदलाव करेंगी और क्या इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम करते हुए इन लोगों के मन में ये भावना आएगी कि फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी?

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